संस्कृति और लम्बे इतिहास को समेटे हुए है अंतरराष्ट्रीय लवी मेला
हिमाचल प्रदेश में मेलों का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व है। ये कहना गलत नहीं होगा कि ये मेले हज़ारों वर्षों से हमारी प्राचीन परम्पराओं को संजोये हुए है। इसी तरह अपनी संस्कृति और लम्बे इतिहास को समेटे हुए राजधानी शिमला के रामपुर बुशहर में मनाएं जाने वाला अंतरराष्ट्रीय लवी मेला दुनियाभर में प्रसिद्ध है। अंतरराष्ट्रीय लवी मेले का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा मिलता है। भारत व तिब्बत के बीच व्यापार के प्रतीक के रूप में इस अंतराष्ट्रीय मेले की शुरुआत हुई थी, जिसे प्रत्येक वर्ष नवंबर माह की 11 तारीख को आयोजित किया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस मेले में देश-विदेश के लोग व्यापार करने एवं खरीददारी करने के लिए यहां आते हैं।
लवी केवल व्यापारिक मेला ही नहीं, बल्कि इस मेले में हिमाचल प्रदेश की पुरानी संस्कृति की विशेष झलक भी दिखती है। आज भी यहां पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की खरीद फरोख्त, ऊनी वस्त्रों, ड्राई फ्रूट्स, जड़ी-बूटियों की खरीद प्रमुख है। वर्ष 1983 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद स्व वीरभद्र सिंह ने 1985 में रामपुर के लवी मेले को अंतरराष्ट्रीय घोषित किया था।
रोचक है लवी मेले का इतिहास
रामपुर रियासत के राजा केहर सिंह ने तिब्बत के साथ व्यापारिक समझौता यह सोच कर किया था कि दोनों देश के व्यापारी बिना टैक्स दिए व्यापार कर सकेंगे। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में रामपुर में तिब्बत और हिंदुस्तान के बीच व्यापार शुरू हुआ। पर लवी मेले में व्यापार टैक्स मुक्त होता था। रामपुर में लवी मेले का आयोजन पहले रामपुर बाजार में किया जाता था। लवी मेले में किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से व्यापारी पैदल पहुंचते थे। इसके अलावा तिब्बत, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान के व्यापारी कारोबार करने के लिए आते थे। वे विशेष रूप से ड्राई फ्रूट, ऊन, पशम और भेड़-बकरियों सहित घोड़ों को लेकर यहां आते थे। बदले में व्यापारी रामपुर से नमक, गुड़ और अन्य राशन लेकर लेकर जाते थे। यह नमक मंडी जिले के गुम्मा से लाया जाता था।
लवी मेले में चामुर्थी घोड़ों का भी कारोबार किया जाता था। ये घोड़े उत्तराखंड से लाए जाते थे। इसके अलावा ऊन से बने उत्पादों की खरीद-फरोख्त भी होती थी। शिमला जिले की रामपुर रियासत में लवी मेला मध्य शताब्दी से चल रहा है। दूर-दूर से लोग इस मेले में शामिल होने आते हैं। यह मेला हिमाचल प्रदेश को गौरवान्वित करता है।
लोई' से शुरू हुआ सफर बदला 'लवी' में
लवी का शाब्दिक अर्थ है, 'लोई'। यह ऊन से बनी एक गर्म शॉल होती है। इस शब्द की उत्पत्ति से ही लवी शब्द की उत्पति हुई है। हिमाचल प्रदेश के अधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में जो गर्म ऊन से बना 'चोला' पहना जाता है, उसे भी 'लोइया' कहा जाता है। सिरमौर जिला में 'लोइया' बड़े शौक से पहना जाता है।
चामुर्थी नस्ल के घोड़े भी हैं आकर्षण का केंद्र
लवी मेले का एक मुख्य आकर्षण चामुर्थी नस्ल के घोड़े हैं। 1984 से 'स्पीति' नस्ल के चामुर्थी घोड़ों के नाम से अश्व प्रदर्शनी को भी मेले से जोड़ा गया है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए चामुर्थी घोड़े काफी उपयोगी माने गए हैं और किन्नौर, लाहौल स्पीति और लद्दाख जैसे बर्फानी व पहाड़ी क्षेत्रों के लिए यह घोड़ा वरदान साबित होता है। ये घोड़े उत्तराखंड से लाए जाते थे।
- किन्नौर क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान
लवी व्यापारिक मेले में किन्नौर क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। किन्नौर क्षेत्र में शक्तिदायक शिलाजीत भी उंचे पत्थर की चट्टानों की कन्दराओं में भारी मात्रा में उपलब्ध रहती है, जिसे शोध कर विक्रय के लिए यहां लाया जाता है। प्राचीनकाल से ही किन्नौर के लोगों का पशुपालन प्रमुख व्यवसाय रहा है। ये लोग अपने पशुओं का व्यापार आज भी इस मेले में करते हैं। ये लोग मेला शुरू होने से एक सप्ताह पहले रामपुर नगर आ जाते हैं।
सदियों से हस्तशिल्पियों की आजीविका का साधन रहा है लवी
अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में भले ही आधुनिकता हावी हो गई है, लेकिन यहां अभी भी पहाड़ी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। लवी में एक मार्केट अभी भी ऐसी लगती है, जहां पर हिमाचल के दुर्गम क्षेत्रों में बनाई जाने वाली शॉल, टोपियों और अन्य पारंपरिक हस्तशिल्प के उत्पाद मिलते हैं। यहां लोग बुशैहरी टोपियां पहनते हैं जो कि काफी आकर्षक लगती है। इसी मार्किट की बदौलत लवी मेला सदियों से हथकरघा से जुड़े लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है। लवी मेला हथकरघा व्यवसाय को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं। लवी मेले के कारण ही ग्रामीण दस्तकारों की साल भर की रोजी चल रही है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय लवी मेला से पूर्व ग्रामीण दस्तकार साल भर विभिन्न प्रकार के वस्त्र व हस्तशिल्प से बने उत्पाद तैयार करते हैं और लवी मेले में लाकर अपने उत्पाद बेचते हैं। ऐसे में ग्रामीण दस्तकारी को बढ़ावा देने में अंतरराष्ट्रीय लवी मेला उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच एक सेतु का काम कर रहा है।