यहाँ माता ने किया था महिषासुर का वध
श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी है प्रसिद्ध
हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में मां नैना देवी का भव्य और सुन्दर मंदिर स्थित है। श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ पर माँ ने महिषासुर का वध किया था। किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था। इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया। राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा सके। देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई। महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा। देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी। पर लड़ाई के दौरान देवी ने दानव को परास्त कर उसका वध किया।
यहाँ गिरे थे माता सती के नयन :
नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है, जिनमें से एक नैना देवी हैं। इन सभी शक्ति पीठों की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई। यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। इस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि नैना देवी में माता सती के नयन गिरे थे।
ये कथा भी हैं प्रचलित:
मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है। एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है।इसके पश्चात एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है। नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया। इसके बाद उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया गया।
गुरु गोबिंद सिंह ने लिया था आशीर्वाद :
मंदिर से जुडी एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है।जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया। आशीर्वाद मिलने के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया।
जाने नैना देवी मंदिर के बारे में:
- नैना देवी 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि यहीं सती की आंखें गिरी थीं।
- यह माँ शक्ति का एक सिद्ध पीठ है जो शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर है। नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान NH-21 से जुड़ा हुआ है।
- श्रावण अष्टमी, चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है।
- मंदिर में एक पीपल का पेड़ भी भक्तिभाव से पूजा जाता है। यह भी कई शताब्दी पुराना है।
- मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 21 पर स्थित है। यहां से नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। आनंदपुर साहिब और कीरतपुर साहिब से यहां के लिए टैक्सियां किराए पर मिल जाती हैं।
- मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान गणेश और हनुमान की प्रतिमा है। मंदिर के गर्भगृह में तीन मुख्य मूर्तियां हैं। दाईं ओर माता काली, बीच में नैना देवी और बाईं ओर भगवान गणेश विराजमान हैं।
- बेस कैंप से चोटी के मंदिर तक की दूरी डेढ़ घंटे में आराम से पूरी की जा सकती है।
- त्योहारों और मेलों के दौरान भवन से वापस आने और जाने के लिए अलग-अलग रास्ते बनाए गए हैं, ताकि दर्शन सुविधाजनक तरीके से किया जा सके।