ढाढिया ठाकुर और चैहणी के अमर प्रेम की निशानी है ये कोठी
( words)

हिमाचल की वादियों में छिपी प्रेम कहानियां केवल लोकगीतों में ही नहीं, बल्कि पत्थरों और लकड़ियों में भी दर्ज हैं। जैसे ताजमहल मुमताज और शाहजहां के प्रेम की अमर निशानी है, वैसी ही एक प्रेमगाथा कुल्लू की बंजार घाटी में आज भी जीवित है चैहणी कोठी के रूप में।
बंजार से 5 किलोमीटर और शृंगा ऋषि मंदिर बग्गी से महज एक किलोमीटर दूर स्थित यह कोठी न सिर्फ स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है, बल्कि एक सच्चे प्रेम की जीवंत मिसाल भी। कहते हैं इस क्षेत्र के ठाकुर ढाढिया का अपनी पत्नी चैहणी से अपार प्रेम था। जब चैहणी का देहांत हुआ, तो उस प्रेमी ने अपने टूटे दिल की याद में यह आलीशान कोठी बनवाई। आज यह कोठी न सिर्फ स्थापत्य प्रेमियों को लुभाती है, बल्कि प्रेम की उस निशानी को भी हमेशा के लिए संजोए हुए है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि इस कोठी की ऊंचाई कभी 15 मंजिलों तक जाती थी। लेकिन 1905 के विनाशकारी भूकंप ने इसकी पांच मंजिलें गिरा दीं। फिर भी, आज भी 10 मंजिलें शान से खड़ी हैं। पहले पांच मंजिलें पत्थर की हैं और ऊपर की चिनाई ‘कुल्लुई काठकुणी’ शैली में लकड़ी और पत्थर से की गई है।
कोठी के पास स्थित है एक और अद्भुत संरचना है शृंगा ऋषि का भंडारगृह, जो कोट शैली में बना पांच मंजिला ढांचा है। इसमें देवता का अनाज, बर्तन और ढाढिया ठाकुर की तलवारें आज भी रखी गई हैं। इस कोठी में ठाकुर के वंशज आज भी रहते हैं, और शृंगा ऋषि का मोहरा अब भी धार्मिक अनुष्ठानों में गांव-गांव ले जाया जाता है। वहीं, इस कोठी से महज 20 फुट दूर स्थित है भगवान मुरली मनोहर का प्राचीन मंदिर, जिसका निर्माण मंडी के राजा मंगल सेन ने करवाया था। मंदिर की मूर्ति मंगलौर से मंगवाई गई थी, और आज भी यह मंदिर होली व जन्माष्टमी पर उल्लास का केंद्र होता है।
बंजार से 5 किलोमीटर और शृंगा ऋषि मंदिर बग्गी से महज एक किलोमीटर दूर स्थित यह कोठी न सिर्फ स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है, बल्कि एक सच्चे प्रेम की जीवंत मिसाल भी। कहते हैं इस क्षेत्र के ठाकुर ढाढिया का अपनी पत्नी चैहणी से अपार प्रेम था। जब चैहणी का देहांत हुआ, तो उस प्रेमी ने अपने टूटे दिल की याद में यह आलीशान कोठी बनवाई। आज यह कोठी न सिर्फ स्थापत्य प्रेमियों को लुभाती है, बल्कि प्रेम की उस निशानी को भी हमेशा के लिए संजोए हुए है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि इस कोठी की ऊंचाई कभी 15 मंजिलों तक जाती थी। लेकिन 1905 के विनाशकारी भूकंप ने इसकी पांच मंजिलें गिरा दीं। फिर भी, आज भी 10 मंजिलें शान से खड़ी हैं। पहले पांच मंजिलें पत्थर की हैं और ऊपर की चिनाई ‘कुल्लुई काठकुणी’ शैली में लकड़ी और पत्थर से की गई है।
कोठी के पास स्थित है एक और अद्भुत संरचना है शृंगा ऋषि का भंडारगृह, जो कोट शैली में बना पांच मंजिला ढांचा है। इसमें देवता का अनाज, बर्तन और ढाढिया ठाकुर की तलवारें आज भी रखी गई हैं। इस कोठी में ठाकुर के वंशज आज भी रहते हैं, और शृंगा ऋषि का मोहरा अब भी धार्मिक अनुष्ठानों में गांव-गांव ले जाया जाता है। वहीं, इस कोठी से महज 20 फुट दूर स्थित है भगवान मुरली मनोहर का प्राचीन मंदिर, जिसका निर्माण मंडी के राजा मंगल सेन ने करवाया था। मंदिर की मूर्ति मंगलौर से मंगवाई गई थी, और आज भी यह मंदिर होली व जन्माष्टमी पर उल्लास का केंद्र होता है।
यहां के लोग कहते है कि चैहणी कोठी केवल एक इमारत नहीं, बल्कि प्रेम, विरासत, और संस्कृति का त्रिवेणी संगम है। इसकी लकड़ी की शहतीरें, झरोखे और पत्थरों में छुपा इतिहास आज भी सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है।