बांका हिमाचल : मलाणा : दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र
- यहां कानून या पुलिस राज नहीं चलता
हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में बसा मलाणा गांव बेहद प्राचीन व रहस्यमयी है। आधुनिकता के दौर में दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र वाले मलाणा गांव का आज भी अपना ही कानून है। इस गांव में देवता जमलू यानी जमदग्नि ऋषि का कानून चलता है। यह व्यक्तियों को सज़ा गूर के माध्यम से देवता जमलू देते हैं। भारत का कोई भी कानून या पुलिस राज यहां नहीं चलता। अपनी इसी खास परंपरा, रीति-रिवाज और कानून के चलते इस गांव को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है। मलाणा गाँव का इतिहास जमदग्नि ऋषि के बिना अधूरा है। इस गाँव में जमदग्नि ऋषि को देवता जमलू के रूप में पूजा है। माना जाता है कि वह सतयुग में भगवान विष्णु के छठे अवतार व भगवान परशुराम के पिता थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि जमदग्नि ध्यानमग्न होने के लिए एकांत स्थान की खोज की कर रहे थे। लम्बे भ्रमण के बाद वो मलाणा पहुँचे और उन्हें अपनी ध्येय पूर्ति के लिये यह स्थान उपयुक्त लगा और यही पर देवता जमलू ध्यानमग्न हो गए। पर इस बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि समूचे गांव में जमलू देवता का एक भी चित्र नहीं है। ग्रामवासी जमलू देवता के खांडा को ही ईश्वर का प्रतीक मान उनकी पूजा करते हैं। इस मंदिर में देवता के गुर के अलावा किसी को भी मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।
इस विचित्र गांव में कई रहस्य हैं जो इस गांव की ओर लोगों का ध्यान खींचते हैं। रहस्य से भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है। इसके लिए इनकी ओर से बकायदा नोटिस भी लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर जुर्माना देना होगा। इनके जुर्माने की रकम 1000 से लेकर 3500 रुपए तक है। किसी भी सामान को छूने की पाबंदी के बावजूद भी यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करता है। बाहर से आए लोग दुकानों का सामान नहीं छू सकते। पर्यटकों को अगर कुछ खाने का सामान खरीदना होता है तो वह पैसे दुकान के बाहर रख देते हैं और दुकानदार भी सामान जमीन पर रख देता है। इस नियम का पालन करवाने के लिए यहां के लोग इस पर कड़ी नजर रखते हैं। पर्यटकों के लिए इस गांव में रुकने की भी कोई सुविधा नहीं है। पर्यटक गांव के बाहर अपना टेंट लगाकर रात गुजारते हैं। मलाणा के बाहरी लोगों को छूने से भी परहेज करते हैं।
सिकंदर के सैनिकों ने बसाया था मलाणा गांव :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि मलाणा गांव सिकंदर के सैनिकों ने बसाया है। सिकंदर अपनी फौज के साथ मलाणा क्षेत्र में आया था। भारत के कई क्षेत्रों पर जीत हासिल करने और राजा पोरस से युद्ध के बाद सिकंदर के कई वफादार सैनिक जख्मी हो गए थे। सिकंदर खुद भी थक गया था और वह घर वापिस जाना चाहता था, लेकिन ब्यास तट पार कर जब सिकंदर यहां पहुंचा तो उसे इस क्षेत्र का शांत वातावरण बेहद पसंद आया। वह कई दिन यहां ठहरा। जब वह वापिस गया तो उसके कुछ सैनिक यहीं ठहर गए और बाद में उन्होंने यहीं अपने परिवार बनाकर यहां गांव बसा दिया। इस गांव के लोग खुद को राजा सिकंदर के सैनिकों का वंशज बताते हैं, लेकिन इस बात के कोई उचित प्रमाण नहीं मिले है। हालाँकि उस दौर की कई रहस्यमयी चीज़ें गांव में अभी भी मौजूद है। यहां तक कि यहां के लोगों का हाव-भाव और नैन-नक्श भी भारतीयों जैसे नहीं हैं। बोली से लेकर शारीरिक बनावट तक ये लोग भारतीयों से एकदम अलग नजर आते हैं। मलाणा गांव के लोग कनाशी नाम की भाषा बोलते हैं। स्थानीय लोग इसे पवित्र जुबान मानते हैं। इस भाषा को बाहरी लोगों को सीखने पर भी प्रतिबंध है। ये भाषा दुनिया में कहीं और नहीं बोली जाती। हालांकि स्थानीय लोग हिंदी समझ जाते हैं, मगर वो उसके जवाब में जो कहते हैं, वो बात कनाशी में होती है और समझ में नहीं आती। इस गांव के लोग शादियां भी अपने गांव के भीतर ही करते हैं। अगर कोई गांव से बाहर शादी करता है, तो उसे समाज से बेदखल कर दिया जाता है। हालांकि, ऐसा मामला शायद ही कभी सुनने को मिला हो।
मलाणा गांव में अकबर की भी होती है पूजा :
इस गांव में अकबर से जुड़ी एक रोचक कहानी भी है। मलाणावासी अपने गांव में अकबर को भी पूजते हैं। साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में ये लोग अकबर की पूजा करते है। गांव में अकबर की सोने की मूर्ति है। गांव के लोग बताते हैं कि बादशाह अकबर ने एक बार जमलू ऋषि की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद जमलू ऋषि ने अकबर को सबक सीखने के लिए दिल्ली में बर्फबारी करवा दी थी। इसके बाद अकबर को जमलू देवता से माफी मांगनी पड़ी थी। वंही मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि एक बार भिक्षा मांगते हुए दिल्ली पहुंचे दो साधुओं को सम्राट अकबर ने पकड़ कर उनसे दक्षिणा छीन ली थी। इसके बाद जमलू ऋषि ने स्वप्न में अकबर को ये वस्तुएं लौटाने को कहा। अकबर ने फिर सैनिकों के हाथ यहां अपनी ही सोने की मूर्ति बनाकर बतौर दक्षिणा वापिस भेजी थी। तब से ही यहाँ अकबर की इस मूर्ति की पूजा की जाती है। गांव में साल में एक बार यहां के मंदिर में अकबर की पूजा की जाती है। इस पूजा को बाहरी लोग नहीं देख सकते हैं।
दुनियाभर में मशहूर है यहां की क्रीम (गांजा, चरस) :
मलाणा गांव के आसपास उगाई जाने वाली मारिजुआना (गांजा) को 'मलाणा क्रीम' कहा जाता है। पार्वती वैली में काफी बड़ी मात्रा में इसकी खेती की जाती है। हालांकि, मौजूदा समय में पुलिस और प्रशासन कैनबिज (भांग का पौधा) की खेती को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चला रही है लेकिन, काफी ऊंचाई और मुश्किल भौगोलिक स्थितियां होने के कारण इसे रोक पाना काफी मुश्किल है। पुलिस से बचने के लिए गांव वाले अब घने जंगलों की तरफ मूव कर रहे हैं और वहां इसकी खेती कर रहे हैं। मलाणा गांव की हशीश (चरस) भी काफी मशहूर है। ये भांग के पौधे से तैयार किया गया एक मादक पदार्थ है। बताया जाता है कि मलाणा के लोग इसे हाथों से रगड़ कर तैयार करते हैं और फिर बाहरी लोगों को बेचते हैं।
अपराध पर सजा देते हैं देवता :
मलाणा गांव में यदि कोई अपराध करता है तो सजा कानून नहीं, बल्कि देवता जमलू देते हैं। देवता गूर के माध्यम से अपना आदेश सुनाते हैं। अपनी इसी खास परंपरा,रीति-रिवाज और कानून के कारण इस गांव को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है। ये लोग मानते है कि यदि देवता नाराज होते हैं तो पूरे गांव में तबाही आ जाती है।