हिमाचल: हाईकोर्ट की सरकार को फटकार, वित्त-सचिव 10 करोड़ के ड्राफ्ट के साथ तलब
हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा न्यायपालिका के लिए आवंटित बजट न मिलने से अदालतों का सामान्य कामकाज बाधित हो रहा है। कोर्ट ने सख्त निर्देश दिया कि वित्त सचिव 10 करोड़ रुपए का ड्राफ्ट लेकर 13 नवम्बर को अदालत में पेश हों। अन्यथा सरकार के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की कार्यवाही शुरू की जाएगी। यदि राशि जमा कर दी जाती है तो वित्त सचिव की उपस्थिति आवश्यक नहीं।
कोर्ट ने कहा- रिटायर जस्टिस और अदालतों के प्रशासनिक खर्चों के भुगतान में निरंतर देरी की जा रही है। ₹6.88 करोड़ का बकाया केवल प्रशासनिक खर्चों पर है, जबकि ₹4.07 करोड़ की राशि नए वाहनों की खरीद के लिए लंबित है। कुल मिलाकर ₹10 करोड़ से अधिक का भुगतान राज्य सरकार से बकाया है। कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार ने 7 नए जिला न्यायाधीशों और 39 सिविल जजों की अदालतों की स्थापना के प्रस्ताव पर भी कार्रवाई नहीं की है। वित्त विभाग हर बार वित्तीय संसाधन नहीं हैं कहकर इनकार कर देता है।
हिमाचल के चीफ जस्टिस गुरमीत सिंह संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा की बैंच ने यह मामला सुना। राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल अनूप रत्न पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया- मामला संवेदनशील होने के कारण अब सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू को निर्णय को बोल दिया गया है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट नीरज गुप्ता को न्यायिक सहायक नियुक्त किया हैं, उन्होंने राज्य के तर्कों का विरोध करते हुए कहा कि सरकार लगातार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रही है। उन्होंने बताया कि अदालत ने कहा कि सरकार ने खुद तो मंत्री-विधायकों की सैलरी बढ़ा दी है और दूसरे विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों के वित्तीय लाभ देय है।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि न्यायपालिका के खर्चों को रोकना न्यायिक कार्य में हस्तक्षेप है, जो कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की धारा 2(c), 2(i) और 3 (i) के तहत दंडनीय अपराध है। राज्य सरकार को न्यायपालिका के लिए बजट आवंटन पर पारदर्शी नीति बनानी होगी, ताकि लंबित वेतन, चिकित्सा और भत्तों के भुगतान समय पर सुनिश्चित बनाया जा सके। ऐसा नहीं किया गया तो सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव और गहराएगा।
