यहाँ पांडवों के पुरोहित श्री धौम्य ऋषि ने की थी तपस्या
देवभूमि हिमाचल में महादेव शिव के अनेक मंदिर हैं। महादेव के इन्हीं मंदिरों में से एक है जिला ऊना जिला के बंगाणा उपमंडल के तलमेहड़ा गांव की रामगढ़ धार पर स्थित धौम्येश्वर सदाशिव मंदिर, जो भी लाखों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि करीब 5500 वर्ष पहले महाभारत काल में पांडवों के पुरोहित श्री धौम्य ऋषि ने तीर्थ यात्रा करते हुए इसी ध्यूंसर नामक पर्वत पर शिव की तपस्या की थी। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा था, जिस पर ऋषि ने वर मांगा कि इस पूरे क्षेत्र में आकर धौम्येश्वर शिव की पूजा करने वाले की मनोकामनाएं पूरी हो। मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव तथास्तु कह कर अंर्तध्यान हो गए थे। इसके बाद से जो भी श्रद्धालु मंदिर पहुंच कर सच्चे मन से मन्नत मांगता है, तो उस भक्त की मुराद पूरी होती है। मंदिर को धौम्येश्वर शिवलिंग, ध्यूंसर महादेव और सदाशिव के नाम से पुकारा जाता है।
मंदिर के वर्तमान पुजारी राकेश शर्मा व सिद्ध राज शास्त्री के मुताबिक 1948 में पहली बार जिला के इस सबसे ऊंचे स्थल पर मौजूद पवित्र शिवलिंग के स्थान पर शिवरात्री का आयोजन किया गया था। पुजारी की मानें तो 1937 में मद्रास के एक सैशन जज स्वामी ओंकारा नंद गिरी को स्वप्र में भगवान शिव ने दर्शन देते हुए कहा कि पांडवों के अज्ञातवास के समय उनके पुरोहित धौम्य ऋर्षि द्वारा स्वयंभू शिवलिंग अर्चना की थी। वे शिवलिंग की खोज कर पूजा अर्चना करें। स्वामी ओंकारा नंद गिरी ने स्वप्र के आधार पर शिवलिंग को काफी जगह खोजा, लेकिन नहीं मिला। घूमते-घूमते सन् 1947 में स्वामी सोहारी पहुंच गए। सोहारी स्थित सनातनन उच्च विद्यालय के प्रधानाचार्य शिव प्रसाद शर्मा डबराल के सहयोग से स्वामी ओंकारा नंद गिरी जी शिवलिंग के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि सबसे पहले आठ बाय आठ फुट का पहला मंदिर बनाया था। 1988 तक स्वामी ओंकारानंद गिरी जी इस मंदिर का संचालन करते रहे, उनके उपरांत मंदिर समिति इसके प्रबंधों का जिम्मा संभाले हुए हैं।
अखंड धूना जगाने से हुआ वट वृक्ष हरा-भरा
करीब 23 वर्षों से प्रकाश चंद बाबा जी मंदिर में अखंड धूना जला रहे है। प्रकाश चंद बाबा की माने तो पांडवों के समय के पश्चात शिवलिंग के समीप वट वृक्ष सुख गया था। इसके बाद वर्ष 1996 में अखंड धूना जलाया गया, जिसके बाद वृक्ष धीरे-धीरे हरा भरा हो चला गया। माता चिंतपूर्णी की तर्ज पर श्रद्धालुओं द्वारा वट वृक्ष पर मोली बांधकर मुरादें मांगते है, जो कि पूरी होती है। प्रकाश चंद ने बताया कि अखंड धूने से सांस की बीमारी, फोड़ा फूंसी सहित चर्म रोगों से भी राहत मिलती है।
बारिश न होने पर पिंडी को भरा जाता है जल से
मान्यता है कि गर्मियों के दिनों अगर सूखा पड़ता है तो शिवलिंग को पूरा जल से भर दिया जाता है। सूखा पड़ने पर सभी ग्रामीण सदाशिव मंदिर पहुंचते है और पूजा अर्चना करते हैं। शिवलिंग को ऊपर तक पानी से भरने पर जोरदार बारिश होती है। ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ। सूखा पड़ने पर मंदिर में ग्रामीण एकत्रित हुए और शिव शक्ति स्वरूप वाले शिवलिंग को पानी से भर दिया, जिसके बाद जोरदार बारिश होती है।
शिव शक्ति स्वरूप शिवलिंग बदलता है रंग
जंगलो के बीच चट्टानों पर स्थित शिव शक्ति स्वरूप वाला शिवलिंग अक्सर रंग बदलता है। मंदिर के पुजारी की माने तो स्वयंभू शिवलिंग समय-समय पर अनेक रंग बदलता है, जो कि अद्भुत दिखता है। स्वयंभू शिवलिंग कभी हरा, कभी लाल तो कभी पत्थर के रंग का हो जाता है। शिवलिंग को फूलों से सजाया जाता है और सदा चांदी के छतर से इसे शोभित रखते हैं। हैरत की बात है कि हर वर्ष शिवरात्रि के दिन शेष नाग दर्शन देते हैं।