चीन में 1 घंटे तक चली मोदी-जिनपिंग द्विपक्षीय बैठक, पूरी दुनिया की नज़र इस पर

पीएम नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होने चीन के तिआनजिन पहुँचें हैं। इस SCO शिखर सम्मेलन से पहले ही आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई और यह लगभग 1 घंटे चली। प्रधानमंत्री मोदी शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन में रहेंगें। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी का यह चीन यात्रा 7 साल बाद हो रहा है। साथ ही मोदी की शी जिनपिंग से पिछली मुलाकात ब्रिक्स 2024 सम्मेलन रूस (कजान) में हुई थी। 2020 की गलवान झड़प के बाद पहली बार दोनों देशों ने सीमा और व्यापार से जुड़े मामलों पर सहमति बनाई है। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि आर्थिक दबाव और वैश्विक हालात ने दोनों को साथ आने पर मजबूर किया है। इस बैठक में मोदी ने सीमा पर शांति और स्थिरता, आपसी सहयोग और संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी अपनी 4 दिवसीय यात्रा पर चीन पहुँचे हैं। पुतिन सर्वप्रथम चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच तिआनजिन में चल रही बातचीत अब ख़त्म हो गई है। इस मुलाकात में शी जिनपिंग ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से दोबारा मिलकर बहुत खुशी हुई। आपको बता दें कि इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के साथ NSA अजीत डोभाल, विदेश सचिव विक्रम मिस्री, चीन में भारत के राजदूत प्रदीप रावत, जॉइंट सेक्रेटरी (ईस्ट एशिया) गौरांग लाल दास और पीएमओ से अतिरिक्त सचिव दीपक मित्तल उपस्थित थे। वहीं, शी जिनपिंग के साथ विदेश मंत्री वांग यी, प्रधानमंत्री ली कियांग, डायरेक्टर जनरल ऑफिस कैई ची और भारत में चीन के राजदूत शू फेहोंग भी उपस्थित रहे।
शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक में पीएम मोदी ने कहा
इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि "सीमा प्रबंधन को लेकर हमारे विशेष प्रतिनिधियों के बीच समझौता हो गया है। कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू की गई है। दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें भी बहाल हो रही हैं। हमारे सहयोग से दोनों देशों के 2.8 अरब लोगों के हित जुड़े हैं। इससे पूरी मानवता के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होगा। हम आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
जिनपिंग ने कहा -ड्रैगन और हाथी साथ आने की जरूरत
शी जिनपिंग ने कहा, "इस साल चीन-भारत राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ है। उन्होंने कहा कि, 'दुनिया परिवर्तन की ओर बढ़ रही है। चीन और भारत दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं हैं। हम दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले दो देश हैं और ग्लोबल साउथ का हिस्सा भी हैं। ऐसे में हमारा मित्र होना, अच्छे पड़ोसी बनना और ड्रैगन व हाथी का एक साथ आना बेहद जरूरी है।' दोनों देशों के लिए यह जरुरी है कि हम अच्छे पड़ोसी बनें, साझेदार बनें जो एक-दूसरे की सफलता में मददगार हों और ड्रैगन और हाथी एक साथ आएं।
इन मुद्दों पर सहमति
5 साल बाद भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें शुरू हुई हैं। भारत-चीन के बीच सीमा प्रबंधन पर सहमति बनी है। चीन ने भारत को रेयर अर्थ मिनरल्स बेचने तथा खाद-मशीनरी सप्लाई करने का आश्वाशन दिया है। साथ ही नाथु ला दर्रे से बॉर्डर ट्रेड फिर से शुरू करने के लिए भी चर्चा हुई। चीन ने भारत के श्रद्धालुओं को कैलाश मानसरोवर जाने की स्वीकृति दे दी है। पत्रकारों और पर्यटकों के लिए वीजा नियम को भी पहले से आसान किए गए हैं। SCO और BRICS संगठनों में भारत और चीन दोनों देश मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर का समर्थन दे रहे हैं।
चीन के साथ द्विपक्षीय बैठक खास क्यों
लेकिन मोदी-शी की इस मुलाकात को खास मानी जा रही है और वह इसलिए क्योंकि गलवान में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद मोदी का यह पहला चीन यात्रा है। साथ ही हाल के दिनों में ट्रंप का भारत पर 50 % टैरिफ लगाने की वजह से अमेरिका और भारत के रिश्तों में तनाव आया है और इस समस्या से निपटने के लिए नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं। भारत और चीन दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें शुरू हुईं, बॉर्डर ट्रेड पर बातचीत हुई और साथ ही कैलाश मानसरोवर यात्रा भी शुरू हुई।
पूरी दुनिया कि नज़र इस समिट पर
आपको बता दें कि गलवान में हुई झड़प के बाद मोदी का यह पहला चीन यात्रा है। ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, प्रधान मंत्री मोदी की यह यात्रा भारत और चीन के बीच तनाव को कम करने और द्विपक्षीय बातचीत को बढ़ावा देने के लिए बड़ा अवसर साबित हो सकता है। ट्रम्प ने SCO देशों पर बहुत ज्यादा टैरिफ लगाया है और ऐसे संकट के समय में यह उन देशों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है जो ट्रम्प के इस टैरिफ दबाव के खिलाफ एक साथ साझा मंच पर खड़े होने में जुटे हैं। इस समिट के जरिये ये SCO देश अमेरिका के नेतृत्व वाले ग्लोबल ऑर्डर का विकल्प के रूप में ऑप्शनल पावर बनने की कोशिश है। इस बार के समिट में केवल SCO सदस्य ही नहीं, बल्कि ऑब्जर्वर और पार्टनर देशों सहित 20 से ज्यादा देशों के नेता शामिल हो रहे हैं। इस सम्मलेन के जरिये यह भी संदेश देने की कोशिश होगी की जाएगी कि जो अमेरिकी की कोशिशें हैं-चीन, रूस, ईरान और अब भारत को अलग-थलग करने की, वो व्यर्थ रही हैं।