समृद्ध जनजातीय संस्कृति का अक्स है राउलाने मेला
हिमाचल प्रदेश का जिला किन्नौर अपने आप में अनूठा है और यहाँ के रीति-रिवाज़ हिमाचल प्रदेश के जनजातीय संस्कृति को परिभाषित करते है। जनजातीय क्षेत्र किन्नौर के बिना हिमाचल की खूबसूरती का वर्णन निसंदेह अधूरा है। यहाँ की बोली, रहन सहन, परिधान, खानपान और यहाँ के लोगों की जीवन शैली भी बिलकुल अलहदा है। शायद यही कारण है किन्नौर के दीदार के लिए न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी लोग यहाँ घूमने आते है।
जिला किन्नौर में स्थित कल्पा गांव प्रसिद्ध और लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो पूरी तरह प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। यह स्थान सुन्दर मंदिरो और मठो (मोनेस्ट्री) के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो किन्नौर में कई अनोखे त्यौहार मनाए जाते है लेकिन कल्पा में मनाये जाने वाले राउलाने मेले का अपना ही एक महत्व है। राउलाने एक ऐसा स्थानीय त्यौहार है जो सदियों से मनाया जा रहा है। किन्नौर में बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म का समागम है, बावजूद इसके यहाँ पर दोनों धर्म के लोग एक ही साथ इस पर्व को मनाते है, वो बात अलग है कि दोनों का तरीका कुछ हद तक एक जैसा नहीं होता।
राउलाने मेले में दोनों धर्म के लोग हिस्सा लेते है और राउलाने मनाने की प्रक्रिया सुबह से अपने कुल देवता की पूजा से शुरू की जाती है। कल्पा में गुप्त देवता का मंदिर भी है, जिनकी पूजा फाल्गुन मास के दौरान 7 दिन तक की जाती है। उस दौरान पुरुषों को महिलाओं की पारंपरिक वेश भूषा (दोढू) पहना कर मंदिर ले जाया जाता है। इस दौरान बजंतरी (वाद्ययंत्र बजाने वाले) के सामने विधिवत तरीके से पूजा की जाती है, जिसे निगारो पूजा प्रक्रिया कहा जाता है। खास बात यह है कि इस दौरान मदिरा को भी शामिल किया जाता है। इस पूजा को करने का बहुत महत्व है और इससे किन्नौर वासियों की अटूट आस्था जुड़ी है। कहा जाता है इस पूजा को न करने से दोष लगता है, हालांकि ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ कि इस मेले को न मनाया गया हो। लोग मानते है कि ऐसा करने से इनके कुल देवता प्रसन्न होते है और इलाके में सुख शांति बनी रहती है।
राउलाने मेले के दौरान राउलाने ( महिला ) और राउला ( पुरुष ) बनायें जाते है। दिलचस्प बात ये है कि राउलाने और राउला मुख्य रूप से पुरुषों को ही बनाया जाता है। राउलाने में महिलाओं को पारम्परिक वेशभूषा और जेवर के साथ ब्रह्मा, विष्णु के साथ मंदिर ले जाया जाता है। राउलाने के चेहरे को गाछी (बंद कमर वस्त्र) से ढक दिया जाता है। यदि चेहरा ढके हुए पुरुष को कोई पहचान ले तो बेहद शुभ माना जाता है। कल्पा के इस मेले को चीने क्यांग के नाम से भी जाना जाता है।
राउलाने मनाने का महत्व-
स्थानीय लोग बताते है कि फागुन के माह में देवी देवता स्वर्ग लोक के प्रवास पर होते है। इस माह में परियों ( स्थानीय बोली में सावनी) की नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती है। परियों के शक्तियों से क्षेत्र में कोई अप्रिय घटना न हो इसलिए उनकी शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है। किवदंतियों के अनुसार मेले के आखिरी दिन वापिस उन्हें उनके स्थान पर भेज दिया जाता है। इस मेले को देखने के लिए रिश्तेदारों को न्योता दिया जाता है और सभी महिलाएं और पुरुष स्थानीय और जनजातीय परिधान में सज धज के मंदिर प्रांगण में पहुंचते है और राउलाने बने व्यक्तियों के साथ हंसी ठिठोलियां करते है। इस मेले में किन्नौर के सभी तहसीलों से लोग शिरकत करते है, मेले का आनंद उठाते है और देवता का आशीर्वाद ग्रहण करते है।
मेले के साथ खान-पान भी विशिष्ट :
मेले के दौरान गांव के प्रत्येक घर में दु (बाड़ी), ओगला और फाफरे के पारंपरिक व्यंजन बनाए और सब्जियों के साथ परोसे जाते है। इसके अलावा मोमो, जुते, हलवा-पूरी और नमकीन चाय बनाई जाती है। इसके बाद ग्रामीण जुटे और तोषिम कार्यक्रम किया जाता है। इस दौरान किन्नौरी नाटी यानी कायंग का दौर चलता है व तीन दिन इस पर्व की धूम रहती है।