घोषणाएं करते सियासतगार और खंडर होती धरोहर, हुकूमत ने नहीं दिया पहाड़ी गांधी को उचित सम्मान

ये वो दौर था जब हिंदुस्तान के हर कोने में आजादी के लिए नारे लग रहे थे। क्रांतिकारी देश को आज़ाद करवाने के लिए हर संभव प्रत्यन कर रह थे। पुरे मुल्क में हजरत मोहनी का लिखा गया नारा इंकलाब जिंदाबाद क्रांति की आवाज बन चूका था। उसी दौर में हिमाचल की शांत पहाड़ियों में एक व्यक्ति पहाड़ी भाषा और लहजे में क्रांति की अलख जगा रहा था। वो गांव-गांव घूमकर अपने लिखे लोकगीतों व कविताओं से आम जन को आजादी के आंदोलन से जोड़ रहा था। नाम था कांशी राम, वहीँ काशी राम जिन्हे पंडित नेहरू ने बाद में पहाड़ी गाँधी का नाम दिया। वहीँ बाबा काशी राम जो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल सलाखों के पीछे काटे। वहीँ बाबा कशी राम जिन्हें सरोजनी नायडू ने बुलबुल-ए-पहाड़ कहकर बुलाया था। और वहीँ बाबा काशी राम जिन्होंने कसम खाई कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, वो काले कपड़े पहनेंगे। 15 अक्टूबर 1943 को अपनी आखिरी सांसें लेते हुए भी कांशी राम के बदन पर काले कपड़े थे और मरने के बाद उनका कफ़न भी काले कपड़े का ही था। ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ यानी अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है, जैसी कई कवितायेँ लिख पहाड़ी गाँधी ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था। मुल्क आज़ाद हो गया लेकिन ये विडम्बना का विषय है कि सियासतगारों ने पहाड़ी गाँधी को भुला दिया। बस कभी -कभार, खानापूर्ति भर के लिए पहाड़ी गाँधी को याद कर लिया जाता है। उनका पुश्तैनी मकान भी पूरी तरह ढहने की कगार पर है, मानो एक तेज बरसात का इन्तजार कर रहा हो। सियासतगार अपनी राजनीति चमकाने के लिए घोषणाएं करते है, वादे करते है पर उन्हें पूरा नहीं किया जाता।
न वीरभद्र और न जयराम सरकार ने पूरा किया वादा
2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र सरकार को पहाड़ी गाँधी की याद आई और डाडासिबा में उनके पुश्तैनी घर को कांशीराम संग्रहालय बनाने का वादा किया गया। खेर चुनाव के बाद सरकार बदल गई और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2018 में बाबा काशीराम की जयंती पर 11 जुलाई को जयराम ठाकुर ने भी काशीराम संग्राहलय बनाने की घोषणा की, किन्तु अब तक कुछ नहीं हुआ।
परिवार ने कर दी रजिस्ट्री, पर अब तक ताला लटका है
24 जून 2020 को ये खबर आई थी की एसडीएम देहरा धनबीर ठाकुर के नेतृत्व में गठित टीम ने पध्याल गांव (गुरनवाड़ डाडासीबा) में पहुंचकर बाबा कांशीराम के घर की जमीन की निशानदेही की है। एसडीएम ने एसडीओ डाडासीबा को शीघ्र सर्वेक्षण कर एस्टीमेट बनाकर भेजने के निर्देश दिए है। जल्द पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम के पैतृक घर को स्मारक बनाया जाएगा। बाबा कांशीराम के पोते विनोद शर्मा बताते है इस बीच 17 दिसंबर 2020 को परिवार ने उनके पुश्तैनी मकान की रजिस्ट्री भी सम्बंधित महकमे के नाम कर दी ताकि संग्रहालय बन सके किन्तु अब तक ज़मीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं हुआ है। संग्राहलय बनाना तो दूर कोई अधिकारी वहां आने का कष्ट भी नहीं करता। बाबा का परिवार अब खुद को ठगा सा महसूस करता है।
इंदिरा गांधी ने जारी किया था डाक टिकट
23 अप्रैल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांगड़ा के ज्वालामुखी में बाबा कांशीराम पर एक डाक टिकट जारी किया था। तब सांसद नारायण चंद पराशर ने बाबा को सम्मान दिलवाने के लिए संसद में बहस की और तमाम सबूत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सौंपे। जिसके बाद 1984 में प्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वालामुखी में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाबा के नाम का डाक टिकट जारी किया।
कई सालों से नहीं दिया गया पहाड़ी बाबा गांधी पुरस्कार
बाबा कांशीराम के नाम पर हिमाचल प्रदेश से आने वाले कवियों और लेखकों को अवॉर्ड देने की भी शुरुआत हुई थी, पर पिछले कुछ सालों से ये अवार्ड नहीं दिया जा रहा है। देहरा से संबध रखने वाले पूर्व सांसद हेमराज सूद के प्रयासों से वर्ष 1981 में हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी हिमाचल प्रदेश ने पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम जयंती का आयोजन शुरू किया और पहाड़ी साहित्य के लिए बाबा कांशी राम पुरस्कार योजना शुरू की। पहाड़ी गजल को नई पहचान देने वाले डॉ. प्रेम भारद्वाज को उनके पहाड़ी काव्य ‘मौसम खराब है’ के लिए पहली बार यह पुरस्कार मिला था। अब बीते कुछ सालों से ये सम्मान नहीं दिया जा रहा है।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने बनवाया था स्कूल
बाकी कांशीराम के नाम से उनके गांव में एक सरकारी स्कूल बना है, जो पंजाब के मुख्यमंत्री पूर्व प्रताप सिंह कैरों ने बनवाया था। दरअसल, हिमाचल बनने से पहले बाबा कांशीराम का गृह क्षेत्र पंजाब में आता था। इस स्कूल का उद्घाटन तत्कालीन शिक्षा मंत्री लाला जगत नारायण ने 1954 में सवैया राजाओं की पुरानी घुड़साल में किया था।
508 में से 64 कविताएं छपी हैं, बाकी संदूकों में धूल खा रही
राष्ट्रीय स्तर पर चमकेगा पहाड़ी के रचनाकार का घर पहाड़ी भाषा में क्रांति का बिगुल फूंकने वाले बाबा कांशीराम ने ‘अंग्रेजी सरकारा दे ढिगा पर ध्याड़े’, ‘समाज नी रोया’, ‘निक्के -निक्के माहणुआ जो दुख बड़ा भारी’, ‘उजड़ी कांगड़े देस जाणा’, ‘पहाड़ी सरगम’, ‘कुनाळे दी कहाणी’ ‘क्रांति नाने दी कहाणी कांसी दी जुबानी’ सहित कई क्रन्तिकारी रचनाओं से लोगों को आजादी के जूनून से लबरेज कर दिया था। उनकी प्रसिद्ध कविता ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’ (अंग्रेज सरकार का सूर्यास्त होने वाला है) के लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया था मगर राजद्रोह का मामला जब साबित नहीं हुआ तो रिहा कर दिया गया। अपनी क्रांतिकारी कविताओं के चलते उन्हें 1930 से 1942 के बीच 9 बार जेल जाना पड़ा। हैरत की बात ये है कि रिकार्ड्स के मुताबिक बाब कांशी राम ने 508 कविताएं लिखी जिनमें से सिर्फ 64 कविताएं ही छपी हैं, बाकी संदूकों में पड़ी धूल खा रही हैं।
काम के गए थे लाहौर पर क्रांतिकारी बन गए
11 जुलाई 1882 को लखनू राम और रेवती देवी के घर पैदा हुए कांशीराम की शादी 7 साल की उम्र में हो गई थी। उस वक्त पत्नी सरस्वती की उम्र महज 5 साल थी। जब कांशीराम 11 साल के ही हुए तो उनके पिता की मौत हो गई। परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके सिर पर आ गई थी। काम की तलाश में वो लाहौर चले गए। यहां कांशी ने काम ढूंढा, मगर उस वक्त आजादी का आंदोलन तेज हो चुका था और कांशीराम के दिल दिमाग में आजादी के नारे गूंजने लगे। यहां वो दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों से मिले इनमें लाला हरदयाल, भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह और मौलवी बरक़त अली शामिल थे। संगीत और साहित्य के शौकीन कांशीराम की मुलाकात यहां उस वक्त के मशहूर देश भक्ति गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लिखने वाले सूफी अंबा प्रसाद और लाल चंद ‘फलक’ से भी हुई, जिसके बाद कांशीराम का पूरा ध्यान आजादी का लड़ाई में रम गया। साल 1905 में कांगड़ा घाटी में आये भूकंप में करीब 20 हजार लोगों की जान गई और 50,000 मवेशी मारे गए। तब लाला लाजपत राय की कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक टीम लाहौर से कांगड़ा पहुंची जिसमें बाबा कांशीराम भी शामिल थे। उनकी ‘उजड़ी कांगड़े देश जाना’ कविता आज भी सुनी जाती है। 1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, बाबा कांशीराम उस वक्त अमृतसर में थे। इस क्रूर घटना ने बाबा कांशीराम को बहुत आहत किया। वो कभी ढोलक तो कभी मंजीरा लेकर गांव-गांव जाते और अपने देशभक्ति के गाने और कविताएं गाते थे, पर जो काम उन्होंने काम किया उस हिसाब से उन्हें सम्मान नहीं मिल पाया। बाबा कांशी राम ने अपनी ज़मीन गिरवी रख दी थी ताकि घर का पालन पोषण हो सके क्यों कि वे कमाते नहीं थे, उनका पूरा समय स्वतंत्र भारत के लिए संघर्ष में व्यतीत होता था। उनके पास एक मकान, एक गौशाला और दो दुकानें थी जो वे गिरवी रख चुके थे। शुरूआती दौर में उन्होंने अपने ताया के पास भी नौकरी की। मगर आज़ादी के लिए जूनून ने सब कुछ छुड़वा दिया।
काले कपड़े पहनने का लिया प्रण, नेहरू ने दिया पहाड़ी गांधी का नाम
1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी मिलने के बाद उन्होंने प्रण लिया कि जब तक मुल्क आज़ाद नहीं हो जाता, तब तक वो काले कपड़े पहनेंगे। उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ भी कहा गया। उनकी क्रन्तिकारी कविताओं के लिए अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें कई बार पीटा, कई यातनाएं दी मगर वो लिखते रहे। वर्ष 1937 में जवाहर लाल नेहरू ने होशियारपुर के गद्दीवाला में एक सभा को संबोधित करते हुए बाबा कांशीराम को पहाड़ी गांधी कहकर संबोधित किया था, जिसके बाद से कांशी राम को पहाड़ी गांधी के नाम से ही जाना गया।
अब भी रखे है बाबा का चरखा और चारपाई
बाबा कांशी राम के पैतृक घर को स्मारक बनाने की मांग काफी पुरानी है। उनके पुराने घर में अब भी उनकी कई पुरानी चीज़ें रखी है, जैसे उनका चरखा, उस समय की चारपाई, खपरैल और उनके द्वारा इस्तेमाल किया अन्य सामान। इन धरोहरों को संजो के रखना बेहद महत्वपूर्ण है।