क्या सच में अतिआत्मविश्वास से हारी भाजपा ?

उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपाई भी बिखरे हुए नजर आ रहे है और उनके बयान भी। कुछ अपनी हार का कारण अतिआत्मविश्वास बता रहे है तो कुछ इस विषय पर बात ही नहीं करना चाहते। भाजपा की हार का असल कारण क्या रहा, इस पर न तो अभी मंथन पूरा हुआ है और न ही खुलकर सियासी दोषारोपण का सिलसिला आरंभ हुआ है। ऐसे में चुप्पी ही बेहतर है। पर फिर भी बड़े नेताओं द्वारा हार का कारण कभी महंगाई तो कभी सहानुभूति लहर, तो कभी अतिआत्मविश्वास बताया जा रहा है। पर हैरत ये है कि जिस कमजोर संगठन, अंतर्कलह और भीतरघात पर खुलकर बात होनी चाहिए, वो नदारद है। सिर्फ रमेश ध्वाला एकलौते ऐसे नेता है जिन्होंने तालमेल की कमी का मसला उठाया है, बाकी दिग्गज अभी मौन ही है। बीते दिनों जयराम कैबिनेट के मंत्री राकेश पठानिया ने अतिआत्मविश्वास को हार का कारण बताया। ब्यान बाहर आया तो चर्चाएं भी शुरू हो गई। मंत्री के ' अति आत्मविश्वास के कारण मिली हार' वाले ब्यान को प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना ने कवर अप करने की कोशिश की। खन्ना के मुताबिक ये मंत्री के व्यक्तिगत विचार है, इनसे पार्टी का कुछ भी लेना देना नहीं है। पर बात निकली है, तो चर्चा तो होगी ही। क्या सच में भाजपा की हार का कारण अतिआत्मविश्वास रहा है, ये विश्लेषण का विषय है।
उपचुनाव में जमीनी हकीकत की बात करें तो भाजपा के अतिआत्मविश्वास को तो छोड़िये, पार्टी में विश्वास में भी नज़र नहीं आ रहा था। मंडी को छोड़ कर हर उपचुनाव क्षेत्र में भाजपा अंतर्कलह और भीतरघात से बचती बचती नज़र आई। इन तीनों उपचुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस शुरुआत से लेकर ही आत्मविश्वास से भरपूर नज़र आ रही थी, मगर ऐसा भाजपा में नहीं था। मंडी संसदीय क्षेत्र में भी भाजपाई मुख्यमंत्री से उम्मीदें लगाए बैठे थे और निसंदेह निजी तौर पर मुख्यमंत्री उम्मीदों पर खरे भी उतरे। पर अन्य मंत्री कुछ खास नहीं कर पाए जो असल में हार का बड़ा कारण है। अन्य तीन उपचुनाव क्षेत्रों की बात करें तो जुब्बल कोटखाई में तो भाजपा की जद्दोजहद जमानत बचाने से आगे दिख ही नहीं रही थी। फतेहपुर में भी कृपाल परमार का टिकट काटने के बाद पार्टी सहज दिखी ही नहीं। अर्की में भी अंतर्कलह हावी थी और कार्यकर्ता बंटा हुआ। उपचुनाव में हार के बाद भाजपा के संगठन और सरकार के मंत्रिमंडल में बदलाव के कयास लग रहे है। भाजपा पार्टी विद डिसिप्लिन है, और प्रदेश में जो भी हाल हो मगर राष्ट्रीय स्तर पर इस हार को अनदेखा नहीं किया जाने वाला। नॉन परफार्मिंग नेता बाहर जाएंगे, ऐसा माना जा रहा है। जिन नेताओं को ज़िम्मेदारी दी गई थी उनसे सवाल तो पूछे ही जायेंगे, जवाबदेही भी तय होगी और निश्चित तौर पर आवश्यक सुधार भी होगा।