भाजपा ने क्यों बदले CM के चेहरे
पांच में से तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और मुख्यमंत्री बने विष्णु, मोहन और भजन। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की कमान विष्णुदेव साय को दी गई। मधयप्रदेश में सभी को चौंकाते हुए भाजपा ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया और राजस्थान में बड़ा बदलाव कर पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। जो नाम चर्चा तक में नहीं थे वो सीधे मुख्यमंत्री बन गए और जो उम्मीदें लगाए बैठे थे हाथ पर हाथ धरे, निष्ठावान कार्यकर्त्ता बने बैठे रहे। भाजपा ने जो किया इसे समझना जितना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल है उतना ही मुश्किल ये राजनीतिज्ञों के लिए भी है। भाजपा का ये सियासी दांव देखकर विपक्ष और सियासी माहिरों के होश तो उड़े ही मगर खुद भाजपाई भी भौचक्के रह गए। ये बदलाव सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आखिरकार इतना अनप्रिडिक्टेबल होकर भाजपा ज़ाहिर क्या करना चाहती है। क्या गुटबाज़ी खत्म करने के लिए भाजपा ने ऐसा किया या फिर ये नए चेहरे एंटी इंकम्बेंसी की काट है, या भाजपा की सियासी लैब का कोई नया एक्सपेरिमेंट या कोई नई रणनीति है जिसे डिकोड करने में अभी समय लगेगा । अब ये जो भी था हर किसी के लिए सबक था।
आइये इसे डिकोड करने के कुछ प्रयास करते है। शुरुआत से शुरू करें तो बीजेपी ने इस बार राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना विधानसभा चुनाव में सीएम चेहरा घोषित ही नहीं किया था। पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर ही पूरा चुनाव लड़ा था। 3 दिसम्बर वो तारीख थी जब तीनों राज्यों में भाजपा को प्रचंड जीत मिली और तमाम सर्वे फेल हो गए। जिस तरह भाजपा को मोदी के नाम पर तीनो राज्यों में जीत मिली उससे ये तो तय था कि पार्टी अब तीनों राज्यों में नई लीडरशिप को खड़ा करने का दांव खेल सकती है और हुआ भी कुछ ऐसा ही, भाजपा ने तीनो राज्यों में उन चेहरों को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी जिनका इस फेहरिस्त में दूर दूर तक नाम शामिल नहीं था। इसे भाजपा में अब पीढ़ी परिवर्तन का दौर ही समझ लीजिये जिस तरह से शिवराज और वसुंधरा राजे को राज सिंहासन से दूर रख भाजपा ने मास्टरस्ट्रोक खेला है। यानी जिस तरह चुनाव वन मैन शो था अब पावर भी शायद वहीँ केंद्रित रहे ।
इसके अलावा अन्य कारणों को टटोले तो पहला कारण विभिन्न जातीय वर्गों को लुभाना दिखता है । ये तो स्पष्ट है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अभी से महामंथन कर रही है। राजनीतिक विश्लेष्कों कि माने तो तीनो राज्यों में पार्टी ने ऐसे चेहरे तलाशे है जिनको लेकर व्यापक स्वीकार्यता हो। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय, मध्यप्रदेश में ओबीसी और राजस्थान में ब्राह्मण चेहरा देकर पार्टी ने इन समुदाय के वोटर्स पर फोकस किया है। इन राज्यों के साथ लगते अन्य राज्यों में भी इसका व्यापक प्रभाव होगा। जातीय समीकरणों को साधने के लिए भाजपा का ये बड़ा दांव माना जा रहा है। ऐसे में जाहिर है इस फैक्टर के सहारे पार्टी 2024 में भी विजयश्री कि गाथा लिखने कि तैयारी कर रही है।
दूसरा, पार्टी ने तीनो राज्यों में मुख्यमंत्री ऐसे बनाए हैं जो संघ की शाखाओं से निकले हैं। नए चेहरों को मौका देकर पार्टी ने ये भी जहन में रखा होगा कि ऐसे मुख्यमंत्री कम से कम अपने पहले कार्यकाल में लो प्रोफाइल रहेंगे और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के हिसाब से ही काम करेंगे। यानी कमांड पूरी तरह से आलाकमान के हाथ होगी।
तीसरा, भाजपा ने जिस तरह से चेहरे बदले है उससे ये स्पष्ट है की पार्टी राजनीति की नयी परिभाषा लिखने के साथ ही जमीनी कार्यकर्ताओं को भविष्य के नेता बनाने का संदेश दे चुकी है। पार्टी संगठन से जुड़े हुए कार्यकर्ताओं को ये सन्देश दे रहे हैं कि साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी पार्टी में एक दिन ऊंचे से ऊंचे पद पर पहुंच सकता है और इसका सबसे बड़ा उदहारण राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा है जो पहली बार में ही विधानसभा चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बन गए। साथ ही पार्टी ने राजनीति के धुरंधर और दिग्गज खिलाड़ियों को भी उनकी जमीन दिखाने की कोशिश की है।
ये भाजपा की तीन राज्यों में ही नहीं बल्कि देश में भी सियासी संदेश देने की रणनीति है, कुल मिलाकर यह BJP की नई तरह की रणनीति है। युवा को सामने लाओ, जो पार्टी को आगे बढ़ाएं और दस साल बाद नए चेहरे को रिले रेस की तरह सत्ता का बैटन सौंप दें। भाजपा के इस प्रयोग ने विरोधियों को भी चौंका दिया है l