गैरों में बेशक दम नहीं, पर कहीं अपने न लूट लें

हाल बेहाल है। बादस्तूर बरसते तीखे विपक्षी बाणों से तो जयराम सरकार किसी तरह बच रही थी मगर अब तो अपने भी शोले बरसाने लगे है। सरकार के अपने भी अब बैरी होते दिख रहे है जिसकी कुछ झलक विधानसभा के इस मानसून सत्र में देखने को मिल रही है। जैसा की लगभग तय था ये मानसून सत्र भी हंगामों से भरा हुआ है। विपक्ष असली मुद्दों को उठाने से इतर हर छोटे बड़े सवाल पर वॉकआउट करता रहा और सवालों का जवाब देने से सरकार बचती रही। मगर इस बार विपक्ष के साथ-साथ अपनों ने भी सरकार को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी। डॉ राजीव बिंदल ने इस सरकार की दुखती रग इन्वेस्टर मीट का मसला छेड़ दिया। सरकार की तारीफ करते -करते बिंदल इन्वेस्टर मीट का जख्म भी कुरेद गए। तो वहीँ ध्वाला की रेत बजरी भी सरकार की झोली में जा गिरी। सियासी पंडितों का मानना है की पुराने ज़ख्मों से उभरी इस टीस का असर सियासी ग्रह दशा पर असर जरूर डालेगी।
यहां खास बात ये है कि इन दोनों ही नेताओं के निशाने पर उद्योग मंत्री बिक्रम ठाकुर रहे। इसके पीछे कोई विशेष कारण है या ये सिर्फ एक इत्तेफ़ाक़ है, कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे अगर जयराम सरकार के साढ़े तीन साल पर नज़र डाले तो जहां रमेश चंद ध्वाला और राजीव बिंदल को कैबिनेट से बाहर रखा गया, तो वहीँ बिक्रम ठाकुर का रूतबा बढ़ता गया। उद्योग एवं खनन मंत्री बिक्रम ठाकुर पर इन्वेस्टर मीट को लेकर सवाल उठ रहे थे और पिछले साल कैबिनेट विस्तार से पहले कैबिनेट में उनका वजन कम होने के कयास थे। पर हुआ उलट, कैबिनेट विस्तार के बाद बिक्रम ठाकुर को परिवहन विभाग भी मिल गया। अब ऐसे बिक्रम ठाकुर के मंत्रालयों पर इन दो सियासी सूरमाओं के सवालों के कई मायने है।
बिंदल के तीखे सवाल ज़रूर चुभेंगे
इस बार सदन में डॉक्टर राजीव बिंदल ने ग्लोबल इन्वेस्टर मीट और ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी को लेकर अपनी ही सरकार पर सवालों के तीर दागे। उन्होंने पूछा कि इन्वेस्टर मीट और इसकी ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी के बाद प्रदेश में कितने लोगों को उद्योगों में प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा ? तीन साल में संभावनाओं के अनुरूप प्रदेश सरकार कितनी आगे बढ़ी? एक वर्ष में कितने रोजगार बढ़ने की उम्मीद है ? प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर इस्तीफ़ा देने के बाद हाशिये पर गए बिंदल के ये सवाल सरकार को जरूर चुभे होंगे। वैसे इसमें कोई संशय नहीं है कि बीत साढ़े तीन साल में बिंदल को सेटल करने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी गई है। पहले 5 बार के विधायक और एक बार मंत्री रह चुके बिंदल को कोई मंत्री पद नहीं दिया गया और माननीय विधानसभ अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, मगर बिंदल के सितारे फिर डूबे और स्वास्थ्य घोटाले के चलते बतौर प्रदेश अध्यक्ष भी इस्तीफ़ा देना पड़ा। तब से बिंदल एक किस्म से दरकिनार है।
ध्वाला बरसे और विपक्ष ने तालियां बजाई
रमेश चंद ध्वाला की बात करें तो इस बार ध्वाला ने भी मानसून सत्र में जिला कांगड़ा के स्टाेन क्रशर बंद हाेने पर सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि सरकार अगर इतने कड़े नियम कानून बनाएगी तो क्रेशर मालिक काम नहीं करेंगे। हावी होती अफसरशाही पर भी ध्वाला मुखर हुए। ध्वाला ने सरकार पर वार किया और विपक्ष ने तालियां बजाना शुरू कर दिया। रमेश धवाला ने जयराम सरकार से साफ़-साफ़ ये भी कह दिया की वे भ्रष्टाचार का साथ नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि मैं एक संघर्षशील नेता हूं, लेकिन सरकार में बैठे अफसर इसे नहीं जानते। ये पहली बार नहीं है जब सरकार के खिलाफ ध्वाला मुखर हुए हो। ध्वाला भले ही ये कहते है की उनको मंत्री पद का कोई लालच, कोई इच्छा नहीं है, कोई मलाल नहीं है मगर उनके एक्शन और रिएक्शन दोनों ही कुछ और इशारा करते है।
कार्यकर्त्ता की उपेक्षा, धन्ना सेठों का ख्याल
भाजपा में असंतोष टॉप टू बॉटम दिख रहा है। ऐसा नहीं है कि बड़े चेहरे ही खफा दिख रहे है, आम कार्यकर्त्ता भी ख़ास खुश और उत्साहित नहीं है। मसलन हालहीं में मनोनीत पार्षदों की तैनाती में जिस तरह से पार्टी के आम कार्यकर्त्ता की उपेक्षा कर धन्ना सेठों का ख्याल रखा गया है उससे आम कार्यकर्त्ता हतोत्साहित है। इसी तरह अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में गुटबाजी चरम पर है। कई ज़िलों में तो संगठन भी लाचार दिख रहा है। जिला संगठनो की कमान ऐसे नेताओं के हाथ में दिख रही है जिनकी पकड़ न के बराबर है। ये असंतोष बरकरार रहा तो मिशन रिपीट का सपना पूरा होना मुश्किल है।