बांका हिमाचल : अजब - गजब और खूबसूरत, अद्भुत है किन्नौर
हिमाचल का किन्नौर जिला अपनी परंपराओं, मदिरा प्रेम, संस्कृति, त्योहारों व बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध है। किन्नौर के गोल्डन सेब,सूखे मेवे व हरी टोपी सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। यूँ तो किन्नौर में पर्यटकों की आमद बहुत कम है लेकिन ऐसा कहा जाता है की हिमाचल की असल संस्कृति, खूबसूरती और अविश्वसनीय नज़ारों की झलक सिर्फ किन्नौर में ही मिल सकती है।
किन्नौर का ऐतिहासिक दस्तावेज कहता है कि उसका अस्तित्त्व राजाओं के ज़माने से है। एक-एक करके किन्नौर में शुंग, नंद और मौर्य वंश का शासन हुआ। हिमाचल की ही किराट, कंबुज, पानसिका और वल्हिका जातियों की मदद से मौर्य वंश ने शासन जमाया। उसके बाद अशोक ने अपनी विजय पताका के झंडे गाड़े। बाद में आने वाले कनिष्क ने इसे और आगे बढ़ाया। उत्तर में कश्मीर और एशिया के दूसरे छोरों तक पहुँच बनाई। कुल मिलाकर दुनिया के कुछ गिने चुने नामी राजाओं, जिन्होंने पूरी दुनिया पर राज करने की कोशिश की, उनके विशाल साम्राज्य के एक छोटे हिस्से के तौर पर किन्नौर की पहचान रही। 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब भी महासु तहसील का एक छोटा सा हिस्सा किन्नौर था, जिसे अपनी पहचान 1960 में एक अलग ज़िले के रूप में मिली।
रिकांगपिओ इस जिले का मुख्यालय है। किन्नौर के दो भाग हैं। लोअर व अप्पर किन्नौर। पूह से आगे का क्षेत्र अप्पर किन्नौर कहलाता है। ऊपरी व निचले किन्नौर की संस्कृति अलग है। अपर किन्नौर की महिलाएं दोहडू परिधान नहीं पहनतीं, वहां पर खो नामक वस्त्र कमीज के स्थान पर पहना जाता है। सिर पर एक कपड़ा बांधा जाता है जिसे फैटक कहा जाता है। यह वस्त्र वधू को शृंगार करते वक्त बांधा जाता है। गले में एक सौ मूंगों का हार पहना जाता है। हाथ में कंगन की जगह चांदी के 40-40 तोले भार के मोटे कंगन होते हैं जिन पर ड्रैगन या शेर मुख बना होता है। कान में एक तोले सोने का झुमका होता है। लोअर किन्नौर की महिलाएं यूचूरु नाम की माला पहनती हैं। लोअर किन्नौर में विशेष टोपी महिलाएं पहनती हैं जिसे टपंग कहते हैं।
किन्नौरी विवाह :
विवाह के अवसर पर जब दूल्हा वधू के पक्ष घर आता है तो महिलाएं विशेष आभूषण एवं वस्त्र पहनकर उनका स्वागत करती हैं तथा दोनों पक्षों के बुजुर्गों द्वारा लोकगीत गाने की प्रतिस्पर्धा होती है। फिर वर पक्ष के लोग हार मान लेते हैं तथा बारात आगे चौखट पर बढ़ती है। जहां वधू की सहेलियां व परिवार की महिलाएं फूलमाला द्वारा उनका रास्ता रोककर वर पक्ष से पैसे व उपहार मांगती हैं। फिर बारात को एक कमरे में अंदर बंद कर दिया जाता है तथा दोबारा बारात से पैसे ऐंठे जाते हैं। इसके बाद नृत्य, गायन तथा मदिरा का दौर चलता है। बाराती मफलर, कोट तथा दूल्हा लंबा वस्त्र पहनकर आता है जिसे खो कहते हैं। जब बारात वापस लौटने को होती है तब वधू की सहेलियां वधू के पांव सफेद कपड़े से बांध कर उसे रोकती हैं। फिर से बाराती उन्हें रुपये देकर उस वस्त्र को खुलवाकर उनसे वधू को ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तीनों रस्मों में ली गई राशि एवं उपहार राशि जो रिश्तेदार और गांव के लोग देते हैं, सब वधू को विदाई के समय दे दी जाती है। शादी के दौरान एक लिखित समझौता होता है जिसमें शादी टूटने पर या वधू को तंग करने पर वर पक्ष को इज्जत राशि देनी पड़ती है तथा विवाह में दिये गये उपहार लौटाने का समझौता होता है। इसे बंदोबस्त कहते हैं। रास्ते में वापस लौटते समय यदि कोई मंदिर हो तो बारात द्वारा वहां पूजा भी की जाती है। दलोज प्रथा में लड़की वापस मायके आती है जिसमें वर के 10 लोग होते हैं। इसके बाद जब वधू वापस ससुराल जाती है तो मायके से 10 लोग फिर उसको छोडऩे जाते हैं। विवाह की रस्में मुख्य लामा द्वारा अदा की जाती हैं।
फुलाइच और लोसर :
हर साल सितंबर के महीने में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र में फूलों का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं और हिमाचल प्रदेश के लोगों, जगहों, खानपान और संस्कृति को इस मेले के ज़रिए जानने का सबसे यह सही समय है। इसके अलावा किन्नौर क्षेत्र घूमने का भी सबसे बेहतर महीना सितंबर का ही है। फुलैच के दौरान ऊंची पहाड़ी से गांव में 3-4 व्यक्ति फूल लाते हैं एवं देवता को चढ़ाते हैं। फिर मंदिर परिसर में नृत्य होता है। किन्नौर का दूसरा प्रसिद्ध त्योहार लोसर है जो दिसंबर में मनाया जाता है जिसमें रिश्तेदारों को उपहार दिये जाते हैं और मंगलमय नए वर्ष की कामना की जाती है।
कुछ लड़कियां नहीं करती हैं शादी
किन्नौर में कुछ लड़कियां शादी नहीं करती हैं जिन्हें जाम्मो कहते हैं और वे बौद्ध मंदिरों में अपना जीवन व्यतीत करती हैं। ये लंबा भूरा चोगा पहनती है। किन्नौर की महिलाएं गले में त्रिमणी पहनती हैं, जिसमें तीन सोने के गोलाकार मणके काले धागे में पिरोकर पहने जाते हैं। 25 फरवरी को किन्नौर के चांगो गांव में शेबो मेला मनाया जाता है जिसमें तीरअंदाजी होती है। चांगो में छ: बौद्ध मंदिर हैं जिनमें छाप्पा देवता एवं पदम संभव की मूर्तियां तथा प्राचीन पुस्तकें हैं। किन्नौर के शाल भी बहुत प्रसिद्ध हैं जिन्हें पूह तथा चांगो की महिलाएं बनाती हैं। इस प्रकार से किन्नौर की अनूठी संस्कृति है जो इसे एक नया रूप देती है। यहां के लोगों की बोली भी बहुत भिन्न है। लोअर किन्नौर के कोठी गांव में चंडिका देवी की मान्यता है। निचार में उषा देवी का मंदिर है। चितकुल में चितकुल देवी है तथा मैम्बर गांव में महेश्वर की पूजा होती है। चंडिका देवी को मदिरा का प्रसाद चढ़ता है। यह मंदिर पियो के निकट है।
छोटी शादी :
किन्नौर में प्रेम-विवाह को छोटी शादी कहते हैं। कुछ वर्ष बाद जब युग्लक बच्चे हो जाते है, तब पारंपरिक विवाह किया जाता है जिसे बड़ी शादी कहते हैं।