बांका हिमाचल : गांधी और गोडसे, दोनों रहे है डगशाई जेल में
बांका हिमाचल : गांधी और गोडसे, दोनों रहे है डगशाई जेल में
ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार का दर्दनाक इतिहास समेटे हुए डगशाई जेल शोधकर्ताओं और जिज्ञासुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। सोलन शहर से 11 किमी दूर, समुद्र तल से 5,600 मीटर से अधिक दूरी पर स्थित, डगशाई एक ऐसा क़स्बा है जो आज भी अपने अचंभित कर देने वाले इतिहास और कहानियों के लिए जाना जाता है। डगशाई भारत का एक बहुत पुराना छावनी क्षेत्र है। यहां ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ों द्वारा बनवाए गए कई भवन है जो अंग्रेज़ों के जुल्मों की याद ताजा करते है। यहां बनी डगशाई जेल एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत है जहां की दीवारों में देश की आज़ादी के लिए लड़े हजारों देश भक्तों के रक्त की लालिमा जज्ब है। गुप अँधेरे में कड़कड़ाती ठण्ड से भरी इस डगशाई जेल में घुसते ही रूह कांप उठती है। यहाँ अब भी कई अनसुलझी पहेलियाँ है। डगशाई जेल को अब एक संग्रहालय में बदला जा चुका है, पर इस जेल का हर कोना अंग्रेजों की क्रूरता को बयां करता है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आयरिश संघर्ष से प्रेरणा ली थी। नैतिक समर्थन प्रदान करने और आयरिश के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने के लिए गांधीजी ने स्वेच्छा से इस जेल में एक रात बिताई थी। महात्मा गांधी जिस कक्ष में ठहरे थे उसकी दीवार पर चरखा चलाते हुए उनकी एक बड़ी सी तस्वीर लगाई गई है जो आज भी वहां मौजूद है। वहीँ महात्मा गांधी के कातिल नाथू राम गोडसे ने भी कुछ समय डगशाई जेल में बिताया था। कहते है शिमला में ट्रायल के दौरान गोडसे को इस जेल में रखा गया था और वे इस जेल का अंतिम कैदी था। हालांकि आधिकारिक रिकार्ड्स में डगशाई जेल का नाम दर्ज नहीं है लेकिन रिकॉर्ड के मुताबिक शिमला में सुनवाई के दौरान गोडसे को सोलन के समीप एक जेल में रखा गया था। उस समय सोलन के समीप सिर्फ डगशाई जेल ही थी जिससे गोडसे को यहाँ रखे जाने का दावा मजबूत होता है।
72875 रुपये की लागत से हुआ था निर्माण :
टी आकार की किले नुमा डगशाई जेल का निर्माण 1849 में किया गया था। इसमें ऊंची छत व लकड़ी का फर्श है। जेल के इस तरह के निर्माण से कैदी की हर तरह की गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन लिया करते थे। तब इस केंद्रीय जेल का निर्माण 72875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैद कक्ष हैं। सभी कक्ष के छत की ऊंचाई लगभग 20 फीट है। भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है। इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो वर्तमान में भी उसी स्वरूप में है।
महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था डगशाई कस्बा:
डगशाई कस्बे के बारे में ये कहा जाता है कि इसे महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसको अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया। अंग्रेजों ने छावनी के साथ- साथ यहाँ बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था। इस जेल में बागी आयरिश सैनिकों सहित हिंदुस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों को भी रखा जाता था। प्राचीन तथ्यों के अनुसार इस जेल में कई कैदियों को फांसी पर भी लटकाया गया है। 1857 में हुई कसौली क्रान्ति के कई वीर क्रांतिकारियों को भी इसी जेल में रखा गया था।
"दाग-ए-स्याह" से पड़ा डगशाई नाम :
इस शहर के नाम में ही एक अलग कहानी भी छिपी है। कहते है कि अतीत में ये शहर मुग़ल शासकों की छावनी भी था और मुग़ल शासक इस क्षेत्र में अपराधियों को मृत्युदंड के लिए भेजते थे। दंड के साथ साथ राज्य से गद्दारी करने वाले लोगों को गर्म लोहे से जला कर उनके शरीर पर दाग (निशान) दिया जाता था जिसे "दाग-ए-स्याही" कहा जाता था। समय के साथ नाम का उच्चारण डगशाई में बदल गया। बाद में, ब्रिटिश शासकों ने इसे एक सेना छावनी में बदल दिया। हालांकि इस स्थान के मुग़ल कनेक्शन को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता।
देश का दूसरा जेल म्यूजियम है डगशाई जेल :
डगशाई जेल को अब म्यूजियम बना दिया गया है। कालापानी के नाम से मशहूर अंडमान निकोबार की जेल के बाद यह भारत का दूसरा जेल म्यूजियम है। पर्यटन के दृष्टिगत आज ये म्यूजियम दुनियाभर में मशहूर है। इस म्यूज़ियम में उस समय की कई तस्वीरें, कलाकृतिया, तोपखाने उपकरण व अन्य जानकारी दस्तावेज रखे हुए है। पर्यटक जेल को घूमकर अंदाजा लगा लेते हैं कि यहाँ उस जमाने में कैदियों को कितनी कठोर सजा व यातनाएं दी जाती थीं। जेल के हर जेलखाने का ब्यौरा, जेलखाने के बाहर लगे बोर्ड में उल्लेखित है। जेल को देखने के लिए काफी संख्या में पर्यटक पहुँचते है किन्तु देश के पर्यटन मानचित्र पर अब भी इस स्थान को उचित पहचान नहीं मिली है। अब भी काफी लोग इस ऐतिहासिक धरोहर से बेखबर है।