खुलती दिख रही हैं महागठबंधन की गांठ !
- सवाल : कांग्रेस को महागठबंधन से हासिल क्या होगा ?
- कैसे साथ आएंगे आप और कांग्रेस ?
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ही विपक्ष के महागठबंधन की गांठें खुलती दिखी हैं। महागठबंधन में न दिल मिल रहे हैं और न हाथ। मध्य प्रदेश में सपा और कांग्रेस के बीच जो हुआ उसे तो माहिर सिर्फ ट्रेलर मान रहे हैं। वहीं आम आदमी पार्टी हर राज्य में टांग फंसाए हुए हैं। जाहिर हैं 'आप' का अंजाम 'आप' को भी पता हैं, यानी महागठबंधन के बड़े गटक दलों में न ताल हैं और न मेल, सबकी अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग। ऐसे में ये महागठबंधन कब तक 'हम साथ साथ हैं' वाली तस्वीरें खींचवाता हैं, ये देखना रोचक होगा।
फिलवक्त महागठबंधन बन चुका हैं और सवाल इसके टिकने पर हैं। इसमें शामिल एक राज्य तक सीमित कई नेता भी इसी प्रयास में दिख रहे हैं कि 'बिल्ली के भाग का छीका टूटे' और वो पीएम बन जाएँ। पर कांग्रेस के अलावा इस महागठबंधन में कोई ऐसी पार्टी नहीं हैं जो धुरी का काम कर सके। ज्यादातर अन्य पार्टियां जब एक राज्य से बाहर हैं ही नहीं, तो सीट शेयरिंग कैसी ? जो हैं उनकी सीट शेयरिंग भी कांग्रेस से होनी हैं, तो क्या कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय गठबंधन मुफीद नहीं होता, ये पार्टी को सोचना होगा। महागठबंधन में कांग्रेस के अलावा सिर्फ आम आदमी पार्टी ही ऐसा दल हैं जिसकी सरकार एक से ज्यादा राज्य में हैं, पर कांग्रेस और आप के बीच सीट शेयरिंग की सम्भावना को तो खुद कांग्रेस के स्थानीय नेता अभी से खारिज कर रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस इस महागठबंधन का हिस्सा बन चुकी हैं और जाहिर हैं अब पार्टी को सोच समझकर कर आगे बढ़ना होगा।
देश के 5 राज्यों की 161 लोकसभा सीटें ऐसी है जहाँ कांग्रेस का या तो पहले से गठबंधन है या कांग्रेस अकेले क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन कर सकती है। महाराष्ट्र में 48 सीटें है और यहाँ एनसीपी का शरद पवार गुट -कांग्रेस और उद्धव ठाकरे पहले ही साथ है। बिहार में 40 सीटें है और यहाँ कांग्रेस -आरजेडी और जेडीयू पहले ही साथ है। तमिलनाडु में 39 सीटें है और यहाँ भी डीएमके और कांग्रेस पहले से साथ है। झारखंड में 14 सीटें है और यहाँ पहले से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन है। केरल में 20 सीटें है और यहाँ भी लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन एक किस्म से पहले से ही है। ऐसे में कांग्रेस का इस महागठबंधन में शामिल होने का औचित्य क्या था और इससे कांग्रेस को मिलेगा क्या ?
वहीँ पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें है। वर्तमान में ममता बनर्जी बंगाल की सबसे ताकतवर नेता है। कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर ममता के सामने लड़ते रहे है। अपेक्षित हैं कि ममता लेफ्ट के लिए एक भी नहीं छोड़ेगी, ऐसे में क्या कांग्रेस वक्त की नजाकत को समझते हुए लेफ्ट पर ममता को वरीयता देगी, ये बड़ा सवाल है। क्या ममता भी कांग्रेस को लेकर लचीला रुख अपनाती है, ये भी देखना होगा। इसी तरह दिल्ली की 7 और पंजाब की 13 सीटों पर कांग्रेस और आप के बीच सीट शेयरिंग होना बेहद मुश्किल है। ये दोनों राज्य आप ने कांग्रेस से छीने हैं, यहाँ आप से गठबंधन करना कांग्रेस के लिए भूल सिद्ध हो सकता हैं।
कांग्रेस क्या खोयेगी,सपा को होगा नुक्सान !
उतर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें है और पिछले चुनाव भी कांग्रेस और सपा ने मिलकर लड़ा था। तब बसपा भी साथ थी। यहाँ सपा और कांग्रेस के बीच तल्खी बढ़ती दिख रही हैं। कांग्रेस की कोशिश खोये हुए मुस्लिम वोट को फिर अपने साथ जोड़ने की हैं और ये ही सपा और कांग्रेस के बीच खटास का कारण बन रहा हैं। अगर कांग्रेस मुस्लिम वोट में सेंध लगा पाती हैं तो नुकसान सपा का ही होगा। कांग्रेस के पास यहाँ खोने को ज्यादा कुछ नहीं हैं और ऐसे में यहाँ जरुरत सपा को ज्यादा होगी। सपा का जनाधार उत्तर प्रदेश के बाहर न के बराबर हैं, ऐसे में कांग्रेस के लिए यहाँ क्षेत्रीय गठबंधन ज्यादा तर्कसंगत हैं।
130 सीटों पर भाजपा से सीधा मुकाबला
छत्तीसगढ़ की 11, गुजरात की 26, हरियाणा की 10, हिमाचल की 4 , मध्य प्रदेश 29, राजस्थान की 25 और उत्तराखंड की 5 सीटों सहित देश की करीब 130 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। यहाँ कांग्रेस को गठबंधन की जरुरत ही नहीं है।