सवर्ण आयोग गठन: मंज़ूरी से ज्यादा सरकार की मजबूरी

पूरी सरकार को मानो बंधक बनाया गया हो, बाहर जाने वाले एकमात्र रास्ते को बंद कर दिया गया, प्रदर्शनकारी बैरिकेड्स तोड़कर परिसर में घुस गए, गाड़ियों के शीशे तोड़े गए, शंखनाद हुए। सरकारी सम्पति को भी नुकसान पहुँचाया गया। प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार हुई तो वापसी में पुलिस कर्मियों पर पत्थर बरसे। हाथ में भगवा झंडा, गले में केसरी पटका और जुबां पर जय भवानी का नारा लेकर सवर्ण समाज के लोगों ने तपोवन विधानसभा परिसर में जो प्रदर्शन किया, वैसा पहले कभी हिमाचल प्रदेश में नहीं देखा गया था। सवर्ण आयोग के गठन की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों का जैसा हुजूम उमड़ा उसकी आशंका सबको पहले से थी, पर शायद सरकार के तंत्र को इसका अहसास नहीं था, या इसे देखकर भी अनदेखा किया गया। शायद सरकार का ख़ुफ़िया तंत्र विफल हो गया, वरना बैठे बिठाये मुसीबत कौन मोल लेता है ?
विधानसभा सत्र के पहले दिन तपोवन में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि हज़ारों के हुजूम और बेइन्तिहाँ दबाव के बीच सरकार को झुकना पड़ा। इसे सवर्ण समाज के संघर्ष और हौसले की जीत समझ लीजिये या फिर दबाव में आकर जयराम सरकार का ऐलान, प्रदेश में अब सवर्ण आयोग के गठन की घोषणा हो चुकी है। निसंदेह ये घोषणा मंज़ूरी से ज़्यादा सरकार की मजबूरी नज़र आ रही है। जो परिस्तिथि तपोवन में बनाई गई उसके बाद सरकार के पास कोई दूसरा रास्ता निकालने का न तो वक्त था और न गुंजाइश। प्रदर्शन आक्रामक था और स्थिति सरकार और प्रशासन के नियंत्रण से बाहर। सवर्ण समाज में इस घोषणा के बाद ख़ुशी की लहर है, मगर इस पुरे घटनाक्रम को सरकार की एक बड़ी विफलता के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सवर्ण आयोग के गठन की घोषणा करके सरकार ने कुछ गलत किया, मसला ये है कि जिस दबाव में सरकार को ये करना पड़ा उससे सरकार मजबूत से अधिक मजबूर दिखी है।
सैकड़ों चेतावनियों के बावजूद भी सरकार सचेत नहीं हुई और प्रस्तावित प्रदर्शन को कम आँका, नतीजन परिणाम अब सभी के सामने है। देवभूमि क्षत्रिय संगठन और देवभूमि सवर्ण मोर्चा द्वारा सवर्ण आयोग के गठन की ये मुहीम करीब एक साल पहले शुरू की गई थी। प्रदेश में 70 फीसदी आबादी सामान्य वर्ग की है और इस वर्ग का एक बड़ा तबका लम्बे समय से सवर्ण आयोग की मांग कर रहा है। पहली दफे इस तबके की ताकत का अंदाजा सरकार को 20 अप्रैल 2021 को करवाया गया था जब सामान्य संयुक्त मोर्चे ने राज्य सचिवालय का घेराव किया था। करीब तीन घंटे तक छोटा शिमला में चक्का जाम किया गया था, उस दौरान भी प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ काफी कहासुनी और धक्का मुक्की भी हुई थी। मांग थी कि प्रदेश की करीब 70 फीसदी सामान्य वर्ग की आबादी जो नेताओं की कठपुतली बनकर रह गई है उनके हित के लिए जातिगत आरक्षण को खत्म किया जाए। सरकार आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करे।
एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट को समाप्त किया जाए क्यों कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है। बाहरी राज्यों के लोगों को सामान्य वर्ग के कोटे में सरकारी नौकरियों में सेंध लगाने से रोकने के लिए एससी और एसटी की तर्ज पर हिमाचली बोनाफाइड होने की शर्त लगाने की मांग थी। और सबसे बड़ी मांग थी सवर्ण आयोग के गठन की। परन्तु तब भी सरकार ने 3 महीने का समय मांग कर प्रदर्शन बंद करवा दिया था। फिर तीन महीने के इंतज़ार के बाद भी मांग पूरी नहीं हुई और सवर्ण समाज द्वारा उपचुनाव में नोटा दबाने की चेतावनी दी गई। हुक्मरानों ने फिर भी गौर नहीं किया। उपचुनाव में नोटा का ख़ासा प्रभाव देखने को मिला, खासतौर पर अर्की विधानसभा क्षेत्र में, मगर मांग पूरी नहीं हुई। सरकार नज़रअंदाज़ करती रही और आंदोलन तेज़ होता चला गया।
यहाँ जयराम सरकार ने बड़ी चूक कर दी, जरुरत थी एक सशक्त संवाद स्थापित करने की, पर स्थिति का सामना करने के बजाय इसे टालने का ही प्रयास दिखा। उधर आंदोलनकारी तैयार थे,हर जिले के सवर्णों को एक सूत्र में पिरोया गया और प्रदर्शन की तैयार की गई। इसके बाद सवर्ण संगठनों द्वारा जातिगत आरक्षण, एट्रोसिटी एससी-एसटी एक्ट और अन्य सवर्ण समाज विरोधी नीतियों की शवयात्रा निकाली गई। 800 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा की गई। ये पदयात्रा 10 दिसंबर को धर्मशाला में खत्म होनी थी और यात्रा के खत्म होने पर जो हुआ वो सभी के सामने है। अनगिनत चेतावनियों को अनसुना करने का जो परिणाम निकला, उससे सरकार की खूब फजीहत हुई। बेहतर होता कि सरकार इस मामले की गंभीरता और लगातार बढ़ते जन समर्थन को भांपते हुए समय रहते बंद कमरे में इसका हल निकालती। मगर एक बार फिर जयराम सरकार चूक गई।
रूपरेखा अभी स्पष्ट नहीं
सरकार ने स्वर्ण आयोग के गठन को अनुमति ज़रूर दी है मगर अभी तक इसकी रूपरेखा स्पष्ट नहीं हो सकी है। यह साफ नहीं है कि सरकार आयोग का अलग से चेयरमैन नियुक्त करेगी या मुख्यमंत्री को ही इसका अध्यक्ष बनाया जाएगा। साथ ही इसके क्षेत्राधिकार और काम की भी व्याख्या होनी बाकी है। अलबत्ता आयोग के गठन को सरकार की हरी झंडी मिली हो लेकिन सवर्ण समाज की कई अन्य मांगे भी है जिन्हें लेकर आगामी वक्त में टकराव देखने को मिल सकता है।