सत्यानंद स्टोक्स : एप्पल मैन, स्वतंत्रता सैनानी और सच्चे हिंदुस्तानी
3 दिसंबर, 1921 को दो पुलिसकर्मी पंजाब मेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में घुस गए और एक अमेरिकी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लाहौर पुलिस स्टेशन ले गए। उस अमरीकी को जेल की सजा सुनाई गई और फिर जून 1922 में रिहा कर दिया गया। क्या आप जानते हैं कि यह अमेरिकी कौन था ? ये थे सत्यानंद (सैमुअल इवांस) स्टोक्स। वो सत्यानंद जिन्हें फ़िलाडेल्फिया, पेनसिल्वेनिया से आए हुए एप्पल मैन के रूप में जाना जाता है। हिमाचल की जनता को ये तो मालूम है कि 1916 में स्टोक्स ने ही हिमाचल प्रदेश में सेब लगाने की शुरुआत की थी, मगर वो लोग बहुत कम है जो स्टोक्स को पूरी तरह जानते है। स्टोक्स ने सिर्फ सेब लाकर हिमाचल की अर्थव्यवस्था में क्रन्तिकारी बदलाव ही नहीं लाया बल्कि वो एक स्वतंत्रता सैनानी भी थे, जो भारत की आज़ादी के लिए लड़े। स्टोक्स विदेश से आए थे पर दिल से भारतीय बन चुके थे। उनकी पोती आशा शर्मा अपनी किताब "अमेरिकन इन खादी” में लिखती है कि खुद महात्मा गाँधी ने स्टोक्स के बारे में ये लिखा था कि जब तक भारत में अंद्रेव्स, स्टोक्स और पिअरसन जैसे लोग है तब तक हर अंग्रेज को भारत से बाहर खदेड़ने की कामना हम नहीं कर सकते।
अब ऊपर लिखी इन पंक्तियों की पूरी कहानी आपको बताते है कि आखिर ऐसा क्या हुआ की स्टोक्स को गिरफ्तार कर लिया गया। 3 दिसंबर, 1921 को स्टोक्स लाला लाजपत राय और गोपी चंद भार्गव के साथ लाहौर में पंजाब प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भाग लेने के लिए जा रहे थे। सबको लगा कि उन्हें इसीलिए गिरफ्तार किया जा रहा था, लेकिन वास्तव में उन्हें द ट्रिब्यून के लिए लेख लिखने पर गिरफ्तार किया गया था, जो कि अंग्रेज़ों के हिसाब से देशद्रोह की भावना को बढ़ावा दे रहा था। हालाँकि आशा शर्मा अपनी किताब में लिखती है कि ऐसा कुछ था नहीं था। स्टोक्स के दृढ़ विश्वास और न्याय की उनकी पूर्ण भावना, समानता और निष्पक्षता की उनकी छवि उनके लेखों में दिखाई देती है। पहाड़ियों के सामाजिक और आर्थिक विकास में उनके अपार योगदान के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
सैमुअल इवांस का जन्म 16 अगस्त, 1882 को फिलाडेल्फिया के एक प्रतिष्ठित और धनी क्वेकर परिवार में हुआ था। क्वेकर ईसाइयों का एक समूह है जो दैनिक जीवन में बड़ी सादगी, मौन और पूजा में विश्वास करते हैं। सैमुअल इवांस का जीवन भी इस सादगी से भरा रहा। 1904 में, सैमुअल इवांस फ़िलेडैल्फ़िया छोड़कर भारत आ गए और यहां आ कर सबाथू में बने लेप्रोसी होम में कोढ़ से पीड़ित मरीज़ों की सेवा करने लगे। स्टोक्स ने अमीर परिवार की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ सबाथु जैसी छोटी जगह में रह कर लोगों की सेवा करना चुना था। डॉ. कार्लेटन उत्तर ( लेप्रोसी होम के प्रभारी) युवा अमेरिकी स्वयंसेवक के काम से खुश थे। 1905 की गर्मियों में, डॉ कार्लेटन ने उन्हें कोटगढ़ भेज दिया। स्टोक्स एकांत जीवन जीना चाहते थे लेकिन कांगड़ा में 1905 के भूकंप ने उन्हें पीड़ितों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें पीड़ितों को पैसे बांटने का काम दिया गया था जो उन्होंने ईमानदारी से किया।
सत्यानंद (सैमुअल इवांस) स्टोक्स की प्रेमकहानी भी बेहद दिलचस्प है। 12 सितंबर, 1912 को कोटगढ़ के सेंट मैरी चर्च में एक पहाड़ी ईसाई लड़की, एग्नेस से शादी की। उन्होंने इसे पारंपरिक पहाड़ी तरीके से किया- स्थानीय बैंड और अचकन और चूड़ीदार पहने। सैमुअल इवांस ने अपनी शादी के बाद भारत के इतिहास का गंभीरता से अध्ययन करना शुरू किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारत पश्चिम का अनुकरण करके नहीं बल्कि आंतरिक विकास और अपनी मौजूदा सभ्यता में कमियों को दूर करके वास्तव में महान बन सकता है। हर वास्तविक भारतीय यही सोचता है, लेकिन एक अमेरिकी से भारतीय मान्यताओं के प्रति ये सम्मान नया था।
फिर प्रथम विश्व युद्ध आया और महात्मा गांधी ने घोषणा की कि ब्रिटेन की ज़रूरत के वक्त पर मदद की जानी चाहिए। स्टोक्स ने सेना में शामिल होने का फैसला किया और अक्टूबर 1917 में वे वर्दी में थे। उन्हें सेना के लिए लोगों की भर्ती करने की जिम्मेदारी दी गई थी क्योंकि वे हिंदी जानते थे। 1918, में युद्ध समाप्त होने के साथ, भारत में राजनीतिक उत्साह चरम पर पहुंच गया। गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम प्रत्येक सदन का नारा बन गया। स्टोक्स ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया और 1920 में नागपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की बैठक में भाग लिया। 1921 में वे जेल गए। उन्हें जेल में डालने की बात को सरकार ने दबाने की कोशिश की लेकिन ये समाचार में आ ही गया। गांधी ने अपनी साप्ताहिक पत्रिका यंग इंडिया के फ्रंट पेज पर लिखा, " यह सरकार की ओर से एक अनूठा कदम है, श्री स्टोक्स एक अमेरिकी हैं जिन्होंने खुद को एक भारत के हिसाब से ढाला है और जिन्होंने भारत को अपना घर इस तरह से बनाया है कि शायद ही कोई अन्य अमेरिकी या अंग्रेजी व्यक्ति ऐसा कर पाए। स्टोक्स ने अपने पुरे जीवन में भारत को सेवा प्रदान की है। इन्हें युद्ध और उच्चतम तिमाहियों में सरकार के शुभचिंतक के रूप में जाना जाता है, कोई भी इन पर देशद्रोह का संदेह नहीं कर सकता है। लेकिन यह कि वह एक भारतीय की तरह महसूस कर रहे है और एक भारतीय की तरह, अपने दुखों को साझा कर रहे है, भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे है, सरकार की आलोचना कर रहे है , ये सरकार को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा। सरकार के लिए उन्हें स्वतंत्र छोड़ पाना असहनीय था। उसकी गोरी त्वचा भी उसकी बेगुनाही साबित नहीं कर पाई "।
जेल से बाहर आकर स्टोक्स ने अपने गांव बारोबाग में एक स्कूल शुरू करने के मिशन पर लग गए , जिसका प्राथमिक खंड 1 अप्रैल, 1923 को शुरू कर दिया गया। स्टोक्स का एक बेटा तारा आठ साल की उम्र खो गया था, उनके खोए हुए बेटे तारा के नाम पर ही स्कूल का नाम तारा स्कूल रखा गया। यह एक हिंदी माध्यम का स्कूल था जिसमें सुबह की प्रार्थना में धार्मिक और देशभक्ति के गीत होते थे। सैमुअल इवांस यहां गुरुओं में से एक थे। तदोपरांत उनके परिवार ने 4 सितंबर, 1932 को बारोबाग में एक साधारण समारोह में हिंदू धर्म ग्रहण किया और वो सत्यानंद बन गए। अपने पूरे जीवन में, उन्होंने अपने स्वास्थ्य को जोखिम पर रख कर मानवता के लिए बहुत कुछ किया। वे एक अमेरिकी की खाल में एक सच्चे भारतीय थे। निश्चित रूप से वह एक एप्पल मैन से कहीं अधिक थे। 14 मई, 1946 को अपनी खराब तबियत के चलते, उन्होंने तारा स्कूल बंद कर दिया। राज्य सरकार ने राज्य बागवानी विश्वविद्यालय में नौणी (सोलन) में पुस्तकालय का नाम सत्यानंद स्टोक्स पुस्तकालय रखा है।