हाटकोटी मंदिर में विराजमान हैं माँ महिषासुर मर्दिनी
शिमला से लगभग 110 कि.मी. दूर, शिमला-रोहड़ू मार्ग पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे धान के खेतों के बीच स्थित माता हाटकोटी का मंदिर लाखों भक्तों केलिए आस्था का केंद्र हैं। मां हाटकोटी के मंदिर में एक गर्भगृह है जिसमें मां की विशाल मूर्ति विद्यमान है यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी की है। इतनी विशाल प्रतिमा हिमाचल में ही नहीं बल्कि भारत के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती। मात की ये प्रतिमा किस धातु की है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।
लोकगाथा के अनुसार
एक लोकगाथा के अनुसार इस देवी के संबंध में मान्यता है कि बहुत वर्षो पहले एक ब्राह्माण परिवार में दो सगी बहनें थीं। उन्होंने अल्प आयु में ही सन्यास ले लिया और घर से भ्रमण के लिए निकल पड़ी। उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी। एक बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है,उसने यहां एक खेत में आसन लगाकर ईश्वरीय ध्यान किया और ध्यान करते हुए वह लुप्त हो गई। जिस स्थान पर वह बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी। इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की उस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बबल रियासत के राजा को दी। जब राजा ने इस घटना को सुना तो वह तत्काल पैदल चलकर यहां पहुंचा। राजा ने यहां पर मंदिर बनाने का निश्चय ले लिया। लोगों ने उस कन्या को देवी रूप माना और गांव के नाम से इसे 'हाटेश्वरी देवी' कहा जाने लगा।
इसलिए विशेष हैं मंदिर
- यह मंदिर समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के किनारे समतल स्थान पर स्थित है।
- कहा जाता है मंदिर के साथ लगते सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी, जहां पर पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए।
- यह स्थान हाटकोटी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- माता हाटेश्वरी का मूल स्थान ऊपर पहाड़ों में घने जंगल के मध्य खरशाली नामक जगह पर है।
- मन्दिर के बिल्कुल बांयी ओर बड़े-छोटे पत्थरों को तराश कर, छोटे-छोटे पांच कलात्मक मन्दिर बनाए गये है। इन मंदिरों का निर्माण पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया है ।
- यहां के स्थायी पुजारी ही गर्भगृह में जाकर मां की पूजा कर सकते हैं।
- मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के बाई ओर एक ताम्र कलश लोहे की जंजीर से बंधा है जिसे स्थानीय भाषा में चरू कहा जाता है। इनमें यज्ञ के दौरान ब्रह्मा भोज के लिए बनाया गया हलवा रखा जाता है।
- यह मंदिर शिखराकार नागर शैली में बना हुआ था बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया।
- मंदिर में महिषासुर र्मदिनी की दो मीटर ऊंची कांस्य की प्रतिमा है। इसके साथ ही शिव मंदिर है।
- मंदिर द्वार को कलात्मक पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। छत लकड़ी से र्निमित है, जिस पर देवी देवताओं की अनुकृतियों बनाई गई हैं।
- मंदिर लकड़ी और पत्थर से निर्मित कलात्मक शिल्पकारी का अद्भुत नमूना है l
- मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मी, विष्णु, दुर्गा, गणेश आदि की प्रतिमाएं हैं। इसके अतिरिक्त यहां मंदिर के प्रांगण में देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं।बताया जाता है कि इनका निर्माण पांडवों ने करवाया था।
- मंदिर की ओर जाती सड़क के दोनों ओर सेब के बगीचे है, और खूब घने देवदार के जंगल हैंl
- मंदिर को नवरात्रों के दौरान खूब सजाया जाता है।नवरात्रों में यहाँ विशेष पूजा का आयोजन होता हैं ।