ममलेश्वर महादेव मंदिर : यहाँ युगल रूप में स्थापित है शिव-पार्वती
देवों के देव महादेव के इस मंदिर में भोलेनाथ और माता पार्वती युगल रूप में स्थापित हैं और यहाँ आने वाले भक्त खाली हाथ नहीं लौटते। हम बात कर रहे है ममलेश्वर महादेव मंदिर की। शिमला से लगभग 100 किमी की दूरी पर करसोग शहर में स्थित यह मंदिर एक ऊंचे मंच पर स्थित पत्थर और लकड़ी का बना है। लोगों की मान्यता है कि यहां 5 हजार साल पहले पांडवों ने समय बिताया था। मंदिर के मुख्य भवन की चारों ओर दीवारों पर काष्ठ मूर्तियां बनी हैं। मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की है। लकड़ी की दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी है, जिसमें देवी-देवताओं के साथ अन्य मूर्तियां उकेरी गई हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर व मां पार्वती की मूर्ति युगल के रूप में स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर भी शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है, जिसमें शिव-पार्वती की मूर्तियां युगल के रूप में हैं।
यह मंदिर सतयुग, त्रेत , द्वापरयुग व कलयुग का गवाह है ।इस स्थान पर भृगु ऋषि जी के द्वारा तपस्या की गई थी। हिमयुग के अंत में किन्नर कैलाश में हुए पृथ्वी के भीतर के बदलाव के कारण किन्नर इस स्थान पर आ गये और भृगु ऋषि ने एक किन्नर लड़की से विवाह किया जिसका नाम माम्लिषा था और उसके नाम पर ही इस स्थान का नाम ममेल पड़ । इनकी दो पुत्रियाँ हुई इमला व बिमला, जो की नदियों के रूप में यहाँ स्थित है और पुरे क्षेत्र की भूमि को सिंचित करती है।
मंदिर में रखा गया है भीम का ढोल
इस मंदिर का पांडवो से गहरा नाता है। पांडव यहाँ अपने अजातवास के समय आये थे। इस मंदिर में एक प्राचीन ढोल है जिसके बारे में कहा जाता है की ये भीम का ढोल है। ये ढोल भेखल की लकड़ी से बना है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित पांच शिवलिंगों के बारे में कहा जाता है की इसकी स्थापना स्वयं पांडवों ने की थी। मंदिर में सबसे प्रमुख गेहूं का दाना है जिसे की पांडवों के समय का बताया जाता है। यह गेहूं का दाना एक खास प्रकार के डिब्बे में रखा जाता है।
महाभारत काल से जल रहा है अग्निकुंड
इस मंदिर में एक धुना है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां जो अग्निकुंड है वो महाभारत काल से निरंतर जल रहा है। इस के पीछे एक कहानी है की जब पांडव अज्ञातवास में घूम रहे थे तो वे कुछ समय के लिए इस गाँव में रूके। तब इस गांव में एक राक्षस ने एक गुफा में डेरा जमाया हुआ था। उस राक्षस के प्रकोप से बचने के लिये लोगों ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया था कि वो रोज एक आदमी को खुद उसके पास भेजेंगें उसके भोजन के लिये जिससे कि वो सारे गांव को एक साथ न मारे। एक दिन उस घर के लडके का नम्बर आया जिसमें पांडव रूके हुए थे। उस लडके की मां को रोता देख पांडवो ने कारण पूछा तो उसने बताया कि आज मुझे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना है। अतिथि के तौर पर अपना धर्म निभाने के लिये पांडवो में से भीम उस लडके की बजाय खुद उस राक्षस के पास गया। भीम जब उस राक्षस के पास गया तो उन दोनो में भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उस राक्षस को मारकर गांव को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। कहते है की भीम की इस विजय की याद में ही यह अखंड धुना चल रहा है।
- यह मंदिर अपनी खूबसूरती के साथ अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है।
- ममलेश्वर मंदिर में एक अग्निकुंड है, जो हमेशा जलता रहता है। मान्यता है कि 5 हजार साल पहले पांडवों ने इस अग्निकुंड को जलाया था और तब से यह जल रहा है।
- यहाँ के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पूजा करने के लिए पांडवों ने इस अग्निकुंड को बनवाया था।
- ममलेश्वर महादेव के मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है। कहा जाता है कि सावन के महीने में यहां पार्वती और शिव कमल पर बैठकर मंदिर में मौजूद रहते हैं।
- कहा जाता है कि ममलेश्वर मंदिर में 5 हजार साल पुराना गेहूं का दाना है, जिसका वजन 250 ग्राम है। मान्यता है कि इसे पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान खाने के लिए उगाया था।
- ममलेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए पांच शिवलिंग का एक साथ मौजूद होना भी इस मंदिर को खास बनाता है।
- कई साल पहले मंदिर के पास कई शिवलिंग, शिव और विष्णु भगवान की मूर्तियां भी मिली थीं।
- ममलेश्वर मंदिर में एक बड़ा ढोल भी रखा गया है। लोगों का कहना है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इसे बनवाया था। भीम खाली समय के दौरान इस ढोल को बजाया करते थे और वहां से जाते समय उन्होंने इन ढोल मंदिर में रख दिया था।
- मंदिर में पांच शिवलिंग भी स्थापित है , मान्यता है कि यह पांडवों ने ही यहां स्थापित किए हैं।
- इस मंदिर के पास एक प्राचीन विशाल मंदिर और है जो की सदियों से बंद है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्राचीन समय में भूडा यज्ञ किया जाता था जिसमे की नर बलि भी दी जाती थी। इस मंदिर में केवल पुजारी वर्ग को ही जाने की आज्ञा है।