दो कांग्रेसी मुख्यमंत्री देने वाले जुब्बल कोटखाई में आसान नहीं भाजपा की राह

4 उपचुनाव की चुनौती, एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटें। धुंदला भविष्य पर बेजोड़ तमक। हाल फिलहाल हिमाचल के सियासी मौसम का मिजाज़ कुछ ऐसा ही है। उपचुनाव की तिथि घोषित भले ही न हुई हो मगर कच्चे पक्के वादों की बरसात शुरू हो गई है। बात जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की करें तो स्थिति कमोबेश ये ही नज़र आ रही है। पूर्व विधायक स्व. नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद इस क्षेत्र में नेताओं की दिलचस्पी बढ़ गई है। उपचुनाव नज़दीक है, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर समेत कई मंत्री इस क्षेत्र का दौरा कर बड़ी घोषणाएं कर चुके है और गुपचुप बैठकों में मंत्रणा भी जारी है। यहां कांग्रेस भी पीछे नहीं दिख रही, प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाजपा सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू हो चुके है, साढ़े तीन साल का हिसाब मांगा जा रहा है। विस क्षेत्र की नज़रअंदाजी, सरकार की ढुलमुल व्यवस्था के कारण रुके विकास कार्य, और बेरोज़गारी महंगाई जैसे आम मुद्दे, जनता को सब कुछ याद दिलाया जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक्शन मोड में है, मगर यहां वोट रुपी जनता के प्यार से पहले, टिकट रुपी पार्टी का आशीर्वाद किसे मिलने वाला है, ये यक्ष प्रश्न है।
नरेंद्र बरागटा ने खिलाया दो बार कमल
जुब्बल - कोटखाई वो विधानसभा क्षेत्र है जहां कमल खिलाना बड़े -बड़े दिग्गजों के लिए कभी एक सपना सा हुआ करता था। इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ तो कहा ही जाता है मगर जुब्बल - कोटखाई को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. ठाकुर रामलाल का गढ़ कहना भी गलत नहीं होगा। ठाकुर रामलाल कुल नौ मर्तबा जुब्बल कोटखाई से विधायक रहे है। उनके निधन के बाद दो बार इस विधानसभा क्षेत्र की कमान उनके पोते रोहित ठाकुर भी संभाल चुके है। अब तक भाजपा को यहां केवल दो ही बार जीत मिल पाई है। कांग्रेस के इस गढ़ में कमल खिलाने वाले नेता थे पूर्व विधायक नरेंद्र बरागटा। वर्ष 2003 में बरागटा ने इस विस क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा मगर वे जीत नहीं पाए। इसके बाद विपक्ष में रहते हुए वे पांच साल जुब्बल - कोटखाई की आवाज बने रहे। नतीजन 2007 में उन्हें जुब्बल - कोटखाई की जनता ने वोट रुपी आशीर्वाद दिया और पहली बार इस सीट पर भाजपा विजयी हुई। 2017 में भी इस विधानसभा क्षेत्र से नरेंद्र बरागटा ही जीते। उनके निधन के बाद अब उपचुनाव होना है समीकरण बदल गए है।
चेतन या कोई और, मंथन जारी
जुब्बल कोटखाई उपचुनाव में भाजपा की तरफ से टिकट के लिए कई चाहवान है पर मुख्यतः तीन नाम चर्चा में है। सबसे पहले है पूर्व विधायक स्व. नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा। चेतन प्रदेश भाजपा आईटी सेल के प्रमुख है, पार्टी से जुड़े हुए ज़रूर है मगर जमीन के बनिस्पत वर्चुअल राजनीति में ज्यादा सक्रीय रहे है। ऐसे में टिकट की उनकी दावेदारी पूरी तरह से पिता की सियासी विरासत के नाम पर ही है। फिलहाल चेतन ब्रागटा पूरी तरह एक्शन मोड में दिख रहे है। जुब्बल कोटखाई में किसी मंत्री का दौरा हो या मुख्यमंत्री का, तसवीरें ये बयां करती है की चेतन को पूरी तवज्जो दी जा रही है। दूसरा नाम है नीलम सरैक का। नीलम जो तीन बार इस क्षेत्र से जिला परिषद की सदस्य रह चुकी है और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में एक है। नीलम ने टिकट की दावेदारी ठोकी है और वे परिवारवाद और व्यक्तिवाद के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है। नीलम ने ये स्पष्ट कर दिया है की वे बरागटा परिवार नहीं, बल्कि कमल के फूल यानी भाजपा के साथ है। नीलम 1997 से संगठन के लिए काम कर रही हैं और उनके तेवर देखकर फिलवक्त तो ये बिलकुल नहीं लगता की वो किसी भी सूरत में कदम पीछे लेंगी। टिकट इस जंग में तीसरा नाम है डा. सुशांत देष्ठा का है। देष्ठा छात्र राजनीति से उभरे हुए नेता है और पूर्व में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सचिव भी रह चुके है। फिलवक्त भजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवार का चयन होगा और साथ ही पार्टी को संभावित बगावत भी साधनी होगी।
आपसी सामंजस्य बैठाना चुनौती
भाजपा ने शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज को जुब्बल कोटखाई उपचुनाव के लिए प्रभारी बनाया है। मंत्री सुरेश भारद्वाज और स्व नरेंद्र बरागटा की आपसी खींचतान किसी से छिपी नहीं रही है। बरागटा परिवार का आरोप रहा है पिछले तीन साल में जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र में सरकार और संगठन के कार्यों में सुरेश भारद्वाज लगातार दखल देते रहे हैं। हालांकि राजनीति में इस तरह की खींचतान कोई बड़ा मसला नहीं है और स्वयं नरेंद्र बरागटा अब नहीं रहे है और संभवतः इस खींचतान पर भी विराम लगे। फिर भी बरागटा परिवार और उनके समर्थकों के साथ सामंजस्य बैठाने का गणित हल करना सुरेश भारद्वाज के लिए भी कड़ी चुनौती होगा।
वंशवाद पर भाजपा अब मौन
फतेहपुर में कांग्रेस स्व सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद जब उनके पुत्र भवानी सिंह पठानिया राजनीति में आये तो भाजपा ने वंशवाद को बिसात बना कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया। पर अब नरेन्द्र बरागटा के निधन के बाद भाजपा वंशवाद पर मौन है। जगजाहिर है की नरेंद्र बरागटा के पुत्र चेतन बरागटा भी टिकट की दौड़ में है। हालांकि चेतन पहले से भाजपा में सक्रीय है लेकिन सवाल ये है कि यदि वे स्व. नरेंद्र बरागटा के पुत्र न होते तो भी क्या वे टिकट के प्रबल दावेदार होते ?
1990 में चुनाव हार गए थे वीरभद्र
1983 में हिमाचल की सियासत में टिम्बर घोटाले के चलते बवाल मचा था। इसी बवाल में मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल की कुर्सी चली गई और वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने। 1985 में वीरभद्र सरकार ने रिपीट किया और 1990 में वीरभद्र सिंह हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में उतरे। उस चुनाव में वीरभद्र दो सीटों से लड़े, रोहड़ू और जुब्बल कोटखाई। रोहड़ू में तो वीरभद्र जीत गए लेकिन जुब्बल कोटखाई में करीब पंद्रह सौ वोट से हार गए। दिलचस्प बात ये है की वीरभद्र सिंह को हराने वाले थे वहीं ठाकुर रामलाल उन्हें हटाकर वीरभद्र सिंह पहली बार सीएम बने थे। दरअसल मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद ठाकुर रामलाल को अंधेरा प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया था और प्रदेश की राजनीति से एक किस्म से वे दूर हो गए थे। धीरे -धीरे ठाकुर रामलाल और कांग्रेस के बीच भी खाई बनती गई और ठाकुर रामलाल जनता दल में शामिल हो गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में ठाकुर रामलाल ने जनता दल से टिकट पर जुब्बल कोटखाई से चुनाव लड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को परास्त करके अपनी पकड़ का लोहा मनवाया।
दो मुख्यमंत्री देने वाला इकलौता निर्वाचन क्षेत्र
जुब्बल कोटखाई को कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक माना जाता रहा है। कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह यहाँ से विधायक रह चुके है। ये हिमाचल की इकलौती सीट है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, और दोनों कांग्रेसी ही थे। ठाकुर रामलाल दो बार मुख्यमंत्री रहे है और दोनों बार वे जुब्बल कोटखाई से ही विधायक थे। वहीँ 1985 में मुख्यमंत्री बने वीरभद्र सिंह भी तब जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीट से जीतकर ही विधानसभा पहुंचे थे।
रोहित का टिकट लगभग तय
कांग्रेस की बात करें तो मुख्य तौर पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल के पोते और जुब्बल कोटखाई से दो बार विधायक रहे रोहित ठाकुर ही टिकट के प्रबल दावेदार दिख रहे है। रोहित 2003 और 2012 में जुब्बल कोटखाई से विधायक रहे है। रोहित ठाकुर ही वो नेता जिन्होंने साल 2003 में पूर्व विधायक स्व नरेंद्र बरागटा को हराया था। 2017 में भी रोहित ठाकुर मात्र 1062 वोटो से हारे थे। ऐसे में टिकट के लिए उन्हें किसी अन्य चेहरे से फिलहाल चुनौती मिलती नहीं दिख रही।
2003 से सत्ता के साथ जुब्बल-कोटखाई
जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र की जनता 2003 से ही सत्ता के साथ चलती आ रही है। वर्तमान में भाजपा की सरकार है ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते, 2012 में कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस के रोहित ठाकुर और उससे पहले 2007 में भाजपा की सरकार थी ताे भाजपा के नरेंद्र बरागटा जीते थे। इसी तरह 2003 के चुनाव में रोहित ठाकुर को जनता का आशीर्वाद मिला।
जयराम राज में नहीं मिला मंत्री पद
भारतीय जनता पार्टी में स्व नरेंद्र बरागटा के कद का अंदाजा इसी बात से पता चलता है कि 1998 में पहली बार विधायक बनते ही उन्हें धूमल सरकार में बागवानी राज्य मंत्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। इसके बाद प्रेम कुमार धूमल की सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानी विभाग के अलावा तकनीकी शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया गया था। 2012 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर राजीव बिंदल के त्यागपत्र देने के बाद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था। 2017 में नरेंद्र बरागटा तीसरी बार विधायक बने और प्रदेश में जयराम सरकार बनी। भाजपा की बदली हुई सियासत ने उन्हें मंत्रिपद से तो वंचित रखा गया, लेकिन उन्हें पूरी तरह दरकिनार करना भी मुमकिन नहीं था, सो उन्हें मुख्य सचेतक बनाकर कैबिनेट दर्जा दिया गया।
बागवानों की आवाज थे बरागटा
सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व. बरागटा प्रदेश के बागवानों के हर मसले की आवाज बने। विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बागवानों की आवाज बुलंद करने में उन्होंने कोई कमी नहीं छाेड़ी। वर्तमान जयराम सरकार में वे मुख्य सचेतक थे और विधानसभा के हर सत्र में वो बागवानों के हितों की बात करते दिखते थे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियों की ओर से भ्रष्टाचार का मसला, इन सभी एजेंडों पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठोक-बजा कर बागवानों का पक्ष रखा। यहां तक की देश की विभिन्न मंडियों में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का मुद्दा भी स्व. बरागटा उठाते रहे। 1998 की धूमल सरकार में बागवानी मंत्री रहते हुए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष भी ये मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। इसके बाद अगली धूमल सरकार में भी वे बागवानी मंत्री थे और यूपीए सरकार के सामने ये विषय रखा। जब भी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते बागवानों की फसल नष्ट होती, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा, वह थे नरेंद्र बरागटा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। अपनी ही सरकार को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि केवल आकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पिछले साल हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आकलन ही करती रह गई थी।