ब्रिटिशकालीन इतिहास को आज भी संजोए हुए है शिमला का कैनेडी हाउस
हिमाचल प्रदेश की राजधानी ब्रिटिश कालीन इतिहास को आज भी संजोए हुए हैं। राजधानी में आज भी ब्रिटिश शासन के दौरान बनाई गई ऊँची विशाल और उत्कृष्ट नक्काशी करी हुई इमारतें हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। जी हां शिमला शहर वर्षों तक अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही हैं। या यूं कहें अंग्रेजों का मनपसंद स्थान जहाँ अंग्रेजों को लंदन व इंग्लैंड की झलक नजर आती थी। यही वजह है कि शिमला में अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में खूब विकास किया। आपको जानकर जरूर हैरानी होगी शिमला जैसे शहर में पहली पक्की इमारत जो अंग्रेजों ने बनाई वह थी कैनेडी हाउस। विधानसभा के ठीक विपरीत दिशा में स्थित 'कैनेडी हाउस' आज भी ब्रिटिशकालीन इतिहास को संजोये है। हालांकि एक बार ये आग की चपेट में भी आ चुका है। कैनेडी हाउस शिमला का ऐसा पहला पक्का मकान रहा है, जो अंग्रेजों ने बनाया था। कैनेडी हाउस तब बना था, जब गर्मियां शुरू होते ही छुट्टियां बिताने अफसर इंग्लैंड का चक्कर पर जाते थे। काम के बहाने जैसे-जैसे ब्रिटिश अफसरों के शिमला के लिए दौरे बढ़े तो यहां की प्रकृति हुबहू इंग्लैंड के माफिक होने से उनका मन यहां रमने लगा। अंग्रेजों की बनाई इस पहली इमारत से अब वो महकमा चलता है, जिसका काम ही नए भवनों को तराशना है। यानी यहाँ केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का दफ्तर है। इसमें कोई संशय नहीं है कि इस इमारत जैसी दूसरी इमारत अब बना पाना लगभग नामुमकिन है।
वर्ष 1804 में जब एंग्लो गोरखा युद्ध शुरू हुआ, तो अंग्रेजों का ध्यान पहाड़ी क्षेत्र शिमला की ओर गया। हालांकि इससे पूर्व जंगल का क्षेत्र होने के कारण इसे अनदेखा किया जाता रहा। युद्ध के कारण वर्ष 1819 में हिल स्टेट के असिस्टेंट पॉलीटिक्ल एजेंट लेफ्टिनेंट रॉस शिमला आए। उस समय कैनेडी कॉटेज के स्थान पर लकड़ी का आवास हुआ करता था। इनके बाद जब दूसरे एजेंट लेफ्टिनेंट चार्ल्स परएट कैनेडी शिमला आए तो उन्हें यहां का वातावरण इंग्लैंड की तरह लगने लगा और वर्ष 1822 में उन्होंने कैनेडी हाउस का निर्माण करवाया। साथ ही कॉटेज बनाया, जिसमें खासकर ब्रिटिश के अतिथि ठहरा करते थे। वर्ष 1828 में ब्रिटिश कमांडर इन चीफ लॉर्ड कांबरमेयर जब पहली बार शिमला आए तो उन्होंने शिमला के कैनेडी हाउस को अपना हैड क्वार्टर बनाया। कैनेडी हाउस भारत के एक अन्य कमांडर इन चीफ जनरल सर ऑथर पॉवर पालमर का भी जन्म स्थल रहा है।
मेजर एसबी गॉड की संपत्ति थी केनेडी हाउस
वर्ष 1870 में कैनेडी हाउस मेजर एसबी गॉड की संपत्ति थी, लेकिन बाद में कच्छ बेहर के महाराजा ने इसे अपने नियंत्रण में लिया। इसके बाद भारत सरकार ने इसे महाराजा से एक लाख 20 हजार भारतीय मुद्रा में खरीद लिया। लेखक व इतिहासकार राजा भसीन के मुताबिक लंबे समय बाद इस स्थान पर एक शानदार टैनिस कोर्ट बनाया गया। जब गोरखों से चल रहा युद्ध समाप्त हुआ तो म्यूनिशन बोर्ड ने इसका नाम बदल कर 'अंकल टॉम कैबिन' रख दिया। भारत सरकार के मौसम विभाग ने भी इस इमारत में अपना कार्यालय स्थापित किया था।
कैनेडी हाउस में लेखक थॉर्बन भी रहे
1898 में पंजाब के जाने माने लेखक एसएस थॉर्बन भी कैनेडी हाउस में रहे जिन्होंने उस दौर में ब्रिटिश सरकार की नीतियों पर अपने लेखन से कड़ा प्रहार किया, जबकि इससे पूर्व 1830 में कैनेडी हाउस में रह चुके कर्नल एसएच माउंटेन ने अपनी किताब में लॉर्ड एडं लैडी डल्हौजी का जिक्र किया था। आज हिमाचल विधानसभा के ठीक विपरीत दिशा में इसके स्थान पर महज कॉटेज ही शेष है। अन्य भवन का हिस्सा आग की चपेट में आ गया था, जिसका पुनर्निर्माण हुआ है।
अब केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का कार्यालय
कैनेडी हाउस की दो मंजिला इमारत में अब केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का कार्यालय है। इसमें 23 कमरे हैं, मुख्य प्रवेश द्वार के साथ ही उच्च अधिकारी बैठते हैं। सीढि़यों के दोनों किनारे खुबसूरत लकड़ी से बनी रेलिंग है, फर्श व छत भी नक्काशी की गई है। आधी दीवारों पर टायलें लगी हैं। शीर्ष मंजिल जो मुख्य भवन का मुख्य प्रवेश द्वार है, अदंर से इसकी दीवारों, छत व फर्श पर पुरानी शैली में ही लकड़ी से कार्य किया गया है। वहीँ नीचे की मंजिल में कमरों के दरवाजे पुरानी शैली के ही है, आधी दीवार पर तो टायलें लगी है लेकिन उससे ऊपर दीवार एक किस्म से अतीत का चलचित्र हैं।
शिमला शहर में बुद्धिजीवी,वरिष्ठ नागरिकों, साहित्यकारों, लेखकों का मानना है कि शहर में जो अंग्रेजों के समय की इमारतों का निर्माण हुआ है वह अद्भुत है, आज भी उस तरह के कोई भी इमारत नई नहीं बनाई गई है। इन इमारतों को संजोकर रखा जाना चाहिए, इस ओर कार्य करने की जरूरत है।
शिमला की धरहोर को सँजोकर रखा जाना चाहिए: साहित्यकार एस आर हरनोट
शिमला में कैनेडी हाउस मिल का पत्थर साबित हुआ। इसके निर्माण के बाद ही शिमला में अंग्रेज़ों ने स्थाई रूप से यहां रहना शुरू किया। इस भवन के बाद ही अंग्रेज़ों ने शिमला में और भवन निर्माण कार्य किए। पर आज देखा जाए तो इस भवन में कार्यालय खोल दिए गए हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि इस इमारत को धरोहर के रूप में संजोए रखा जाना चाहिए था। यहीं वहज हैं कि आज यह इमारत नष्ट होती जा रही हैं। शिमला की ऐतिहासिक संपत्ति आग की भेंट चढ़ रही हैं। सरकार को चाहिए कि जो कुछ धरोहर बची हुई हैं, उसे बचाया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को भी यह धरोहर सुरक्षित मिल सकें।
कैनेडी हाउस आज भी अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर : सुभाष वर्मा
शिमला के विधानसभा ठीक साथ लगते केनेडी हाउस की अपनी एक खास अहमियत है। बेशक इसका निर्माण अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हुआहो लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद आज भी इसकी खूबसूरती बरकरार है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की इस इमारत के निर्माण उत्कृष्ट तरीके से किया गया है। हालांकि आमतौर पर अंग्रेज लकड़ी की नक्काशी अधिक इस्तेमाल करते थे पर जो कलाकृति इस इमारत में इस्तेमाल की गई हैं वह आज कही भी देखने को नहीं मिलती। यह इमारत वास्तुवास्तु कला का अद्भुत नमूना हैं।
केनेडी हाउस पहाड़ों का पहला इंग्लिश हाउस: सुमित राज
लेखक सुमित राज का कहना है कि सोलन ज़िला के मलौण में 1815 में अंग्रेज़ों और गोरखों की लड़ाई लड़ी गयी थी। इस लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने पहाड़ों पर आना शुरू किया। कैनेडी हाउस शिमला ही नहीं बल्कि पहाड़ों पर पहला इंग्लिश हाउस बना। पर आज इतने सालों बाद इस हाउस की जो स्थिति होनी चाहिए थी वह नहीं है। यह एक धरोहर है और इसे संजोकर रखा जाना चाहिए। कुछ समय पहले केनेडी हाउस का कुछ हिस्सा आग की भेंट चढ़ गया था। इस तरह की धरहोर को सुरक्षित रखा जाना चाहिए, इस ओर सरकार को कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। शिमला में जितनी भी पुरानी इमारतें हैं वह अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनाई गई है। ये इमारतें सैलानियों के लिए आज भी आकर्षण का केंद्र है।
एतिहासिक धरोहर को सँजोकर रखें जाने की ओर किया जा रहा कार्य:आर्किटेक्ट प्लानिंग देविंदर मिस्ता
शिमला शहर में जितनी भी पुरानी इमारतें हैं उन्हें संजो कर रखा जाने का पूरा प्रयास किया जाता हैं। शिमला शहर में दर्जनों ऐसी इमारतें हैं जिन्हें किसी न किसी कारण नुकसान हुआ है। ऐसे में प्रयास यह रहता है कि उन इमारतों को उसी लुक में फिर से तैयार किया जाए। कैनेडी हाउस का एक हिस्सा जल गया था। उस समय लगा कि शिमला का जो पुराना इतिहास इस इमारत से जुड़ा है वो भी जल कर राख हो गया। पर उस समय की सरकार ने इस इमारत का जीर्णोद्धार कर पहले जैसा लुक ही बरकरार रखा। ऐसे में इस इमारत की खूबसूरती आज भी बरकरार है, साथ ही ये सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
शिमला शहर की भूगोलिक परिवेश पर नजर डालें तो यह शहर सात चोटियों पर बसा हुआ है।
जाखू हिल : समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और रिज से एक से डेढ़ किमी. की दूरी पर स्थित है। यह शिमला की सबसे ऊंची चोटी है।
प्रोस्पेक्ट हिल: शिमला शहर के पश्चिमी भाग में 2155 मीटर की ऊंचाई पर मां कामना देवी मंदिर को समर्पित यह चोटी शिमला-बिलासपुर मार्ग पर बालूगंज से 15 मिनट की पैदल दूरी पर है। यह पिकनिक और ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है।
समरहिल: यह शिमला से सात किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 1283 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मैनोर्विल हवेली और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इसी पहाड़ी पर हैं। यहाँ न सिर्फ प्रदेश व देश से बल्कि बाहरी देशों के छात्र भी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।
ऑब्जर्वेटरी हिल: 7050 फीट की ऊंचाई पर स्थित इसी हिल पर 1884 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने अपना आवास बनवाया था, जहां अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बना दिया गया है।
इन्वेरार्म हिल : प्रदेश विधानसभा में चौड़ा मैदान से देवदार और बुरांस के पेड़ों के घने जंगल के बीच से सर्पीली सड़क वाली इस पहाड़ी पर शिमला दूरदर्शन केंद्र भी है। यहां स्थापित राज्य संग्रहालय संस्कृति के साथ-साथ पुरातत्व को भी समेटे हुए है।
बैंटोनी हिल : बैंटोनी हिल शिमला शहर के बीचोबीच स्थित है। इस हिल का नाम लॉर्ड बैंटोनी के नाम पर रखा गया है। बैंटोनी ने यहीं पर कैसल का निर्माण कराया था।
एलीसियम हिल : 7400 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी लांगवुड, केलेस्टन और भराड़ी तक फैली हुई है। इस पर ऑकलैंड हाउस स्कूल स्थित है।