तपस्वी ने कमंडल से जल छिड़का और आम के नौ लाख वृक्ष उग गए !
यद्यपि...! कुछ बातें तार्किक न लगे लेकिन आस्था और लोकगाथाओं को चुनौती नहीं दी जाती। ऐसी ही एक लोककथा है नाहन के आम बागों की। संत-महात्माओं की तपोस्थली रहा नाहन शहर ‘आम’ के लिए मशहूर है। पर यहाँ स्थित आम के बागीचों के पीछे भी एक रहस्य है, एक किद्वंतीके अनुसार कालिस्थान मंदिर में तपस्या करने वाले एक महान तपस्वी ने नाहन के आसपास नौ लाख आम के वृक्षों की उत्पति अपने कमंडल के जल छिड़काव से कर दी थी।
एक लोकगाथा के अनुसार नाहन स्थित कालिस्थान मंदिर के एक तपस्वी आम के आचार के बड़े शौकीन थे। अनुयायी महाराज के लिए शहर में जाकर भिक्षा में आचार की मांग करते थे। इसी दौरान एक दिन अनुयायी, एक घर में आचार की मांग करने पहुंचा। इस पर उस घर में मौजूद महिला ने गुस्से में आकर कहा कि ‘रोज आचार मांगने आ जाते हो। इतना आचार कहां से लाएं। यदि तुम्हारे महाराज को आम के आचार का इतना ही शौक है, तो क्यों नहीं वे अपने आम के पेड़ उगा लेते ?’’ अनुयायियों ने घटना का वृतांत अपने गुरू महाराज को सुनाया। इस पर गुरू महाराज ने प्रण किया कि वे अपने आम के पेड़ों का ही आचार खाएंगे। उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर कमंडल से जल छिड़क दिया और जहाँ- जहाँ तक जल की बूंदे गिरी वहां पर आम के वृक्ष उग आए। कहा जाता है पूरे नौ लाख आम के वृक्ष उग गए।
नाहन के आसपास कई आम के बाग हैं, जैसे जाबल का बाग, विक्रम बाग, खद्दर का बाग इत्यादि। अब इनकी उत्पति कैसे हुई ये तो अतीत में छिपा है, वर्तमान है तो बस इन वृक्षों पर लगे मीठे आम।