कुनिहार : जधाना में श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन कथा वाचक ने सुनाई कृष्ण जन्म की कथा

जधाना गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथावाचक आचार्य पंडित प्रवीण भार्गव ने श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है तो दुष्टों के संहार के लिए भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। इसी तिथि की अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया। उन्होंने कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करता था। उसके पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था तो रास्ते में आकाशवाणी हुई, कंस जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी के गर्भ में तेरा काल जन्म लेगा। कंस ने वासुदेव और देवकी को उसी समय कारागृह में डाल दिया। वासुदेव देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी संतान होने वाली थी, जिस समय वासुदेव देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ जो और कुछ नहीं सिर्फ माया थी। जिस कोठरी में देवकी-वासुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा अब मैं पुन: नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूँ। तुम मुझे इसी समय अपने नंद जी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। उसी समय वसुदेव नवजात शिशु रूप श्री कृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंद के घर पहुंचे।
इस दौरान भगवान श्री कृष्ण के जन्म की सुंदर झांकियां निकाली गई और नगर वासियों ने नाच गाकर उत्सव मनाया। वहीं कथा आयोजक बुद्धिराम ठाकुर की ओर से सभी भक्तों को भंडारे का प्रसाद वितरित किया गया।