हर सीट पर भाजपा से लड़ाई, पर एक सीट पर भाजपा का प्रचार करती थी मायावती

अपमान और प्रतिशोध, यूपी में मायावती का राजनीतिक करियर भी लगभग जयललिता जैसा है। जयललिता 25 मार्च 1989 में सदन में हुई बदसलूकी के बाद 6 बार सीएम बनी, तो उत्तर प्रदेश में मायावती, 1993 में गेस्ट हाउस कांड के बाद दलितों की एकमात्र नेता बनकर उभरी।
दरअसल, 1993 में सपा और बसपा की गठबंधन में सरकार बनने के बाद मुलायम सिंह सीएम थे। साल 1995 में जब बसपा ने गठबंधन से अपना नाता तोड़ा तो मुलायम सिंह के समर्थक आग बबूला हो गए। इसी बीच 2 जून को अचानक लखनऊ का गेस्ट हाउस घेर लिया गया जहां मायावती मौजूद थी। मायावती पर हमला हुआ, उन्हें जान से मारने की कोशिश हुई। इस बीच भाजपा ने बसपा को समर्थन देने का ऐलान किया और घटना के अगले ही दिन मायावती पहली दफा यूपी की सीएम कुर्सी पर विराजमान हुईं।
1993 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी प्रमुख कांशीराम ने गठजोड़ किया था। तब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और कुल विधानसभा सीट थी 422। चुनाव पूर्व हुए गठबंधन में मुलायम सिंह 256 सीट पर लड़े और बीएसपी को 164 सीट दी थी। एसपी- बीएसपी गठबंधन की जीत हुई जिसमें एसपी को 109 और बीएसपी को 67 सीट मिली थी। मुलायम सिंह यादव बीएसपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने, लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई और सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव होने लगा लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए, जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थी। तदोपरांत जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। मायावती पर गेस्ट हाउस में हमला हुआ था। उस वक्त मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थी, तभी कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। बताया जाता है कि अपनी जान पर खेलकर बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे ढकेला। द्विवेदी की छवि भी दबंग नेता की थी। ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गए थे। ये कांड भारत की राजनीति के माथे पर कलंक है और यूपी की राजनीति में इसे गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है।
खुद मायावती ब्रम्हदत्त द्विवेदी को भाई कहती है और सार्वजनिक तौर पर कहती रही कि अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने मायावती की जान बचाई थी। मायावती ने कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। पूरे राज्य में मायावती बीजेपी का विरोध करती रहीं, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती थी।