बांका हिमाचल: हिंदुस्तान का पावर हाउस भी है हिमाचल
एप्पल स्टेट होने के साथ-साथ हिमाचल पावर स्टेट भी है। यहां जलविद्युत उत्पादन की क्षमता देश के अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छी है। देवभूमि हिमाचल में 27436 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। अपनी जरूरत से अधिक बिजली होने के कारण हिमाचल देश के अन्य राज्यों को बिजली की आपूर्ति करता है और इसी लिए हिमाचल को हिन्दुस्तान का पावर हाउस भी कहा जाता है।
हिमाचल प्रदेश में बिजली के इतिहास की बात करें तो शुरुआत वर्ष 1948 से की जानी चाहिए, उस दौरान बिजली की आपूर्ति केवल तत्कालीन रियासतों की राजधानियों में ही उपलब्ध थी और उस समय कनेक्टेड लोड 500 के.वी से कम हुआ करता था। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में बिजली उपयोगिता का संगठन अपेक्षाकृत हाल ही में शुरू हुआ था। लोक निर्माण विभाग के तहत अगस्त, 1953 में पहला विद्युत डिवीजन बनाया गया था। इसके बाद अप्रैल 1964 में एम.पी.पी और ऊर्जा का एक विभाग बनाया गया और फिर हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड का गठन 1 सितम्बर, 1971 को विद्युत आपूर्ति अधिनियम (1948) के प्रावधानों के अनुसार किया गया। बाद में इसे हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड के रूप में पुनर्गठित किया गया।
आज हिमाचल के हर घर तक बिजली पहुँच चुकी है। वर्तमान में बिजली ट्रांसमिशन, सब-ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों के नेटवर्क के माध्यम से विद्युत आपूर्ति की जा रही है, जो राज्य की लंबाई और चौड़ाई के साथ बिछाई गई है। हिमाचल प्रदेश को देश में सबसे कम टैरिफ पर बिजली प्रदान करने का सम्मान भी प्राप्त है। हिमाचल प्रदेश ने 100 प्रतिशत पैमाइश, बिलिंग और संग्रह का अनूठा गौरव हासिल किया है। हिमाचल प्रदेश में दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित पावर हाउस स्थापित किया गया है (लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर रॉन्गटॉन्ग पावर हाउस)। इसी के साथ हिमाचल में एक पूरी तरह से भूमिगत पावर हाउस भी स्थापित और चालू किया गया है जो एशिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है (भाबा पावर हाउस - 120 मेगावाट)।
हिमाचल प्रदेश अपने पनबिजली संसाधनों में बेहद समृद्ध है। भारत की कुल क्षमता का लगभग पच्चीस प्रतिशत इसी राज्य में है। पांच बारहमासी नदी घाटियों पर विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण से राज्य में लगभग 27,436 मेगावाट पनबिजली पैदा हो सकती है। राज्य की कुल पनबिजली क्षमता में से, 10,519 मेगावाट का दोहन अभी तक किया जा रहा है, जिसमें से केवल 7.6 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है, जबकि शेष क्षमता का दोहन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। पनबिजली उत्पादन उद्योग, कृषि और ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए बिजली की बढ़ती आवश्यकता को पूरा कर सकता है। यह राज्य की आय का सबसे बड़ा स्रोत भी है क्योंकि यह अन्य राज्यों को बिजली प्रदान करता है। हिमाचल का मूल सिद्धांत आपूर्ति की विश्वसनीयता और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए किफायती लागत पर पर्याप्त बिजली प्रदान करना है। सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बिजली एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है।
नाथपा झाकड़ी पनबिजली
नाथपा झाकड़ी पनबिजली स्टेशन की क्षमता 1500 मेगावाट है और यह देश का चौथा सबसे बड़ा जल विद्युत प्लांट है। नाथपा झाकड़ी प्लांट प्रति वर्ष 6950.88 (6612) मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस प्लांट से विद्युत का आवंटन उत्तर भारतीय राज्यों हरियाणा, हि.प्र., पंजाब, जम्मू एवं कश्मीर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा दिल्ली व चंडीगढ़ के सभी शहरों को होता है। इस परियोजना का बांध किन्नौर जिला में है और पावर स्टेशन शिमला जिला के नाथपा-झाकड़ी में स्थित है। सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड का नाथपा-झाकड़ी पावर स्टेशन कई मायनों में अनूठा है। इस भूमिगत पावर स्टेशन में मशीनों के संचालन में आधुनिक तकनीकों का समावेश किया गया है। महाराष्ट्र का कोयना प्रोजेक्ट 1960 मेगावॉट बिजली उत्पादन पर देश की सबसे बड़ी विद्युत् परियोजना होने का दावा करता है , परन्तु ये उत्पादन चार अलग अलग इकाईओं से किया जाता है जबकि हिमाचल में स्थित नाथपा झाकड़ी परियोजना एक ही यूनिट से 1500 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है।
गिरिनगर जलविद्युत परियोजना
सिरमौर जिले की गिरि नदी पर स्थित, गिरिनगर हाइडल परियोजना की क्षमता 60 मेगावाट है, जिसमें 30 मेगावाट की दो इकाइयाँ हैं। यह परियोजना हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के अंतर्गत आती है और 29 वर्षों से चालू है। यह परियोजना राज्य सरकार द्वारा 1966 में पूरी की गई ।
बिनवा जलविद्युत परियोजना
इस परियोजना की स्थापित क्षमता में 6 मेगावाट की है जिसमें कांगड़ा जिले के बैजनाथ के पास 3 मेगावाट की 2 इकाइयां हैं। यह परियोजना पालमपुर से 25 किमी तथा बैजनाथ से 14 से किमी की दूरी पर स्थित है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 1515 मीटर है।
संजय विद्युत परियोजना
किन्नौर जिले में भाभा नदी पर स्थित 120 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली यह परियोजना पूरी तरह से भूमि के अन्दर है। इसमें प्रत्येक 40 मेगावाट की 3 इकाइयां हैं। इस परियोजना की विशेषता इसके भूमिगत स्विचयार्ड में है, जो एशिया में अकेला है। 1989-90 में पूरी हुई इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 167 करोड़ रुपये थी।
बस्सी जलविद्युत परियोजना
बस्सी परियोजना (66 मेगावाट) ब्यास पावर हाउस ( मंडी जिला ) का विस्तार है। इसमें 16.5 मेगावाट की 4 इकाइयां हैं। यह जोगिंदर नगर परियोजना के शानन पावर हाउस के 'टेल वॉटर' का उपयोग करता है।
लारजी जल विद्युत परियोजना
लारजी पनबिजली परियोजना कुल्लू जिले में ब्यास नदी पर है और इसकी स्थापित क्षमता 126 मेगावाट की है। [1] यह परियोजना सितंबर 2007 में पूरी हुई थी।
आंध्र जलविद्युत परियोजना
वर्ष 1987-88 के दौरान शुरू (कमीशन) की गई इस परियोजना में 5.5 मेगावाट की 3 इकाइयाँ (कुल स्थापित क्षमता =16.5 मेगावाट)। यह शिमला जिले की रोहड़ू तहसील में स्थित है। परियोजना की लागत लगभग 9.74 करोड़ रुपये थी।
रोंग टोंग जल विद्युत परियोजना
रोंग टोंग एक 2 मेगावाट की परियोजना है जो लोंगुल-स्पीति जिले में रोंग टोंग नाला पर स्थित है जो स्पीति नदी की एक सहायक नदी है। 3,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह परियोजना इस क्षेत्र के आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए चलाई गई पहली पनबिजली परियोजना थी। यह दुनिया में सबसे ऊँचाई पर स्थित परियोजनाओं में से एक है।
बैनर और नेगल प्रोजेक्ट
12 मेगावाट की संयुक्त स्थापित क्षमता वाली ये परियोजनाएं कांगड़ा जिले में क्रमशः बानेर और नेगल नदियों पर स्थित हैं। दोनों धाराएं धौलाधार से निकलती हैं और दक्षिण में सहायक नदियों के रूप में ब्यास से जुड़ती हैं।
सैंज जलविद्युत परियोजना
स्थापित क्षमता 100 मेगावाट (२ × ५० मेगावाट)। यह कुल्लू जिले में स्थित है।
भाखड़ा बांध
भाखड़ा बांध सतलुज नदी पर बनाया गया पहला बाँध था। इसकी स्थापित क्षमता 1325 मेगावाट की है। मानसून के दौरान यह बाँध अतिरिक्त पानी का संग्रह करके पूरे वर्ष के दौरान जल छोडकर विद्युत का उत्पादन करता है। यह मानसून की बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान को भी रोकता है। यह बांध पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में एक करोड़ एकड़ (40,000 वर्ग किमी) खेतों को सिंचाई प्रदान करता है। भाखड़ा बांध 1954 में स्थापित किया गया था।