आठ महीने पानी में समाहित होता है पांडवों द्वारा निर्मित ये मंदिर
कांगड़ा के ज्वाली क्षेत्र के पास स्थित पौंग डैम झील में बाथू की लड़ी मंदिर अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है। दरअसल ये मंदिर करीब आठ महीने तक पानी के अंदर रहता है और सिर्फ चार महीने के लिए ही भक्तों को दर्शन देता है। इस मंदिर को बाथू मंदिर के नाम से जाना जाता है और स्थानीय भाषा में ‘बाथू की लड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इन मंदिरों को पांडवों ने बनाया था। आश्चर्य वाली बात ये है कि लंबे समय तक डूबे रहने के बाद भी मंदिर की संरचना में कोई बदलाव नहीं आया है। ऐसा इसलिए क्याेंकि मंदिर बा थू नाम के शक्तिशाली पत्थर से बना है। यहां पर आप भगवान गणेश और काली की मूर्तियों को पत्थर पर उकेरा हुआ देख सकते हैं। मंदिर के अंदर शेषनाग पर आराम करते हुए विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित है।
मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा आठ छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर का संबंध महाभारत से है। यह मंदिर पंजाब के जालंधर से करीब 150 किमी दूर स्थित महाराणा प्रताप सागर झील में पौंग बांध की दीवार से 15 किमी दूर एक टापू पर बना हुआ है। बाथू की लड़ी का मंदिर साल के 8 महीने तक महाराणा प्रताप सागर झील में डूबा रहता है। जैसे ही पोंग बांध झील का पानी का स्तर बढ़ता है, पानी के नीचे मंदिर की एक अलग ही दुनिया बन जाती है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण स्थानीय राजा द्वारा किया गया था। जबकि कुछ लोग इसे पांडवों से जोड़ते हैं। उनका मानना है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहीं अपनी स्वर्ग की सीढ़ी बनाने की कोशिश की थी। हालांकि, इसे बनाने में वो सफल नहीं हो सके क्योंकि इन सीढ़ियों का निर्माण उन्हें एक रात में करना था। फिर पांडवों ने स्वर्ग तक सीढ़ियां बनाने के लिए भगवान कृष्ण की मदद मांगी थी। श्रीकृष्ण ने 6 महीने की एक रात कर दी, उसके बाद भी स्वर्ग की सीढ़ियां तैयार नहीं हो सकी। ऐसे में पांडवों का काम अढ़ाई सीढ़ियों से अधूरा रह गया और सुबह हो गई। आपको जानकर हैरत होगी कि आज भी इस मंदिर में तथाकथित स्वर्ग में जाने वाली 40 सीढ़ियां मौजूद हैं, जिसे आप देख सकते है।
पक्षी अभ्यारण्य के रूप में आरक्षित क्षेत्र
ये सारा इलाका भारत सरकार द्वारा प्रवासी पक्षियों के आश्रय के लिए पक्षी अभयारण्य या आर्द्रभूमि (वैटलैंड) के रूप में संरक्षित है, जिसमें किसी भी तरह का भवन निर्माण वर्जित है। पक्षियों पर अध्ययन के लिए आने वाले छात्रों, वैज्ञानिकों या प्रकृति प्रेमियों के लिए ये सबसे उत्तम जगह है। विदेशी सैलानियों का यहां आना-जाना लगा रहता है। खुले मैदान को पार करके जलाशय के तट पर पहुंच कर वहां का नजारा देखते ही बनता है। जलाशय में उठने वाली लहरें समुद्र तट जैसा रोमांच अनुभव करवाती हैं। अप्रैल से जून के महीनों में इस मंदिर के दर्शन के लिए उत्तम हैं। शेष 8 महीने तक ये मंदिर पानी में जलमग्न रहता है, तो उस दौरान इस मंदिर का ऊपरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इस मंदिर के आसपास कुछ छोटे-छोटे टापू बने हुए हैं, इनमें से एक पर्यटन की दृष्टि से प्रसिद्ध है जिसे "रेनसर" के नाम से जाना जाता है। इसमें रेनसर के फोरैस्ट विभाग के कुछ रिजॉर्टस हैं जहां पर्यटकों के रुकने और रहने की उचित व्यवस्था है।