ठियोग या शिमला शहर, आखिर कहाँ टिकी है राठौर की नजर | Shimla News

इशारों इशारों में एलान हो चूका है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर 2022 विधानसभा चुनाव के समर में उतरने को तैयार है। राठौर अपनी सियासी जमीन तलाशने में जुटे है और दो निर्वाचन हलकों में उनके चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है, पहला ठियोग और दूसरा शिमला शहरी सीट। विरोधी कभी मजबूर कहकर जिन कुलदीप राठौर का उपहास उड़ाते थे वो अब बेहद मजबूत दिख रहे है। चुनाव लड़ने के सवाल पर कुलदीप कहते है कि जिस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई थी वहां से ही चुनाव लड़ेंगे। अब दिलचस्प बात ये है कि 2017 में ठियोग और शिमला शहर, दोनों जगह कांग्रेस की जमानत जब्त हुई थी। ठियोग से कांग्रेस प्रत्याशी दीपक राठौर, तो शिमला शहर से हरभजन सिंह भज्जी की जमानत जब्त हुई थी। यानी राठौर ने दोनों विकल्प खुले रखे है। ठियोग विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस की कद्दावर नेता विद्या स्टोक्स का चुनावी क्षेत्र रहा है। पर पिछले चुनाव में पार्टी आलाकमान ने यहाँ से मैडम स्टोक्स का टिकट काटकर दीपक राठौर को उम्मीदवार बनाया था। कहते है राठौर पार्टी आलकमान के नजदीकी है जिसके बुते ही उन्हें टिकट मिला था। तब दीपक राठौर टिकट तो ले आये पर जीत नहीं सके। ख़ास बात ये है की उस चुनाव में राठौर की जमानत जब्त हुई थी। ठियोग की जनता ने कम्युनिस्ट राकेश सिंघा को अपना विधायक चुना था। हालांकि राठौर पिछले चुनाव हारने के बाद से ही क्षेत्र में सक्रिय जरूर है। पर यदि कुलदीप सिंह राठौर ठियोग से चुनाव लड़ने का मन बनाते है तो दीपक राठौर को दूसरा मौका मिलना मुश्किल होगा। पर यहाँ कुलदीप राठौर को ये भी जहन में रखना होगा कि यदि माकपा विधायक राकेश सिंघा फिर से मैदान में उतरते है तो मुकाबला आसान नहीं होने वाला। जानकार मान कर चल रहे है कि सिंघा के अगले कदम पर ही कुलदीप की चुनावी चाल निर्भर करेगी। शिमला शहर की बात करें यहां पिछले चुनाव में पार्टी ने हरीश जनारथा की दावेदारी को नकार हरभजन सिंह भज्जी को टिकट दिया था। नतीजन पार्टी के एक गुट में नाराजगी थी और भज्जी की जमानत भी नहीं बच सकी। अब भी शिमला शहर में कांग्रेस कई गुटों में बंटी है और ये अंतर्कलह शिमला शहर में पार्टी का पुराना मर्ज रहा है। शिमला शहर में बीते कई चुनाव में कांग्रेस के अपने ही बतौर बागी पार्टी प्रत्याशी का खेल बिगाड़ते आ आ रहे है। ऐसे में राठौर के लिए भी शिमला शहर आसान सीट नहीं रहने वाली। हाँ टिकट के लिए उनका दावा जरूर मजबूत रहेगा क्यों की बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनके योगदान के बुते उनका सियासी कद निसंदेह बढ़ा है।
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