मंडी उपचुनाव : प्रतिभा सिंह फैक्टर ने बदल दिया गणित

प्रदेश में चार उपचुनाव होने है और वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए है, विशेषकर आगामी उपचुनाव के लिहाज से। सहानुभूति फैक्टर अभी से हावी दिखने लगा है। नतीजन जिस मंडी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को उम्मीदवार नहीं मिलता दिख रहा था अब वहां प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने भाजपा का चैन छीन लिया है। सांसद बनने का ख्वाब देख रहे नेता ये ही चाह रहे है कि प्रतिभा सिंह अर्की का रुख करें। उधर अर्की भाजपा में भी स्थिति इतर नहीं है। अंतर्कलह ने पहले ही पार्टी की कमर तोड़ कर रख दी है और ऐसे में यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ती है तो डगर निसंदेह और मुश्किल होने वाली है।
प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने न सिर्फ भाजपा का सुकून चुराया है बल्कि कहीं-कहीं कांग्रेस में भी ऐसे ही हाल है। अर्की उपचुनाव में कांग्रेस टिकट के चाहवानों की धड़कनें तेज है। इन्हें डर सता रहा है कि अगर प्रतिभा सिंह अर्की से चुनाव लड़ने का मन बना लेती है तो इनके अरमानों पर पानी फिर जायेगा। दूसरी तरफ मंडी संसदीय क्षेत्र में स्थिति विपरीत है। यहाँ कई नेताओं को लग रहा होगा कि काश प्रतिभा सिंह यहां से चुनाव लड़ ले तो उनके सर से बला टले। यही राजनीति है, हर पल नए समीकरण। इस बीच सहानुभूति के रथ पर सवार हुई कांग्रेस भी विजय श्री की आस में है। हालांकि असल फैसला तो मतदाता को करना है, पर ये कहा जा सकता है कि अब माहौल बनाने में कांग्रेस काफी हद तक सफल हुई है। उधर, उपचुनाव में खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर भी दबाव होगा। मंडी सहित चार उपचुनावों में नतीजे प्रतिकूल रहे तो पार्टी के भीतर अनुराग का राग बुलंद हो सकता है।
मंडी संसदीय उपचुनाव कांग्रेस के लिए इज़्ज़त बचाने तो भाजपा के लिए वर्चस्व बरकरार रखने की जंग होगी। मंडी में कांग्रेस की जो स्थिति थी उसे देखते हुए भाजपा काफी आश्वस्त दिख रही थी। कौल सिंह ठाकुर मंडी संसदीय क्षेत्र का उप चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके थे। वीरभद्र सिंह का परिवार उप चुनाव लड़ने में रूचि नहीं दिखा रहा था। पार्टी टिकट पर पिछले चुनाव हार चुके आश्रय शर्मा भी उपचुनाव को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रहे। साफ़ तौर पर कांग्रेस में चुनाव लड़ने को कोई बड़ा नेता तैयार नहीं था और भाजपा में टिकट की जंग शुरू हो गई थी। परन्तु वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत जैसे ही प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट तेज़ हुई है, परिस्थितियां बदल गई है। कांग्रेस भी सशक्त नज़र आ रही है और भाजपा भी हल्की घबराहट के बाद अब प्रो एक्टिव हो गई है। बहरहाल कांग्रेस प्रतिभा सिंह के भरोसे उम्मीद में है तो भाजपा भी निरंतर मैदान में डटी हुई है।
2019 : कांग्रेस भी हारी, सुखराम परिवार को भी लगा झटका
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मंडी संसदीय सीट से भाजपा ने पंडित रामस्वरूप का टिकट बरकरार रखा था। वहीं 2017 में कांग्रेस को झटका देकर भाजपा में आए पंडित सुखराम अपने पोते आश्रय को सांसद बना देखना चाहते थे। इसी अरमान के साथ दादा - पोता कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने आश्रय को टिकट भी दे दिया, पर हुआ वहीँ जो तमाम राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे थे। 4 लाख 5 हज़ार 459 वोट के अंतर से आश्रय बुरी तरह चुनाव हार गए। शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी जीत का अंतर इतना विशाल होगा। 2019 के लाेकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस काे मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट पर पराजित किया था। उस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा को 6 लाख 47 हजार 189 मत पड़े थे जबकि कांग्रेस के आश्रय शर्मा को 2 लाख 41 हजार 730 मत मिले थे। यहां तक कि जिन विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के विधायक थे, वहां पर भी कांग्रेस के आश्रय काे बढ़त नहीं मिल पाई थी। यानी किन्नौर, कुल्लू और रामपुर विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के नुमाइंदे होने पर भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताया था। इस हार के बाद से ही मंडी में कांग्रेस कभी भी प्रभावशाली नहीं दिखी। कमोबेश ऐसा ही हाल आश्रय शर्मा का भी है।
पांच साल में दस गुना बढ़ा था हार का अंतर
2014 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस उम्मीदवार थी और उस चुनाव में उन्हें करीब 40 हज़ार वोटों से शिकस्त मिली थी। जबकि 2019 में आश्रय शर्मा 4 लाख से भी अधिक वोटों से हारे थे। यानी 2014 में जो अंतर करीब 40 हज़ार था वो पांच साल में 10 गुना बढ़कर करीब चार लाख हो गया।
कई दिग्गज धराशाई हुए है मंडी में
इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में वीरभद्र सिंह मंडी से करीब 36 हजार वोट से चुनाव हार गए थे। 1989 में पंडित सुखराम करीब 28 हज़ार वोट से चुनाव हारे। उन्हें महेश्वर सिंह ने चुनाव हराया था। इसके बाद 1991 में महेश्वर सिंह को पंडित सुखराम ने परास्त किया। 1998 में महेश्वर सिंह ने प्रतिभा सिंह को चुनाव हराया। 1999 में महेश्वर ने कौल सिंह ठाकुर को हराया। महेश्वर सिंह इसके बाद 2004 में प्रतिभा सिंह से और 2009 में वीरभद्र सिंह के सामने चुनाव हार गए। वर्तमान में सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 2013 के उप चुनाव में प्रतिभा सिंह से हारे। वहीं 2014 के आम चुनाव में प्रतिभा सिंह को रामस्वरूप शर्मा ने हराया।
दिग्गज कर्मचारी नेता भी लड़ चुके है चुनाव
मंडी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो प्रदेश कर्मचारी महासंघ में अध्यक्ष के पद पर रह चुके फायर ब्रांड कर्मचारी नेता मधुकर और ठाकुर अदन सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा था। इन दोनों ने हिमाचल की राजनीति के चाणक्य पंडित सुखराम के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि दोनों को ही चुनावों में सफलता नहीं मिली थी, लेकिन संसदीय क्षेत्र के चुनाव में कर्मचारी नेताओं ने दिग्गज नेता को टक्कर दी थी। मधुकर ने 1984 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि अदन सिंह ठाकुर ने भी भाजपा के ही टिकट पर 1996 में चुनाव लड़ा था
माकपा भी आजमाएगी किस्मत
मंडी संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए माकपा भी तैयार है। इस बार माकपा का कोई एक दिग्गज भी मंडी की सियासी रणभूमि में अपनी ताकत आज़माएंगा। पिछली बार यानी लाेकसभा आम चुनाव में इस सीट पर माकपा नेता एवं अधिवक्ता दलीप कायथ मैदान में उतरे थे, लेकिन वे बुरी तरह हार गए थे। अब एक बार फिर उपचुनाव के लिए माकपा में भी टिकट की जंग शुरु हाे चुकी है। सुगबुगाहट है जोगिंदर नगर विधानसभा क्षेत्र से संबंध रखने वाले कुशाल भारद्वाज और रामपुर विधानसभा क्षेत्र के दलीप कायथ में से किसी एक नेता काे टिकट मिल सकता है। संभावनाएं जताई जा रही है दलीप कायथ फिर से मैदान में उतर सकते हैं। गौरतलब है की 2019 के लोकसभा चुनाव में माकपा के दलीप कायथ काे सिर्फ 14 हजार 838 मत मिले थे। भले ही माकपा काे हार मिली हाे मगर हौसला बरकरार है। खास बात तो ये है की इससे पहले माकपा की तरफ से जब भी मंडी लोकसभा का चुनाव लड़ा गया पार्टी तीसरे नंबर पर ही रही।
भाजपा : बदले समीकरण में उम्मीदवार का चयन चुनौती
भाजपा की बात करें तो यह सीट विशेषकर दो नेताओं के लिए प्रतिष्ठता का सवाल बन चुकी है। पहले है जगत प्रकाश नड्डा जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उनके प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव में मनमाफिक नतीजे नहीं आये तो सवाल उठना लाज़मी है। दूसरे है मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, मंडी जिनका अपना गृह जिला है। जाहिर है ऐसे में उप चुनाव की ये सियासी परीक्षा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। मंडी संसदीय सीट से पूर्व सांसद एवं पूर्व विधायक महेश्वर सिंह और सैनिक कल्याण बाेर्ड के चेयरमैन ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर के नाम चर्चा में है। मंडी से यदि प्रतिभा सिंह सिंह मैदान में होती है तो भाजपा सरकार में दाे मंत्रियाें में से किसी एक काे भी मंडी संसदीय सीट से उपचुनाव लड़ने के लिए मना सकती है। मगर सवाल ये भी है कि क्या सरकार किसी मंत्री काे संसद पहुंचा कर उपचुनाव का रिस्क लेना चाहेगी। खबर ये भी है कि मंत्री महेंद्र सिंह अपनी बेटी वंदना गुलेरिया के लिए भी टिकट की पैरवी कर सकते है, जो वर्तमान में जिला परिषद सदस्य है। इनके अलावा कर्मचारी नेता एन आर ठाकुर व राजेश शर्मा, तथा त्रिलोक जम्वाल के नाम भी चर्चा में है।
प्रभारी और सह प्रभारी ही तो नहीं होंगे उम्मीदवार
भाजपा ने जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर काे उपचुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किया है, जबकि शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर काे सह प्रभारी बनाया गया है। हालंकि बदले समीकरण के बाद चर्चा ये भी है कि कहीं ऐसा न हो कि भाजपा की उम्मीदवार की तलाश प्रभारी या सह प्रभारी पर जाकर ही ठहरे।
संभावित: मंडी से ही हुंकार भरेगी प्रतिभा सिंह
प्रतिभा सिंह यदि चुनाव लड़ती है तो वीरभद्र सिंह के परिवार के लिए भी ये चुनाव वर्चस्व बरकरार रखने की चुनौती है। उनके पास दो विकल्प होंगे, मंडी और अर्की। पर जानकार मान रहे है की प्रतिभा सिंह मंडी से मैदान में उतरेंगी। दरअसल अर्की में कांग्रेस की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है और एक गुट विशेष प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारने का पक्षधर है। जबकि अन्य एक अन्य गुट संजय अवस्थी के साथ दिख रहा है। इस स्थिति में वीरभद्र परिवार का सब कुछ दांव पर होगा। खुदा न खास्ता प्रतिभा सिंह अर्की से मैदान में उत्तरी और नतीजा प्रतिकूल रहा तो वर्चस्व भी धुंधला जायेगा। वहीँ प्रतिभा सिंह यदि मंडी संसदीय क्षेत्र से मैदान में होती है तो उन्हें बुशहर रियासत के दायरे में आने वाले क्षेत्रों से अच्छी सहानुभूति मिल सकती है, विशेषकर रामपुर, किन्नौर, आनी, करसोग और सिराज में। 2014 की मोदी लहर में भी प्रतिभा सिंह मंडी से करीब 40 हजार वोट से ही हारी थी जो अंतर आश्रय शर्मा के उम्मीदवार रहते 2019 में करीब चार लाख पहुंच गया था। ऐसे में सहानुभूति के रथ पर सवार होकर प्रतिभा सिंह 2014 के 40 हजार के अंतर को पट सकती है। बावजूद इसके अगर नतीजा उनके पक्ष में नहीं भी आता है तो भी उन्हें आश्रय शर्मा की तरह एकतरफा हार मिलेगी, ऐसा नहीं लगता। सो प्रतिभा सिंह के लिए मंडी उप चुनाव लड़ना नपातुला जोखिम है। वहीँ यदि प्रतिभा सिंह मंडी से चुनाव नहीं लड़ती है तो कौल सिंह ठाकुर कांग्रेस की पसंद हो सकते है। बताया जा रहा है कि बीते दिनों फीडबैक लेने मंडी पहुंची चार सदस्य वाली कमेटी के सामने भी दो ही नाम आये है, प्रतिभा सिंह और कौल सिंह। हालांकि जानकार कौल सिंह की प्राथमिकता 2022 का विधानसभा चुनाव ही मान रहे है। सरकार बनने की स्थिति में वे सीएम पद के दावेदार भी हो सकते है, ऐसे में वे मंडी उपचुनाव लड़ेंगे ऐसा मुश्किल लगता है।
फीका पड़ा पंडित सुखराम एंड फैमिली का वर्चस्व
अर्से तक मंडी की सियासत में पंडित सुखराम एंड फैमिली का वर्चस्व रहा है। पर पंडित जी 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। अनिल शर्मा फिर विधायक भी बन गए और जयराम कैबिनेट में मंत्री भी। तदोपरांत पोते आश्रय को सांसद बनाने के लिए सुखराम और उनके पोते आश्रय 2019 में कांग्रेस में वापस लौट गए और अनिल शर्मा भाजपा में बने रहे। ये कदम भारी पड़ा, आश्रय तो बुरी तरह चुनाव हारे ही, उनके पिता अनिल शर्मा का मंत्री पद भी गया। अब कहने को तो अनिल भाजपा में बने हुए है लेकिन जानकार मानते है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से उनकी औपचारिक विदाई भी तय है। बाकी राजनीति में कुछ भी मुमकिन है।
कांग्रेसी विधयकों के क्षेत्र में भी भाजपा थी हावी
2019 के लाेकसभा चुनाव पर नज़र डाले तो भाजपा ने कांग्रेस काे मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली हर विधानसभा सीट पर पराजित किया था। उस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा को 6 लाख 47 हजार 189 मत पड़े थे। वहीँ आश्रय को 2 लाख 41 हजार 730 मत मिले थे। यहां तक कि जिन विधानसभा क्षेत्राें में कांग्रेस के विधायक थे, वहां पर भी कांग्रेस के आश्रय काे बढ़त नहीं मिल पाई थी।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बढ़त
विधानसभा क्षेत्र भाजपा को बढ़त
पांगी-भरमौर 19726
लाहौल स्पीति 3962
मनाली 16863
कुल्लू 24385
बंजार 21973
आनी 24569
करसोग 26860
सुंदरनगर 23427
नाचन 26395
सराज 37147
द्रंग 25517
जोगिंद्रनगर 36292
मंडी 27491
बल्ह 33168
सरकाघाट 31021
रामपुर 11550
किन्नौर 7048
17 विधानसभा क्षेत्रों का बनेगा रिपोर्ट कार्ड
मंडी संसदीय क्षेत्र में 17 विधानसभा क्षेत्र आते है। जाहिर है ऐसे में दोनों मुख्य राजनीतिक दलों का सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में इम्तिहान होगा। ये हिमाचल की कुल 68 विधानसभा सीटों का 25 फीसदी है। ऐसे में 2022 से पहले मंडी संसदीय उपचुनाव में बेहतर करने का दबाव दोनों राजनीतिक दलों पर होगा। जीत मिले या हार, पर विश्लेषण सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों का होना है। जाहिर है स्थानीय नेताओं पर भी बेहतर करने का दबाव रहेगा। फिलवक्त इन 17 विधानसभा क्षेत्रों में से सिर्फ किन्नौर, रामपुर और कुल्लू में ही कांग्रेस के विधायक है। 2022 के लिए कांग्रेसी की कितनी तैयारी है, इसकी झलक भी लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिलेगी। चुनाव के बाद सभी सम्बंधित विधानसभा क्षेत्रों का रिपोर्ट कार्ड बनना भी तय है।
- वर्ष सांसद पार्टी
- 1971 वीरभद्र सिंह कांग्रेस
- 1977 गंगा सिंह भारतीय लोक दल
- 1980 वीरभद्र सिंह कांग्रेस
- 1984 पंडित सुखराम कांग्रेस
- 1989 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी
- 1991 पंडित सुखराम कांग्रेस
- 1996 पंडित सुखराम कांग्रेस
- 1998 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी
- 1999 महेश्वर सिंह भारतीय जनता पार्टी
- 2004 प्रतिभा सिंह कांग्रेस
- 2009 वीरभद्र सिंह कांग्रेस
- 2013 प्रतिभा सिंह कांग्रेस
- 2014 राम स्वरुप शर्मा भारतीय जनता पार्टी
- 2019 राम स्वरुप शर्मा भारतीय जनता पार्टी
बीते पांच दशक में मंडी लोकसभा सीट पर 1971 से अब तक हुए 13 लोकसभा चुनाव और एक उप चुनाव हुआ है जिसमें कांग्रेस को उप चुनाव सहित 8 में जीत मिली है और ये सभी जीत पंडित सुखराम, वीरभद्र सिंह और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के नाम दर्ज है। यानी 50 साल से मंडी में कांग्रेस की सियासत सिर्फ दो परिवारों के भरोसे चली है। इस मर्तबा भी कांग्रेस की उम्मीद प्रतिभा सिंह पर ही टिकी है।