सोलन की मेनरी मोनेस्ट्री: बोन धर्म की आस्था का प्रमुख केंद्र

मेनरी मोनेस्ट्री, तिब्बत की मूल आध्यात्मिक बोन परंपरा का मुख्य मठ माना जाता है। पूरी दुनिया में बोन धर्म के अनुयायियों के लिए यह मोनेस्ट्री अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश के सोलन-सिरमौर की सीमा पर डोलनजी में स्थित मेनरी मोनेस्ट्री के बारे में हिमाचल में ही बहुत कम लोगों को पता है, किन्तु दुनिया भर में बोन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए इसका सर्वोच्च धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
बोन धर्म तिब्बत की प्राचीन और पारंपरिक धार्मिक प्रथा है। माना जाता है कि लगभग आठवीं शताब्दी में तिब्बत में बौद्ध धर्म भारत से गया। पर बोन धर्म उससे पहले से ही तिब्बत में प्रचलित था। यानी बोन धर्म तिब्बत का अपना स्थानीय धर्म है। बौद्ध धर्म के तिब्बत में आने के बाद राजकीय समर्थन उस ओर मुड़ गया और बोन धर्म के अनुयायियों के साथ भेदभाव किया जाने लगा, तो उन्होंने बौद्ध धर्म की कुछ मान्यताएँ और कर्मकांड अपना लिए, जिसके चलते यह बौद्ध धर्म का एक संप्रदाय लगने लगा। जबकि वास्तव में दोनों धर्म अलग-अलग हैं। बोन मतावलंबियों के अनुसार उनका धर्म तोनपा शेनरब द्वारा स्थापित किया गया था, जो शाक्यमुनि गौतम से भी पहले के युग के बुद्ध थे।
तिब्बत की मूल आध्यात्मिक परंपरा, बोन परंपरा का मुख्य मठ मेनरी मठ है, जिसकी स्थापना 1405 में न्यामे शेरब ग्यालत्सेन ने की थी। डोलनजी, जो बोन मठ के नाम से भी जाना जाता है, यह मठ चीन द्वारा तिब्बत पर विजय प्राप्त करने के कारण 1967 में डोलनजी में फिर से बनाया गया, और अब यह बोन धर्म की शिक्षाओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह शिक्षा के प्रति अपने समर्पण के लिए जाना जाता है, जिसमें मेनरी डायलेक्टिक स्कूल आने वाले बोन विद्वानों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण स्थल के रूप में कार्य करता है। यहाँ मौजूद युंगडुंग बोन पुस्तकालय भी दुनियाभर में बोन साहित्य का सबसे बड़ा संग्रह है।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार बोन धर्म के तत्व सिर्फ तिब्बत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उनका ऐतिहासिक प्रभाव तिब्बत से दूर कई मध्य एशिया के क्षेत्रों तक भी मिलता था। इतिहासकार बोन धर्म को तिब्बती साम्राज्य से पहले आने वाले झ़ंगझ़ुंग राज्य से भी संबंधित मानते हैं। जबकि कई विद्वानों का मानना है कि बोन धर्म और हिन्दू धर्म के भगवान शिव में कई तीर्थ और अन्य समानताएँ हैं। मसलन, मानसरोवर और कैलाश पर्वत दोनों ही धर्मों में पवित्र माने जाते थे और हिंदुओं के लिए भगवान शिव के कारण विशेष महत्व रखते हैं। इसी तरह बहुत सी तिब्बत में उत्पन्न होने वाली नदियाँ भी हिंदुओं और बोन धर्मावलंबियों के लिए धार्मिक आस्था के केंद्र हैं।
इसलिए करते हैं जीभ दिखाकर अभिवादन:
18वीं शताब्दी में तिब्बत पर द्जुन्गर कबीलों का कब्जा हो गया। द्जुन्गरों ने स्थानीय धार्मिक परंपराओं का दमन शुरू किया और लामाओं (मोंक्स) और बोन धर्मावलंबियों को जेलों में डाल दिया। उनका मानना था कि लगातार मंत्र पढ़ने से जीभ का रंग काला पड़ जाता है, इसलिए द्जुन्गर अधिकारियों से मिलने आए हर व्यक्ति को अपनी जीभ दिखानी पड़ती थी, ताकि पहचान हो सके कि वह लामा है या नहीं। कालांतर में यह अभिवादन का तरीका बन गया। आज भी तिब्बत में लोग एक-दूसरे को जीभ दिखाकर अभिवादन करते हैं।
शिक्षा के बाद मिलती है ‘गेशे’ की उपाधि:
डोलनजी स्थित मेनरी विहार बोन धर्म के अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र है जहाँ शिक्षा के साथ भिक्षुओं के रहने और खाने का भी प्रबंध होता है। न्यूनतम 12 और अधिकतम 16 वर्ष तक भिक्षुओं को धर्म, दर्शन, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष आदि की शिक्षा दी जाती है। प्रवीणता प्राप्त करने पर भिक्षुओं को ‘गेशे’ की उपाधि मिलती है, जो पीएचडी के समकक्ष मानी जाती है। मौजूदा समय में मोनेस्ट्री में 200 से ज्यादा भिक्षु हैं, जिनमें मंगोलिया, म्यांमार, तिब्बत, नेपाल के भिक्षु भी शामिल हैं।