दो इस्तीफे, प्रेशर पॉलिटिक्स और बदलाव की आहट

वो दो नेता जो निष्ठावान सिपाही बने, पार्टी का झंडा तो बुलंद करते रहे मगर उनके मुताबिक़ बीते कुछ समय में उन्हें न तो मान मिला, न सम्मान। नौबत यहां तक आ गई कि दोनों को अपने पदों से इस्तीफे देने पड़े। हम बात कर रहे है भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष कृपाल परमार व पूर्व कार्यसमिति सदस्य पवन गुप्ता की। गुप्ता को डॉ राजीव बिंदल का करीबी माना जाता है और वे हालहीं में अनियमितताओ के चलते सुर्ख़ियों में आएं बघाट अर्बन कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन भी रहे है। इन दो नेताओं के इस्तीफों ने कहीं न कहीं ये साफ़ कर दिया कि भाजपा में कुछ ठीक नहीं चल रहा। हालांकि इनके इस्तीफे स्वीकार नहीं हुए और बाद में कृपाल परमार ने तो इस्तीफा वापस भी लिया और 26 नवंबर को कार्यसमिति की बैठक में शामिल भी हुए। दरअसल 2017 विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से पश्चात ही कई भाजपाइयों के दिन फिर गए थे, तो कई हाशिये पर चले गए। अब तक तो ये नेता चुप्पी साधे हुए थे, मगर अब 2022 के नजदीक आते आते सब्र का बाँध टूटने लगा है, ये इन इस्तीफों से साफ़ दिखाई दे रहा है। इन दोनों नेताओं के इस्तीफों का कारण भी कुछ एक सा ही है। दोनों ने ही नज़रअंदाज़ किये जाने की बात कही। वहीं व्यापक तौर पर देखा जाएँ तो इन इस्तीफों के पीछे उपेक्षा तो बड़ा कारण माना जा रहा है, इसे प्रेशर पॉलिटिक्स के पैंतरे के तौर पर भी देखा जा रहा है। दरअसल उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद जयराम सरकार और प्रदेश संगठन के खिलाफ विरोधियों को हमलावर होने का मौका मिला है। प्रेशर पॉलिटिक्स की बिसात पर स्पष्ट सन्देश दिया गया है कि एक वर्ग को उपेक्षित रखकर मिशन रिपीट का स्वपन साकार नहीं हो सकता। इस्तीफे के कारणों पर फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने इन दोनों से बातचीत की। कृपाल परमार के अनुसार उन्हें प्रायोजित तरीके से प्रताड़ित करवाया गया। तो पवन गुप्ता के अनुसार अफसरशाही सरकार पर हावी है और भ्रष्टचारियों को पनाह दे रही है। पेश है बातचीत के कुछ मुख्य अंश....
मैं प्रताड़ित होता रहा और मूकदर्शक बनें रहे संगठन और सरकार के मुखिया : परमार
सवाल : इतने लम्बे समय से पार्टी के निष्ठावान सिपाही आप रहे है, अब अचानक ये इस्तीफा क्यों ?
जवाब : पार्टी का निष्ठावान सिपाही होने के बावजूद लगातार मुझे प्रताड़ित किया जा रहा था, संगठन द्वारा भी और सरकार द्वारा भी। मैंने अपनी भावनाओं को, अपनी बात को पार्टी के हर स्तर पर रखने की कोशिश की, पर उसका कोई समाधान नहीं निकला। छोटे- मोटे कार्यकर्ताओं द्वारा भी विभिन्न तरीकों से मुझे प्रताड़ित करवाया गया। मैंने चीज़ें ठीक करने की बहुत कोशिश की, अंत तक चुप चाप सहता रहा पर जब चीज़ें नियंत्रण से बाहर हो गई तो मुझे ये इस्तीफ़ा देना पड़ा।
सवाल : आप कह रहे है कि आपकी प्रताड़ना हुई, आपको ज़लील किया गया, ऐसे क्या वाक्य हुए जो आज आपको ये कहना पड़ रहा है ?
जवाब : पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा बहुत सुनियोजित तरीके से बनाई गई रणनीति के तहत कुछ लोगों को हमारे पीछे लगा दिया गया। ऐसे लोग मेरे फेसबुक पर गलत और अभद्र कमैंट्स करते थे। मेरे साथ बुरा बर्ताव करते थे। मैंने कई बार पार्टी से उनकी शिकायत की लेकिन पार्टी खुद ही उन्हें प्रोटेक्ट करती रही। उनके खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर उन लोगों को पार्टी में प्रमोशन दिए गए।
सवाल : हाल ही में हुए उपचुनाव में जिस तरह से आपका टिकट काटा गया या उसके अलावा जो भी आपके साथ हुआ इसका ज़िम्मेदार आप किसे मानते है ? क्या कोई व्यक्ति विशेष इसका ज़िम्मेदार है ?
जवाब : मैं पिछले 35 सालों से पार्टी के लिए काम कर रहा हूँ। 1982 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से मैं जुड़ा रहा हूँ। इसके बाद भाजपा युवा मोर्चा में मैने अपनी सेवाएं दी है और पिछले 22 -23 साल से में प्रदेश भाजपा का पदाधिकारी हूँ। 3 बार मैं प्रदेश का महामंत्री रहा हूँ और अभी प्रदेश का उपाध्यक्ष था। किसान मोर्चा का भी मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुका हूँ। राज्यसभा का सांसद भी मैं रह चूका हूँ। पार्टी का ऐसा कोई कार्य नहीं है जो मैंने नहीं किया परन्तु फिर भी मेरी अनदेखी हुई। इस सब के पीछे कई लोगों की मिली भगत है, ये सिर्फ किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है।
सवाल : आपने ऐसे वक्त पर इस्तीफ़ा दिया जब प्रदेश में कार्यसमिति की बैठक होने वाली थी। ऐसा क्यों ?
जवाब : 2017 में मैंने फतेहपुर से चुनाव लड़ा। कुछ लोग नहीं चाहते थे की मैं ये चुनाव लड़ूँ। कहीं न कहीं मैं उन लोगों के लिए बड़ी समस्या बना हुआ था। हमारी रैलियों को जान बुझ कर खराब करने की कोशिश की गई। फिर एक कार्यकर्त्ता द्वारा हमें ज़लील करवाया गया, एक मंत्री ने हमारी प्रताड़ना की। ये सभी चीज़ें हमने सरकार और संगठन के सामने रखी, परन्तु फिर भी सरकार का मुखिया और संगठन का मुखिया मूकदर्शक बन कर देखते रहे। मेरे इस्तीफे की टाइमिंग प्लैन्ड नहीं थी, जब स्थिति बर्दाश्त के बाहर हो गई तो हमें इस्तीफ़ा देना पड़ा।
सवाल : आपको पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल का करीबी माना जाता है, आपके अलावा एक अन्य कार्यसमिति के सदस्य ने भी इस्तीफ़ा दिया है। भाजपा में ये इस्तीफ़ा पॉलिटिक्स क्या किसी पोलिटिकल स्ट्रेटेजी के तहत शुरू हुई है ?
जवाब : देखिये मैंने धूमल जी के साथ भी काम किया है और शांता जी के साथ भी। मैंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जगत प्रकाश नड्डा जी के साथ की है और केंद्र में मैंने नरेंद्र मोदी जी के साथ भी काम किया है। मैं काम करने वाला कार्यकर्ता हूँ, मैं सभी का करीबी हूँ किसी एक का नहीं। ये इस्तीफ़ा मेरा व्यक्तिगत इस्तीफ़ा है, इससे किसी और का कोई भी लेना देना नहीं है।
भ्रष्टाचारियों को पनाह दे रही अफसरशाही : पवन गुप्ता
सवाल - आपने हाल ही में पद से इस्तीफा दिया, क्या कारण रहे?
जवाब - मैं चालीस सालों से भारतीय जनता पार्टी का सच्चा सिपाही रहा हूँ। पार्टी की नींव मजबूत करने के लिए मैंने जितना हो सकता था उतना प्रयास किया। मैं नगर परिषद सोलन में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर भी रह चुका हूँ और इसके अलावा 15 साल तक बघाट अर्बन कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन पद पर भी रह चुका हूँ। मैं भाजपा कार्यकारी समिति का सदस्य व जिला सिरमौर का प्रभारी भी था। किन्तु बीते छह माह से यह महसूस हो रहा था कि जो अफसरशाही है वो सरकार पर हावी हो गयी है। मैं पुनः ध्यान में लाना चाहता हूँ कि हमने कुछ भ्रष्टचारियों के चेहरे बेनकाब करने के लिए जाँच करवा के जाँच रिपोर्ट सबमिट कर दी और उनको ससपेंड भी कर दिया था, लेकिन तीन दिन के अंदर उन्हें किसी वजह से रिवॉक किया गया। खैर, हम इस मामले को हाई कोर्ट ले गए, हाई कोर्ट में मामला लंबित है और यह छठीं मर्तबा है जब हमें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। यदि सरकार मदद करती तो आज हमे कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती। इसके अलावा मैं बताना चाहूंगा कि सीएमओ ऑफिस में भी एक उच्च अधिकारी है जिसने दोषियों को बचाने का पूरा प्रयास किया है। मुझे दुखी मन से यह कहना पड़ रहा है कि जिस मामले को हमने सरकार व संगठन के सामने उजागर किया हमे वहाँ से भी कोई सहयोग नहीं मिला। अफसरशाही हावी हुई और मेरा बैंक चुनाव के नामकंन को भी रद्द कर दिया गया। मुझे हर सम्भव नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा था। यही कारण है कि इस प्रताड़ना को मैं सहन नहीं कर पाया और अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
सवाल- क्या आपके कहने का यह तात्पर्य है कि सरकार दोषियों को पनाह दे रही है ?
जवाब - दोषियों को अफसरशाही पनाह दे रही है। बस यह बात सही है कि संगठन व सरकार को हर बात मालूम है, इसके बाद भी आज कोई कार्यवाही सही तरीके से अमल में नहीं लायी गयी। इतनी बार बैंक से जुड़े इस मामले को उठाने के बाद भी कोई सहायता नहीं की गयी और दोषी व अफसरशाही अपने गलत मंसूबे पर कामयाब हुए। लेकिन मामला हाई कोर्ट में है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि बैंक के हित में ही फैंसला आएगा।
सवाल- आप अफसरशाहों पर आरोप लगा रहें है। क्या आपको लगता है कि सरकार की अफसरों पर पकड़ नहीं है ?
जवाब - मैं आज खुद को बहुत असहाय महसूस कर रहा हूँ। जब करप्शन बढ़ता है तो उसके जड़ें भी कई जगह तक जाती है और उसके सामने जो लोग ईमानदार होते है वो बोने हो जाते है, मैं इतना ही कहना चाहूंगा।
सवाल - आप डॉ राजीव बिंदल को अपना गुरु मानते है, इस्तीफे से पहले क्या आपने उनसे मशवरा लिया था ?
जवाब- डॉ बिंदल मेरे सहपाठी है और मेरे गुरु भी। डॉ बिंदल हर छोटे बड़े कार्यकर्ता से सीधा संवाद करते है। वो कद्दावर नेता है और वो प्रदेश स्तर के नेता है। मुझे लगता है कि मुझ जैसे छोटे से कार्यकर्ता को अपनी हर छोटी बड़ी बात उनसे साँझा करना पड़े, यह शोभा नहीं देता और यह जो इस्तीफे का कारण है यह मेरे दिल को लगी ठेस का नतीजा है। इसलिए इस मामले में मैंने अपनी गरिमा की लड़ाई खुद लड़ना उचित समझा। मुझे पद की लालसा नहीं है, मैं भाजपा का सच्चा सिपाही हूँ और पार्टी को मजबूत करने के लिए हमेशा आगे रहूँगा।