कभी शदियों में खाना बनाते थे, आज ईशर के कलाकंद के है लाखों मुरीद
पांच वैरायटी के कलाकंद, सब लाजवाब
कलाकंद एक ऐसा मिष्ठान है जिसका नाम सुनते ही मुँह में पानी आ जाता है और जब कलाकंद की बात होती है तो सबसे पहले ईशर स्वीट्स का नाम जहन में आता है। क्वालिटी से कोई समझौता नहीं और स्वाद ऐसा कि पेट भर जाए पर मन नहीं, ईशर स्वीट्स के कलाकंद के न सिर्फ स्थानीय लोग, बल्कि शिमला -कसौली आने वाले लाखों पर्यटक भी मुरीद है। यहाँ एक दो नहीं बल्कि पुरे पांच किस्म का कलाकंद मिलता है, सादा सफ़ेद कलाकंद, बटर स्कॉच कलाकंद, केसर कलाकंद, अंजीर कलाकंद और शुगर फ्री कलाकंद। सब एक से बढ़कर एक और लाजवाब ! करीब पिछले 5 दशक से लोग ईशर स्वीट्स के कलाकंद के मुरीद है और कई लोग तो ऐसे है जो कई किलोमीटर का सफर तय कर सिर्फ ईशर स्वीटस का कलाकंद खाने आते है।
तीसरी पीढ़ी बढ़ा रही व्यवसाय
श्री ईशर दास किसी ज़माने में शादी-ब्याह में खाना बनाने का कार्य करते थे। धीरे -धीरे उनके हाथ का स्वाद रंग लाने लगा और दूर -दूर से लोग उन्हें खाना बनाने बुलाने लगे, खासतौर से कलाकंद। इसके बाद श्री ईशर दास ने कालका में पहली दूकान खोली, जहां वहां अब भी बैठते है। वर्तमान में ईशर स्वीट्स की तीन दुकानें है और उनकी तीसरी पीढ़ी यानी की उनके पोते कमल और निखिल उनका व्यवसाय आगे बढ़ा रहे है।
हर वैरायटी के लिए रखे गए है विशेष कारीगर : कमल
श्री ईशर दस के पोते कमल ने बताया कि कलाकंद के अतिरक्त ईशर स्वीट्स दवार निर्मित ड्राई फ्रूट्स की मिठाइयों की भी काफी मांग है। विशेषकर सात प्रकार की बकलावा स्वीट्स की डिमांड न सिर्फ हिमाचल और हरियाणा से, बल्कि अन्य प्रदेशों से भी आती है। उन्होंने बताया कि हर वैरायटी की मिठाई और पकवान बनाने के लिए विशेष कारीगर रखे गए है, मसलन बंगाल से आये कारीगर बंगाली मिठाई तैयार करते हैं, तो राजस्थान से आये कारीगर घेवर और जलेबी बनाते है।