20 की उम्र में लिखी शौर्यगाथा: शहीद धर्मेंद्र ने जान देकर बटालिक में दुश्मनों को हटाया था पीछे

कारगिल विजय दिवस पर जब पूरा देश अपने वीर सपूतों को याद कर रहा है, तब हिमाचल के सोलन जिले के बुघार पंचायत का नाम भी गर्व से लिया जाता है। यहां के बेटे शहीद सिपाही धर्मेंद्र सिंह ने मात्र 20 वर्ष की उम्र में पाकिस्तान से लोहा लेते हुए देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। धर्मेंद्र की बहादुरी और बलिदान की गाथा आज भी उनके गांव और परिवार की जुबां पर है। सुबाथू संवाददाता ने जब कारगिल के इस वीर शहीद के पिता नरपत सिंह से बात की तो उनकी आंखों में गर्व भी था और एक अधूरी उम्मीद का मलाल भी।
नरपत सिंह ने बताया, “धर्मेंद्र कारगिल युद्ध के दौरान सबसे आगे वाली टुकड़ी में था। अंधेरे में कवरिंग फायर देते हुए दुश्मनों पर लगातार गोलियां बरसाईं। लेकिन अचानक रोशनी पड़ते ही दुश्मन ने फायरिंग शुरू की और धर्मेंद्र सीने पर गोली खाकर शहीद हो गया।”
धर्मेंद्र सिंह का जन्म 26 जनवरी 1979 को हुआ था। 1996 में जमा दो की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने सेना जॉइन की और पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए। उनकी पोस्टिंग कारगिल के बटालिक सेक्टर में हुई।
30 जून 1999 की रात वह और एक साथी दुश्मनों की अग्रिम पंक्ति के बेहद करीब पहुंच चुके थे, तभी दुश्मन की सर्चलाइट की चपेट में आ गए। जवाबी कार्रवाई में दोनों ने बहादुरी से मोर्चा संभाला लेकिन धर्मेंद्र को गोली लग गई और वह शहीद हो गए। 3 जुलाई 1999 को उनका पार्थिव शरीर पूरे राजकीय सम्मान के साथ गांव लाया गया और गंभर नदी के किनारे अंतिम संस्कार किया गया।
शहीद के पिता नरपत सिंह ने कहा कि सेना और प्रशासन की ओर से उन्हें पूरा सम्मान मिला, लेकिन राजनीतिक दलों ने सिर्फ़ वादे किए। “मैंने अपने गांव में एक छोटा आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र मांगा था, जो आज तक फाइलों में ही सिसक रहा है। यह मलाल हमेशा रहेगा।” धर्मेंद्र की याद में उनके पिता ने गांव के स्कूल के पास एक शहीद स्मारक बनवाया है, जिसमें धर्मेंद्र की मूर्ति मंदिर की तरह स्थापित की गई है। “मैं चाहता हूं कि आने वाली पीढ़ी धर्मेंद्र की शहादत से सीखे और देशसेवा को अपना आदर्श बनाए।”