सियासी ठाठ के लिए भी आठ जिले मुमकिन नहीं !

फर्स्ट वर्डिक्ट. सोलन
हिमाचल प्रदेश को चार नए जिलों की सौगात मिल चुकी है, बीते दिनों ये 'फेक न्यूज़' सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई। कोई इसे गलत करार देता रहा तो किसी ने इसे अंदर की खबर मान लिया। बहरहाल न सरकार ने कोई ऐसा ऐलान किया है और न इस सम्बन्ध में चर्चा की कोई पुष्ट खबर सामने आई, पर सुगबुगाहट जरूर है कि चुनावी साल में सरकार नए जिलों के गठन को हरी झंडी दे सकती है। हालांकि ये निर्णय मिशन रिपीट में कितना कारगर सिद्ध होता है इसे लेकर माहिरों की राय बंटी हुई है। कुछ मानते है कि यदि ऐसा हुआ तो ये मिशन रिपीट में भाजपा का मास्टर स्ट्रोक सिद्ध हो सकता है। वहीं कुछ इसे दोधारी तलवार मान रहे है। दरअसल माजरा ये है कि इस वक्त प्रदेश में करीब आठ नए जिले बनाने की मांग है। अकेले जिला कांगड़ा में नूरपुर, पालमपुर और देहरा को नया जिला बनाने की मांग उठ रही है। जिला मंडी से करसोग और सुंदरनगर, जिला सोलन से बीबीएन और जिला शिमला से रोहड़ू व रामपुर को अलग जिला बनाने की मांग उठ रही है। बहरहाल इतना भी तय हैं कि सियासी ठाठ के लिए आठ नए जिले बनाना मुमकिन नहीं हैं और न ही सरकार किसी को नाराज करने की स्थिति में हैं। सो ऐसे में यदि सिर्फ कुछ नए जिले बनते है तो मुमकिन है बात बनेगी कम और बिगड़ेगी ज्यादा।
यूँ तो चुनावी मौसम में नए जिलों का जिन्न अक्सर बाहर निकल आता है, पर 1972 के बाद प्रदेश में कोई नया जिला नहीं बना है। यानी पचास वर्ष में किसी नए जिले का गठन नहीं हुआ, जबकि विशेषकर बीते दो दशक से कई नए जिलों के गठन की मांग जोर शोर से उठी है। हाल ही में हुए उपचुनावों के दौरान भी ये मुद्दा खूब गूंजा था। खबरें तो ये तक थी कि हिमाचल में नए जिलों के गठन के लिए भाजपा संगठन व सरकार में अंदर खाते मंथन हो रहा है। हालांकि अंत में ये सिर्फ और सिर्फ चुनावी शगूफा ही साबित हुआ। पॉलिटिकल माइलेज के लिए यदि वर्तमान सरकार नए जिलों के गठन की मांग को मान भी लेती है तो भी असल सवाल ये है कि क्या प्रदेश सरकार नए जिलों के वित्तीय व्यय का प्रबंधन करने में सक्षम है ? प्रदेश पर लगातार बढ़ता कर्ज का बोझ किसी से छिपा नहीं है, ऐसे में नए जिलों के गठन का खर्च कहाँ से आएगा ? संभवतः यदि ऐसा हुआ तो नया कर्ज लेना ही सरकार के सामने एकमात्र विकल्प होगा।
कांगड़ा : या तो तीन या कोई नहीं !
वर्ष 1985 से अब तक प्रदेश में उसी की सरकार बनी है जिसने कांगड़ा फतेह किया है। 15 विधानसभा सीटों वाला ये जिला ही हिमाचल में सत्ता की राह प्रशस्त करता है। अब इसी कांगड़ा में तीन नए जिले बनाने की मांग उठा रही है। यहां नूरपुर, पालमपुर और देहरा को जिला घोषित करने की मांग हो रही है। नूरपुर विधायक व वन मंत्री राकेश पठानिया जहां नूरपुर को जिला घोषित करवाने के पक्ष में है, तो वहीं पालमपुर विधायक आशीष बुटेल भी लगातार पालमपुर को जिला घोषित करने की मांग कर रहे है। वहीं धरातल स्थिति ये है कि देहरा का दावा भी नकारा नहीं जा सकता। कांगड़ा के विभाजन में सरकार के समक्ष दो चुनौतियां है। एक, अगर कांगड़ा का विभाजन होता है तो निसंदेह इसका सियासी दम भी कम होगा और इसी के चलते एक वर्ग इसके विरोध में है और इस तबके का गुस्सा सरकार को भोगना पड़ सकता है। दूसरा, सरकार या तो तीनों नए जिले बनाये अन्यथा जो भी कृपा से वंचित रहेगा उस क्षेत्र की कोप दृष्टि निसंदेह सरकार पर बनी रहेगी। ऐसे में सियासी नुक्सान तय होगा। माहिर मानते हैं कि या तो जयराम सरकार तीन नए जिले बनाये या फिर चुपचाप इस मुद्दे पर बचती रहे।
" यदि नए जिलों का गठन होता हैं काँगड़ा का विभाजन होगा और क्षेत्रफल के साथ -साथ वोटर्स भी बटेंगे। यहां कुछ को नए जिले की ख़ुशी होगी तो कुछ को जिले के छोटा हो जाने का मलाल भी होगा। ज़ाहिर है ये दोधारी तलवार है। ध्यान इस बात का भी रखना ज़रूरी है की यहां मांग तीन नए जिलों की है। वित्तीय परिस्थितियों को देखते हुए यदि सरकार एक या दो नए जिले बना भी दे तो शेष की नाराज़गी भी सरकार को झेलनी पड़ सकती है। "
करसोग से मंडी और रामपुर से शिमला बहुत दूर :
मंडी जिले के करसोग और सुंदरनगर क्षेत्र के लोग भी कठिन भौगौलिक परिस्थितियों का तर्क देकर इन दोनों क्षेत्रों को जिला बनाने की मांग कर रहे है। विशेषकर करसोग की जनता का कहना है कि करसोग क्षेत्र जिला हेडक्वार्टर मंडी से कुल 120 किलोमीटर दूर है। छोटे बड़े कार्यों के लिए क्षेत्रवासियों को 120 किलोमीटर का लम्बा सफर तय करना पड़ता है। वहीं सुंदरनगर से मंडी की दूरी तो कम है मगर तर्क है की सुंदरनगर एकमात्र ऐसा स्थान है, जिसे जिला बनाने की सूरत में सरकार पर अधिक आर्थिक बोझ नहीं बढ़ेगा। आज़ादी के बाद हिमाचल प्रदेश की लगभग सभी बड़ी रियासतों को जिलों का दर्जा मिला लेकिन केवल पूर्व की सुकेत रियासत जो वर्तमान में सुंदरनगर के नाम से जानी जाती है, जिला बनने से रह गई थी। ये भी एक कारण है की सुकेत रियासत के लोग इसे जिला बनाने की मांग कर रहे है। इसी तरह जिला शिमला के रोहड़ू व रामपुर को भी जिला बनाने की मांग है। यहाँ महासू के रूप में एक नए जिले की मांग भी हैं ताकि ऊपरी क्षेत्रों को इस नए जिले में शामिल किया जा सकते। रोहड़ू व रामपुर सहित ऊपरी शिमला के कई क्षेत्र जिला मुख्यालय से काफी दूर है। ऐसे में यदि एक नया जिला भी बनता है तो ऊपरी शिमला के लोगों को सहूलियत होगी।
बीबीएन को लेकर भी उठती रही हैं मांग :
एशिया का सबसे बड़ा फार्मा हब और प्रदेश के सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया बद्दी -बरोटीवाला - नालागढ़ यूँ तो जिला सोलन के अधीन आता हैं लेकिन यहाँ का रहन -सहन, बोली -भाषा, खान -पान सबकुछ जिला के अन्य क्षेत्रों से अलग हैं। प्रदेश के राजस्व में सबसे ज्यादा योगदान ये ही क्षेत्र देता हैं। सोलन के पांच में से दो विधानसभा क्षेत्र बीबीएन में आते हैं, दून और नालागढ़। इस क्षेत्र को अलग जिला बनाने की मांग काफी वक्त से उठती रही हैं। हालांकि इस मांग ने कभी आंदोलन का रूप नहीं लिया लेकिन बीच -बीच में इसे लेकर सुगबुगाहट जरूर होती हैं। ऐसे में यदि चुनावी समां में प्रदेश में नए जिलों का जिन्न बाहर निकलता हैं तो बीबीएन में भी ये चुनावी मुद्दा बन सकता हैं।