कृषि की सफलता के लिए नई कृषि तकनीक को अपनाने की जरुरत: विशेषज्ञ
नईकृषि प्रौद्योगिकी के विकास और उसे अपनाने पर ध्यान केंद्रित करने से देशमें कृषि गतिविधियों की सफलता और किसानों की आय बढ़ाने में योगदान मिलेगा।इन सिफारिशों के साथ 'विश्व-विकास की दृष्टि से कृषि, पर्यावरण एवं संबंधितविज्ञान में उद्यतन प्रगति पर आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनरविवार को नौणी में सम्पन्न हुआ। यह सम्मेलन कृषि-पर्यावरण विकास सोसाइटी (एइडीएस)द्वारा डॉ वाईएस परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी, काइरोविश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी रिसर्च इंस्टीट्यूट और त्रिभुवनयूनिवर्सिटी, नेपाल के सहयोग से आयोजित किया गया था। सम्मेलन के अंतिम सत्र में स्थानीय समिति के सह-अध्यक्ष डॉ एचआर गौतम ने कहा कि इसअंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिभागियों के बीच नवीन विचारों काआदान-प्रदान करने में मदद मिली। चूंकि 60 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागीविभिन्न शोध संस्थान के युवा शोधकर्ता थे, इसलिए इस सम्मेलन से भविष्य केअनुसंधान कार्यक्रमों में शानदार प्रभाव पड़ेगा। विभिन्न राज्य कृषिविश्वविद्यालयों और आईसीएआर संस्थानों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने इसकार्यक्रम में भाग लिया और अपना शोध प्रस्तुत किया। कृषि और संबद्धक्षेत्रों में प्रगति, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और आजीविका सुरक्षा के लिएस्थायी पहाड़ी खेती, पर्यावरण प्रबंधन में उभरते मुद्दों, जैविक और संबद्धविज्ञानों में हालिया प्रगति जैसे प्रमुख विषयों पर इस सम्मेलन में चर्चाकी गई।
अपनी प्रस्तुति मेंडॉ डीबी पारेख, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, आईसीएआर एनबीपीजीआर, नई दिल्ली नेकृषि क्षेत्र में एलईडी ग्रो लाइट्स के इस्तेमाल पर प्रकाश डाला। इस खाद्यउत्पादन तकनीक में 40 प्रतिशत कम बिजली, 80 प्रतिशतकम खाद्य अपव्यय, बाहरी क्षेत्रों की तुलना में 99 प्रतिशत कम पानी काउपयोग होता है और कार्बन फुटप्रिंट भी कम करने में मदद मिलती है। बीमारियों और कीटों के बिलकुल कम प्रभाव से इस तकनीक में किसी भीरासायनिक कीटनाशक की आवश्यकता नहीं होती है और इससे स्वस्थ खाद्य पदार्थोंका उत्पादन करने में मदद मिलती है। आजकल अधिक से अधिक लोग शहरी क्षेत्रोंकी तरफ जा रहे हैं और खेती योग्य भूमि सिकुड़ रही है, इस तरह की तकनीक कोवर्टिकल फ़ार्मिंग में इस्तेमाल करके भूमि पर दबाव कम करने में इस्तेमाल मेंलाया जा सकता है। डॉ आरकेशर्मा, प्रख्यात वैज्ञानिक और आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंडबारले रिसर्च, करनाल के संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम प्रमुख ने किसानों कीआय दोगुनी करने के लिए उभरती हुई खेती की तकनीक का व्यापक विवरण दिया।उन्होंने कहा कि टिकाऊ उच्च उत्पादकता और लाभप्रदता प्राप्त करने के लिए, कुशल संसाधन संरक्षण और इनपुट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को अपनाकर प्राकृतिकसंसाधन क्षरण की प्रवृत्ति को उलटने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। लेजर भूमिसमतलन औरजरूरत आधारित नाइट्रोजन अनुप्रयोग के लिए NDVI सेंसरका उपयोग गेहूं की उत्पादकता के साथ-साथ चावल में 15-20% नाइट्रोजन बचाता है। मिट्टी की सतह पर फसल अवशेषों को छोड़ना यानी संरक्षणकृषि से एक सिंचाई को बचाने में मदद मिल सकती है जो कि 15% से अधिक पानी कीबचत होगी। सूक्ष्म-सिंचाई अभ्यास (स्प्रिंकलर और ड्रिप) पारंपरिक बाढ़सिंचाई अभ्यास की तुलना में 25-30% से अधिक पानी बचा या सकता है। आईवीआरआईके पालमपुर क्षेत्रीय स्टेशन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रिंकू शर्मा नेमवेशियों में होने वाली बीमारीएनजूटिक गोजातीय हेमटुरिया (Enzootic bovine haematuria) की बढ़तीसमस्या पर प्रकाश डाला, जो की फर्न के क्रोनिक इनजेशन के कारण होता है। यहबीमारी समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर कुल्लू, चंबा, मंडी और शिमलाजिलों की कुछ क्षेत्रों में पाई गई है। उन्होंने साझा किया की प्रायोगिकअध्ययनों से पता चला है कि लंबे समय तक भोजन में ड्रायोप्टेरिस निग्रोपलासीफर्न (Dryopterisnigropalaceaefern) से जानवरों में यह बीमारी होती है। डॉ शर्मा ने सुझाव दिया किइन क्षेत्रों में किसानों को चारे के लिए या चारे की बेडिंग सामग्रीके रूप में फ़र्न का उपयोग नहीं करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि चराई केलिए खाली पेट मवेशी न भेजें। एनडीआरआई करनाल के एक रिसर्च स्कॉलर डॉराजिंदर चौधरी ने ओमेगा 3 के एक एनकैप्सुलेट के विकास, जो शाकाहारी स्रोतोंसे प्राप्त किया गया है,पर अपना शोध साझा किया। आधुनिक जीवनशैली के कारण, खाद्य पदार्थों में ओमेगा 3 की कमी से गठिया, सोरायसिस, हृदय संबंधीबीमारियां होती हैं। एन्कैप्सुलेट को सीधे अन्य खाद्य पदार्थों में डाला जासकता है। इस तीन दिवसीयकार्यक्रम में भारत के 15 राज्यों और पांच देशों के 500 प्रतिभागियों ने भाग लिया। डॉ जेएन शर्मा, निदेशक अनुसंधान, डॉ एसके शर्मा, डॉ अनिल हांडा और विश्वविद्यालय के अन्य वैज्ञानिक भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।