बांका हिमाचल : हर ज़िले की विशेष धाम, विशिष्ट जायका
बांका हिमाचल : हर ज़िले की विशेष धाम, विशिष्ट जायका
अपनी खानपान की कला व संस्कृति को संजोए हिमाचल प्रदेश में आज भी पारंपरिक खाने को अहमियत दी जाती है। हिमाचली धाम विश्वभर में मशहूर है। हिमाचल में जब कोई शादी या अन्य सुबह कार्य किया जाता हैं तो महमानों के लिए तरह - तरह के पकवान बनाये जाते है, जिन्हें आम भाषा में धाम कहा जाता है। शादियों में बनने वाली धाम का स्वाद उस फाइव स्टार होटल के स्वाद को भी फेल कर देता है जो लोग हजारों रुपये देकर खाते हैं। बहुत से लोग जब हिमाचल में आते हैं तो यहाँ की बनी हिमाचली धाम का जायका लेना नहीं भूलते। हिमाचल प्रदेश में 12 जिले हैं और लगभग सभी जिलों में आज भी शाकाहारी पारंपरिक हिमाचली धाम को बनाया जाता है। जिला किन्नौर ही केवल एक मात्र ऐसा जिला है जहाँ धाम में मांसाहारी खाना बनाया जाता है। इस जिले में मांस और शराब का बहुत चलन है। हिमाचल प्रदेश में धाम की परम्परा सदियों से चली आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक ढंग से धाम पकती है। हिमाचली धाम हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र में अलग-अलग तरह की होती है।
कांगड़ा की धाम
कांगड़ा की धाम हिमाचल की तमाम धामों में शुमार है। काँगड़ा की धाम बेहद लोकप्रिय मानी जाती है। कांगड़ी धाम की विशेष बात ये है कि ज्यादातर धाम में परोसे जाने वाले व्यंजन, दही के साथ तैयार किए जाते हैं। कांगड़ी धाम केवल बोटीयों द्वारा पकाई जाती है। इस विस्तृत भोजन की तैयारी रात से पहले शुरू होती है। खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन आम तौर पर पीतल वाले होते हैं जिसे कांगड़ी भाषा में चरोटी या बलटोई भी कहा जाता है। कांगड़ी धाम की एक विशेष बात ये भी है कि धाम में परोसे जाने वाले खाने को लोग ज़मीन पर बैठ कर खाते हैं। कांगड़ी धाम को पत्तो की प्लेटों पर दिया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में पतलू कहा जाता है। इस धाम में ख़ास व्यंजनों की सूची में चने की दाल, माह उड़द साबुत, मदरा, दही चना, खट्टा चने अमचूर, पनीर मटर, राजमा, सब्जी में जिमीकंद, कचालू, अरबी, मीठे में ज्यादातर बेसन की रेडीमेड बूंदी, बदाणा या रंगीन चावल भी परोसे जाते हैं। यहां चावल के साथ पूरी भी परोसी जाती है।
मंडी की धाम
मंडयाली धाम अपने आप में एक अनूठा आहार है। इसे परोसने का तरीका भी अनोखी है इसे हरी पत्तलों पर परोसा जाता है। मंडयाली धाम की खास बात ये भी है कि इसे हिमाचल के लोग चम्मच से नहीं, बल्कि हाथ से खाते हैं। उनका कहना है कि हाथ से धाम खाने का जो लाभ शरीर को मिलता है, वह प्लास्टिक से बनी प्लेटों और चम्मच से खाने से नहीं मिलता। मंडयाली धाम में सबसे पहले बूंदी मीठा परोसा जाता है। इसे लोकल बोली में बदाणा कहा जाता है। छोटी काशी मंडी क्षेत्र के खाने की खासियत है सेपू बड़ी जो बनती है बड़ी मेहनत से और खाई भी बड़े चाव से जाती है। सेपू बड़ी के साथ कद्दू खट्टा, कोल का खट्टा, दाल और झोल परोसा जाता है। इसे टौर के हरे पत्ते से बनी पत्तलों पर परोसा जाता है।
शिमला की धाम
प्रदेश की राजधानी शिमला में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला व्यंजन है सिड्डू। आम तौर पर इसे देसी घी, दाल और चटनी के साथ परोसा जाता है। सिड्डू के साथ बबरु भी सभी शुभ त्योहारों और अवसरों पर तैयार किया जाता है। बबरू शिमला में पाए जाने वाले सबसे प्रसिद्ध हिमाचली भोजन में से एक है। यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध कचौड़ी का एक संस्करण है। सिड्डू ,बबरू पोलडू ,माह उड़द की दाल, चने की दाल, छोटे गुलाब जामुन जैसे व्यंजन शिमला की थाली का हिस्सा हैं।
चंबा की धाम
वैसे तो हर जिले की अपनी धाम है, लेकिन चंबा जिला में बनने वाली धाम की बात ही कुछ और है। इस धाम की शान है राजमा से बनने वाला मदरा। प्रदेश की सभी धामों में मदरा बनाया जाता है; चने का मदरा, आलू का मदरा और बूंदी का मदरा, लेकिन चंबयाली धाम का मदरा सबसे ज्यादा मशहूर है। जिला चंबा में शादी और अन्य समारोह में लोगों को जो लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं उसमें दो तरह के मदरे होते हैं। पहला आलू वाला जो कि मीठा होता है। वहीं, दूसरा मदरा होता है राजमा का जो कि नमकीन होता है, जिसे लोग काफी पसंद करते हैं। चंबा में धाम परोसने के वक्त दोने भी पतल का साथ देते हैं। यहां चावल, मूंग साबुत, मदरा, माह, कढ़ी, मीठे चावल, खट्टा, मोटी सेवेइयां खाने का हिस्सा हैं। यहां मदरा हेड बोटी, यानी खाना बनाने वाली टीम का मुखिया डालता है। किसी जमाने में बोटी पूरा अनुशासन बनाए रखते थे और खाना-पीना बांटने का सारा काम बोटी ही करते थे। एक पंगत से उठ कर दूसरी पंगत में बैठ नहीं सकते थे। खाने का सत्र पूरा होने से पहले उठ नहीं सकते थे। मगर समय के साथ अब काफी ज़्यादा बदलाव आया है।
हमीरपुर की धाम-
हमीरपुर की धाम में दालें ज्यादा परोसी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि हमीरपुर में पैसे वाला मेजबान दालों की संख्या बढ़ा देता है। हमीरपुर में मीठे में पेठा ज्यादा पसंद किया जाता है मगर बदाणा व कद्का मीठा भी बनता है। राजमा या आलू का मदरा, चने का खट्टा वकढ़ी प्रचलित है।
ऊना की धाम
ऊना जिले के कुछ क्षेत्रों में सामूहिक भोज को धाम कहते हैं। पहले ऊना में शादी के शुभावसर पर मामा की तरफ से धाम दी जाती थी। यहां पतलों के साथ दोने भी दिए जाते हैं ,विशेषकर शक्कर या बूरा परोसने के लिए। यहां चावल, दाल चना, राजमा, दाल माश खिलाए जाते हैं। हिमाचली इलाका ऊना कभी पंजाब से हिमाचल में आया था तो यहां पंजाबी खाने-पीने का अधिक असर है।
बिलासपुर की धाम
बिलासपुर क्षेत्र में उड़द की धुली दाल, उड़द, काले चने खट्टे, तरी वाले फ्राई आलू या पालक में बने कचालू, रौंगी ,लोबिया, मीठा बदाणा या कद्दू या घिया के मीठे का नियमित प्रचलन है। समृद्ध परिवारों ने खाने में सादे चावल की जगह बासमती, मटर पनीर व सलाद भी खिलाना शुरू किया है।
कुल्लू की धाम
कुल्लू का खाना मंडीनुमा है। यहां मीठा,बदाणा या कद्दू, आलू या कचालू खट्टे,दाल राजमा, उड़दया उड़द की धुली दाल, लोबिया, सेपूबड़ी, लंबे पकौड़ों वाली कढ़ी व आखिर में मीठे चावल खिलाए जाते हैं।
सोलन की धाम
सोलन के बाघल, अर्की तक बिलासपुरी धाम का रिवाज है। उस क्षेत्र से इधर एकदम बदलाव दिखता है। हलवा-पूरी, पटांडे खूब खाए खिलाए जाते हैं। सब्जियों में आलू-गोभी या मौसमी सब्जी होती है। मिक्स दाल और चावल आदि भी परोसे जाते हैं। यहां खाना धोती पहन कर भी नहीं परोसा जाता है।
कित्रौर की धाम
हिमाचल में सबसे अलग धाम किन्नौर की मानी जाती है क्योंकि यहां पर कई सालों से मांसाहारी भोजन भी धाम में परोसा जाता है। किन्नौर की दावत में शराब व मांस का होना हर उत्सव में लाज़मी है। इसलिए यहां बकरा कटता ही है। खाने में चावल, पूरी, हलवा, सब्जी जो उपलब्ध हो बनाई जाती है। यहाँ सुतरले, सनपोले जलेबी जैसा व्यंजन, काओनी नमकीन बर्फी त्योहार का विशेष व्यंजन है। किन्नौर में 'छांग देशी शराब है जो हांगरांग घाटी में मुख्यत पी जाती है।
लाहौल स्पीति की धाम
लाहौल-स्पीति का माहौल आज भी ज्यादा नहीं बदला। वहां तीन बार मुख्य खाना दिया जाता है। चावल, दाल चना, राजमा, सफेद चना, गोभी आलू मटर की सब्जी और एक समय भेडू, नर भेड़ का मीट कभी फ्रायड मीट या कलिचले। सादा रोटी या पूरी भटूरे भी परोसे जाते हैं। परोसने के लिए कांसे की थाली, शीशे या स्टील का गिलास व तरल खाद्य के लिए तीन तरह के प्याले इस्तेमाल होते हैं। नमकीन चाय, सादी चाय व सूप तीनों के लिए अलग से गिलास इस्तेमाल किये जाते है। इसके अलावा अकतोरी यहाँ की एक फेस्टिव डिश है और इसे केक के रूप में बनाया जाता है। अकतोरी हिमाचल प्रदेश के सबसे पसंदीदा व्यंजनों में से एक है। यह व्यंजन स्पीति घाटी में उत्पन्न हुआ और पूरे राज्य में लोगों द्वारा पसंद किया जाता है।
सिरमौर की धाम - सिरमौर के एक भाग हरियाणा व साथ-साथ उत्तराखंड लगता है। इसलिए यहां के मुख्य शहरी क्षेत्रों में
सिरमौर का पारंपरिक खाना सार्वजनिक उत्सवों व विवाहों में तो गायब ही रहता है। भीतरी ग्रामीण इलाकों में चावल, माह की दाल, पूछे, जलेबी, हलवा या फिर शक्कर दी जाती है। इस बदलाव के जमाने में जहां हमने अपनी कितनी ही सांस्कृतिक परंपराओं को भुला दिया है। वहीं हिमाचली खानपान की समृद्ध परंपरा बिगड़ते छूटते भी काफी हद तक बरकरार है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कांगड़ी धाम के काफी मुरीद हैं,
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिमाचली धाम के मुरीद है, वो कई जनसभाओं में इस बात का जिक्र कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल भाजपा के प्रभारी रह चुके हैं और वे हिमाचल को अपना दूसरा घर मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी हिमाचल में परोसे जाने वाले व्यंजनों को नहीं भूले है जिनमें से एक मंडयाली धाम में परोसे जाने वाली सेपू बड़ी भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी हिमाचल प्रदेश में आते है तो उनके लिए खासतौर पर हिमाचली व्यंजन तैयार किए जाते है। खास हिमाचली व्यंजनों से तैयार की जाने वाली थाली में प्रधानमंत्री को मंडयाली धाम में परोसी जाने वाली सेपू बड़ी के साथ कांगड़ा की कड़ी, चंबा के राजमा का मदरा, कुल्लू की गुच्छी का मदरा सहित विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाते है।
एचपीटीडीसी के होटलों में परोसी जाती है हिमाचली धाम
कोरोना के कारण पर्यटन कारोबार पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा था। एचपीटीडीसी के होटलों और कैफे को नुकसान से उभारने के लिए हिमाचली थाली और पहाड़ी सिड्डू की टेक अवे सर्विस शुरू की गयी है। हिमाचल प्रदेश में पर्यटन विकास निगम के 53 होटलों और 17 कैफे में यह सुविधा दी गयी है। हिमाचली धाम में ग्राहकों को परंपरागत कांगड़ी, मंडियाली, चंबियाली, बिलासपुरी धाम में मदरा, बदाणा, माहणी, कद्दू का मीठा, कढ़ी, सेपू बड़ी जैसे लजीज व्यंजन परोसे जाते है। हिमाचली धाम के लिए ग्राहकों को महज 180 रुपये चुकाने होते है।
बोटी यानी हिमाचली धाम के कुक
हिमाचली धाम के अस्तित्व को बनाए रखने का श्रेय यहां के बोटियों को दिया जाता है जो पीढ़ी- दर- पीढ़ी इस पेशे से जुड़े हुए हैं। हिमाचल के विवाह उत्सव हों अथवा रिटायरमेंट, किसी का जन्मदिन अथवा चौथा श्राद्ध, लोग पूरे गांव को धाम को चखने का मौका देते हैं। मुख्य बोटी सहायक बोटियों की बालटियों में सब्जी डालता है। वे आगे जाकर धोती पहनकर टाट पट्टी पर बैठे लोगों को पत्तल पर खाना परोसते हैं।
विवाहों के मौसम में धाम बनाने व परोसने वाले बोटियों (रसोइयों) की टीमें बहुत व्यस्त रहती हैं। इसलिए बोटी को पहले ही साई या बुकिंग दे दी जाती है। वह सामान की लिस्ट और भटी में बनने वाले सारे व्यंजनों का चुनाव कर लिया जाता है। जिला बिलासपुर में तो कई दशकों से रामू दयाराम, छज्जू व प्रीत लाल, प्रेम लाल व नंद बोटी धाम बनाने के लिए बहुत मशहूर है। नंद बोटी और उसकी टीम तो दूर दूर खाना बनाने जाते हैं।