फील्ड में डटे भारद्वाज, अग्निपरीक्षा से कम नहीं नगर निगम चुनाव

शिमला नगर निगम चुनाव हिमाचल की राजनीति के लिहाज़ से कई मायनों में अहम है। ये चुनाव भाजपा कांग्रेस सहित कई सियासी दिग्गजों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। किसी के लिए ये अपनी राजनीतिक प्रतिभा के प्रदर्शन का मौका है तो किसी के लिए साख का सवाल l इस चुनाव में जिन नेताओं की नाक और साख दाव पर लगी है उनमें से एक सुरेश भारद्वाज भी है। जयराम सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सुरेश भारद्वाज शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र से 4 बार विधायक रहे है l भारद्वाज क्षेत्र की सियासत से भली-भांति परिचित है और ज़ाहिर है कि भाजपा भी भारद्वाज के इस एक्सपीरियंस को अपने प्लस पॉइंट्स में गिन रही है l ये अलग बात है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारद्वाज को शिमला शहरी से टिकट न देकर कुसुम्पटी भेज दिया था और भारद्वाज चुनाव हार गए थे। हालांकि उनके समर्थक मानते है कि अगर भारद्वाज शिमला शहरी से मैदान में होते तो शायद बात कुछ और होती। खैर, अब भी शिमला शहरी सीट पर भारद्वाज का प्रभाव माना जाता है और शायद इसीलिए भारद्वाज को नगर निगम चुनाव प्रबंधन समिति के सदस्य के तौर पर भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब यदि भाजपा बेहतर करती है तो निसंदेह भारद्वाज के लिए भी ये संजीवनी साबित होगी।
शिमला शहरी सीट पर भारद्वाज की पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारद्वाज 1990 और 2007 से 2017 तक लगातार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। जयराम सरकार में भारद्वाज शहरी विकास मंत्री भी रहे है। ऐसे में जाहिर है कि अपने कार्यकाल में करवाए गए कार्यों को जनता के बीच रखने में भारद्वाज कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। नामांकन के बाद से ही भारद्वाज लगातार प्रत्याशियों के साथ मैदान में डटे है और शिमला की गली-गली में घूम कर उम्मीदवारों के लिए प्रचार प्रसार कर रहे है। उम्मीदें बहुत है और विधानसभा चुनाव में हार के बाद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए उनके पास ये एक मौका भी है। पर खुदा न खास्ता अगर नतीजे भाजपा के पक्ष में न आए तो सवाल उठना लाज़मी है।