पानी का घराट, चनौर गांव में सहेजी जा रही एक विलुप्त होती विरासत: वी.के महंत

आधुनिकता की दौड़ में जहां पारंपरिक तकनीकें धीरे-धीरे गायब होती जा रही हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश के
कांगड़ा जिले के देहरा उपमंडल के तहत चनौर गांव में एक पुराना पानी का घराट (पनचक्की) आज भी लोगों की जरूरतों का केंद्र बना हुआ है। यह जलचलित चक्की न केवल अनाज पीसने का माध्यम है, बल्कि पहाड़ी संस्कृति और विरासत का जीता-जागता उदाहरण भी है। स्थानीय निवासी चनौर मन्दिर के पुजारी वी.के महंत ने कहा कि ये घराट हमारे बाप-दादाओं के समय से चला आ रहा है। पहले पूरे इलाके में ऐसे कई घराट थे, पर अब सिर्फ इक्का-दुक्का ही बचे है। आधुनिक इलेक्ट्रिक चक्कियों और मिलों के बढ़ते चलन के कारण पारंपरिक पनचक्कियां अब इतिहास बनती जा रही हैं। राज्यभर में सैकड़ों पुराने घराट समय के साथ बंद हो चुके हैं, जिससे न सिर्फ एक तकनीक बल्कि उससे जुड़ी सांस्कृतिक पहचान भी खोती जा रही है। पर्यावरणविदों और लोक संस्कृति के जानकारों का मानना है कि इन पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित कर पर्यटन और स्थानीय रोजगार से जोड़ा जा सकता है। चनौर का यह पानी का घराट न केवल अतीत से जुड़ा एक प्रतीक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह यह सिखाने का माध्यम भी है कि कैसे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन यापन किया जा सकता है। जरूरत है तो बस इसे सहेजने और प्रोत्साहन देने की।