श्री कृष्ण जन्म कथा : जानिए द्वापर युग में उस आधी रात को क्या हुआ था
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 23 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से पापों का नाश और सुख की वृद्धि होती है। इस वर्ष श्री कृष्ण जन्म का मुहूर्त रात्रि में 10:44 से 12:40 के मध्य है। इस शुभ समय में भगवान की विधि विधान से पूजा करने से सभी मनोरथ पुरे होते है। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा, और लक्ष्मी का स्मरण भी अवश्य करना चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म करीब पांच हज़ार वर्ष पूर्व द्वापरयुग में हुआ था।
माता देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे श्री कृष्ण
स्कंद पुराण के अनुसार द्वापरयुग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन राज करते थे। उनके क्रूर बेटे कंस ने अपने पिता को सिंहासन से हटा दिया और खुद राजा बन गया। कंस का अत्याचार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कंस की एक बहन देवकी थी जिसका विवाह वासुदेव से हुआ। कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी रास्ते में एक आकाशवाणी हुई, 'हे कंस जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है उसका ही आठवां पुत्र तेरा काल होगा।' यह सुनते ही कंस ने देवकी और वासुदेव को बंधक बना लिया। कंस ने सोचा कि अगर वह देवकी के हर पुत्र को मारता गया तो वह अपने काल को हराने में कामयाब होगा। इसके बाद देवकी की जैसे ही कोई संतान पैदा होती, कंस उसे मार देता।
सात संतानों के मारे जाने के बाद देवकी के 8वें पुत्र के जन्म की बारी आई। पर इस बार कंस की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। अष्टमी की रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जैसे ही जन्म हुआ, उसी समय संयोग से नंदगांव में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ।ईश्वर की कृपा से वासुदेव के हाथ-पैरों में बंधी सारी बेड़िया अपने आप खुल गईं, कारागार के दरवाजे खुल गये और सभी पहरेदार मूर्छित हो गए। वासुदेव ने एक टोकरी में नवजात शिशु (श्री कृष्ण )को रखा और नंद गांव की ओर चल पड़े। पूरे मथुरा में उस दौरान तेज बारिश हो रही थी ऐसे में शेषनाग स्वयं शिशु के लिए छतरी बनकर वासुदेव के पीछे-पीछे चलने लगे।
वासुदेव यमुना पार कर नंदगांव पहुंचे और यशोदा के साथ बाल कृष्ण को सुला दिया और स्वयं कन्या को लेकर मथुरा गये। यह कन्या दरअसल माया का एक रूप थी। वासुदेव जैसे ही कारागार पहुंचे, सबकुछ सामान्य और पहले की तरह हो गया। कंस को आठवें संतान के जन्म की खबर पहरेदारों से मिली तो वह उसे मारने वहां आ पहुंचा। कंस ने कन्या को अपने गोद में लिया और एक पत्थर पर पटकने की कोशिश की। हालांकि,वह कन्या आकाश में उड़ गई और माया का रूप ले लिया। साथ ही उसने कहा,' तुझे मारने वाला तो पहले ही कहीं और सुरक्षित पहुंच चुका है।'
कंस बेहद क्रोधित हुआ और कृष्ण की खोज शुरू कर दी। कंस ने उन्हें मारने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा। आखिर में श्रीकृष्ण ने युवावस्था में कंस का वध किया अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकाला।