वाजपेयी बोले, "अगर आज मैं जिंदा हूं तो राजीव गांधी की वजह से"
पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी ने 1991 में कहा था, "अगर आज मैं जिंदा हूं तो राजीव गांधी की वजह से।" दरअसल भारतीय राजनीति में एक दौर ऐसा भी था जब विरोध के बावजूद नेता एक दूसरे का सम्मान करते थे, एक दूसरे की फ़िक्र करते थे, सहायता करते थे और उसका ढिंढोरा भी नहीं पिटते थे। मदद भी हो और सामने वाले का आत्मसम्मान भी बना रहे। ऐसे ही एक वाक्या है राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा। जिस शालीनता के साथ राजीव गाँधी ने अटल बिहारी वाजपेयी की मदद की थी, उसकी मिसाल मुश्किल है।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में कांग्रेस की आंधी थी और 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने विरोधी दल के बड़े बड़े बरगद उखड़ गये। अटल बिहारी वाजपेयी जो विपक्ष के सबसे लोकप्रिय नेता थे, वे खुद ग्वालियर से चुनाव हार गए। इस चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो सांसद ही जीते थे। एक गुजरात से और दूसरे आंध्र प्रदेश से। पर इस हार से न तो अटल बिहारी वाजपेयी का कद कम हुआ और न ही और प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उनके निजी रिश्तों पर कोई असर पड़ा।
कुछ वक्त बाद अटल बिहारी वाजपेयी को किडनी संबंधी बीमारी से परेशान रहने लगी। बीमारी गंभीर थी और उस वक्त भारत में इसका उचित इलाज संभव न था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि अमेरिका जा कर इलाज कराने की सलाह दी थी। पर अटल जी की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अमेरिका जा कर अपना इलाज करवा ले। ये बात किसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मालूम हो गयी। एक दिन अटल उन्होंने बिहारी वाजपेयी को औपचारिक मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय आने के निमंत्रण दिया। वाजपेयी जी गये तो राजीव गांधी ने कहा, सरकार ने तय किया है कि आपके नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र भेजा जाएँ। सरकार आपके अनुभव का फायदा उठाना चाहती है। इस सरकारी दौरे में आप अमेरिका में अपनी बीमारी का इलाज भी करा सकते हैं। इस तरह वाजपेयी अमेरिका गए और उन्होंने अपनी बीमारी का इलाज कराया, जिससे उनकी जान बच सकी।
अपने जीवित रहते हुए राजीव गांधी ने कभी किसी दूसरे से इस मदद की चर्चा नहीं की।
सब लोगों को ये ही लगा कि अटल जी बड़े नेता है और शानदार वक्ता भी , सो उनकी योग्यता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र भेजा गया है। अटल जी भारत के वे पहले नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दे कर देश का गौरव बढ़ाया था।
राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी विपक्षी दल के नेता थे। भाजपा और कांग्रेस के बीच विरोध का रिश्ता था। राजीव गांधी चाहते तो वाजपेयी जी को मदद करने की बात सार्वजनिक कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी की जब तबीयत ठीक हो गयी तो उन्होंने एक पोस्टकार्ड लिख कर राजीव गांधी का आभार जताया था। ये राज शायद राज ही रह जाता, लेकिन 1991 में राजीव गांधी की हत्या ने अटल बिहारी वाजपेयी को विचलित कर दिया। तब उन्होंने राजीव गांधी की उदारता और विशिष्टता को बताने के लिए ये किस्सा बयां किया। राजनीति के दो परस्पर विरोधी, लेकिन दोनों एक दूसरे के प्रति उदार, दोनों के मन में एक दूसरे के लिए सम्मान, भारतीय राजनीति ने ऐसे नेता और ऐसा दौर भी देखा है।