बांका हिमाचल : उपेक्षित, निस्तब्ध, निश्चेष्ट सा दरबार हॉल, उम्मीद है सुध लेगी सरकार
बांका हिमाचल : उपेक्षित, निस्तब्ध, निश्चेष्ट सा दरबार हॉल, उम्मीद है सुध लेगी सरकार
- सोलन के दरबार हॉल में हुआ था हिमाचल का नामकरण
" मैं दरबार हॉल हूँ। मैं राजा बघाट के दरबार का साक्षी रहा हूँ। मैं साक्षी रहा हूँ हिमाचल प्रदेश के नामकरण का। मैं विरासत को अपने में समेटे हुए हूँ, मैं स्वर्णिम यादों को सहेजें हुए हूँ। पर वक्त ने मेरी आभा धुंधला दी। आज हुक्मरानों की उपेक्षा ने मुझे जर्जर बना दिया। शायद जल्द कोई सुध ले, इसी आस में मैं निस्तब्ध, निश्चेष्ट उन प्रदेश प्रेमियों को निहारता रहता हूँ जिन्हें अपने प्रदेश का नाम तो याद है मगर मेरा इल्म नहीं... "
गुमनामी के अन्धकार में कहीं गुम ये सोलन का वहीँ दरबार हॉल है जहां हिमाचल के निर्माण की लकीरें कागजों पर उकेरी गई थी। इसी दरबार हॉल में हिमाचल का नामकरण हुआ था और इसी दरबार हॉल में बघाटी राजा दुर्गा सिंह ने 28 रियासतों के राजाओं को राज -पाट छोड़ प्रजामण्डल में विलय होने के लिए मनाया था। कई ऐतिहासिक फैसलों का गवाह रहा सोलन का दरबार हॉल आज उचित संरक्षण के लिए तरस रहा है। जिस ईमारत में कभी बघाट रियासत का दरबार सजता था, वहां आज लोक निर्माण विभाग सोलन के अधीक्षण अभियंता का दफ्तर है। अब तक हुक्मरानों ने इसे हेरिटेज तक घोषित करने की जहमत नहीं उठाई है। वर्तमान में इस ऐतिहासिक इमारत में कई दरारें आ गई है, न जाने कब एक तेज बरसात इसे जमींदोज कर दे।
आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था नाम:
दिनांक 28 जनवरी 1948, स्थान सोलन का दरबार हॉल। बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में हिमाचल प्रदेश के निर्माण हेतु एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। राजा दुर्गा सिंह उस वक्त संविधान सभा के चेयरमैन थे और उन्हें प्रजामण्डल का प्रधान भी नियुक्त किया गया था। उस दिन दरबार हॉल की इस बैठक में डॉ यशवंत सिंह परमार व स्वतंत्रता सेनानी पदमदेव की भी उपस्थित थे। कहते है की डॉ परमार ने उस समय वर्तमान उत्तराखंड राज्य के जौनसार-बावर क्षेत्र का कुछ हिस्सा भी हिमाचल प्रदेश में मिलाने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु राजा दुर्गा सिंह इससे सहमत नहीं थे। साथ ही डॉ परमार प्रदेश का नाम हिमालयन एस्टेट रखना चाहते थे लेकिन राजा दुर्गा सिंह को ये भी गवारा न था। राजा की पसंद का नाम था हिमाचल प्रदेश। ये नाम संस्कृत के विद्वान आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा ने सुझाया था जो राजा दुर्गा सिंह को बेहद भाया। अंत में राजा दुर्गा सिंह की चली और नए गठित राज्य का नाम हिमाचल प्रदेश ही रखा गया। 28 रियासत के राजाओं ने जब एक स्वर में प्रांत का नाम हिमाचल प्रदेश रखने की आवाज बुलंद की तो डॉ. परमार ने भी इस पर हामी भर दी। एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को मंजूरी के लिए भेजा गया। सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाकर प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश घोषित किया। ये बेहद विडम्बना का विषय है कि जिस दरबार हॉल में हिमाचल प्रदेश का नामकरण हुआ था वो आज इस तरह अनदेखी का शिकार है।
राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही इमारत :
मौजूदा समय में दरबार हॉल का इस्तेमाल लोक निर्माण विभाग कर रहा है। ऐतिहासिक दरबार हॉल में जर्जर दीवारें अपनी अनदेखी की कहानी बयां कर रही हैं। सोचने वाली बात तो ये है की जिलेभर के सरकारी भवनों को बनाने और रखरखाव करने वाले लोक निर्माण विभाग का कार्यालय इस जर्जर भवन में चल रहा है। दरबार हॉल को उचित पहचान मिलना तो दूर इस स्थान का अस्तित्व तक खतरे में है। दरबार हॉल में राजशाही के दौर की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं। आज भी दरबारी द्वार पर की गई बेहद सुंदर नक्काशी को देखा जा सकता है। आज भी ये दरबार हॉल अपनी खूबसूरती और अपने शानदार इतिहास का लोहा न सिर्फ सोलन बल्कि समूचे प्रदेश में कायम करता है। पर विडम्बना ये हैं कि राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही यह ईमारत आज धीरे-धीरे लचर व्यवस्था की बलि चढ़ रही है।
घोषणा हुई, पर हुआ कुछ नहीं :
वर्ष 2015 में बघाटी सामाजिक संस्था सोलन की मांग पर तत्कालीन सरकार ने दरबार हॉल को धरोहर संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी। योजना थी कि इसे संग्रहालय के तौर पर विकसित किया जाएगा तथा बघाट व आसपास के क्षेत्रों की संस्कृति से संबंधित दुर्लभ वस्तुओं को इस हॉल में प्रदर्शित किया जाएगा। तब जिला भाषा एवं संस्कृति विभाग को योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए थे। आदेशानुसार विभाग ने रिपोर्ट भी बनाई और सरकार को भेजी भी। किंतु इसके बाद इस संदर्भ में कुछ नहीं हुआ।
अधिकारियों के लिए मानो सिर्फ एक दफ्तर है दरबार हॉल :
दरबार हॉल में वर्तमान में लोक निर्माण विभाग का दफ्तर है। इस इमारत की हालत इतनी जर्जर है कि विभाग के कर्मचारियों को भी यहाँ बैठने में डर लगता है। ईमारत एक तरफ झुकने लगी है और वक्त के साथ दीवारों में पड़ी दरारें चौड़ी होती जा रही है। विभाग चाहता है कि जिला प्रशासन उन्हें कोई जमीन उपलब्ध करवा दें ताकि वे अपना भवन कहीं अन्य स्थान पर बना सके। वहीँ इस ईमारत के संरक्षण को लेकर विभाग का कहना है कि ये उनका मसला नहीं है। जैसी आदेश आएंगे वे उसका पालन करेंगे।