जवाली : जातीवाद की उपज आरक्षण -राजीव अम्बिया
![Reservation a product of casteism - Rajiv Ambia](https://firstverdict.com/resource/images/news/image19242.jpg)
राजेश कतनौरिय। जवाली
आरक्षण जाती के नाम पर या जाती के नाम पर आरक्षण की मांग देश को कई बार झकझाेरती आई है। भारत में मानव श्रेणी को जतियों एवं उपजातियों मे बांटने वाले पूर्वज भी इस बात के दोषी हैं की ईश्वर ने तो समस्त प्राणियों मे से एक मानव प्रजाति भी बनाई है, लेकिन मानव ने स्वयं ही इसे जतियों में बांट दिया। प्राचीन काल से ही भारतीय स्भ्यता में जातिवाद हावी रहा। कुछ जातियां अपने आप को ऊंचा दिखने की होड़ लगी रही, तो कुछ अपने को निम्न श्रेणी से ऊंचा दिखाने की होड में लग गई, जिस तरफ पलड़ा भारी दिखा, राजनीती भी उसी दिशा में चलती गई। जाती सत्ता हथियाने का हथियार बन गई। पंचायत से लेकर सांसद तक के चुनाब जातिवाद हावी रहता है, आज जिस आरक्षण को लेकर देश के कई राज्यों मे हिंसा, तनाव, उपद्रव व आगजनी से देश की करोड़ाें कि संपत्ति नष्ट हो जाती है। इसका कारण देश में जातिवाद ही है। हिंदू धर्म में अगर एक ही जाती होती `हिंदू` तो देश में आरक्षण जैसे मुद्दाें का कोई महत्व न होता। जतियों के नाम पर देश बंटता नहीं। आज देश में ऐसे कानून की जरूरत है कि अपने नाम के आगे कोई भी जातिसूचक शब्द न लगाया जाए।
इस पर देश के समस्त वर्गों को सहमत होना पड़ेगा, तभी देश आंतरिक कलह से सुरक्षित रह सकता है। मात्र गरीब पहचाना जाए कोई अनुसूचित जाती, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, समान्य वर्ग नहीं रहेगा। एक वर्ग होगा और वो होगा मानव वर्ग। भारत के संविधान के अनुछेद-14 के अनुसार `कानून के समक्ष समानता` के अधिकार का उस समय उलंघन हो जाता है, जब सरकार खुद जाती आधारित कल्याण बोर्ड बना कर जातीय वयवस्था को बढ़ावा दे देती है। अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण बोर्ड, व्रहांण्ण कल्याण बोर्ड कबीर पंथी कल्याण बोर्ड, वाल्मीकि कल्याण बोर्ड, गद्दी गुज़र कल्याण बोर्ड, धीमान कल्याण बोर्ड आधी। भविष्य में खत्री कल्याण बोर्ड, घृत कल्याण बोर्ड, जात कल्याण बोर्ड आदि कि मांग शुरू हो जाएगी और फिर सबका कल्याण हो जाएगा व कल्याण करने के लिए फिर सरकार के पास कुछ भी नहीं बचेगा।ऐसे बोर्ड जो जाती विशेष समूह को महत्व देने से राष्ट्रिय एकता को खतरा उत्पन्न हो सकता है। कल्याण जाती विशेष या वर्ग विशेष का न होकर समस्त मानव वर्ग का होना चाहिए। कोई भी मानव गरीब हो सकता है, समाज को सरकार को उसके कल्याण के वारे में सोचना चाहिए।
सरकारी स्तर पर जाती विशेष पर आधारित महापुरुषों के नाम कि शुटियाँ समाप्त की जानी चाहिए महापुरुषों का इतिहास भले ही किताबों में पड़ाया जाए, उनके आदेशाें का पालन किया, लेकिन सरकारी अवकाश जाती विशेष के महत्व को दर्शाने के लिए हो, यह सरकारी स्तर पर बंद होना चाहिए वैसे भी जो महापुरुष होता है, वो समस्त भारत का होता है न कि किसी एक विशेष जाती समुदाए का नहीं। कई बार देखा जाता आई कि वर्ग विशेष किसी महापुरुष पर अधिकार तो रखता है, लेकिन उनके आदर्शों उनकी शिक्षाओं का अनुसरण नहीं करता, बल्कि अन्य समुदाय उस महापुरुष कि शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाते हैं। महापुरुषों के नाम पर सरकारी अवकाश नहीं बल्कि सरकारी कम होने चाहिए। आज देश के लोगों के साथ- साथ सरकारों को भी जाती वायस्था के कारण मानवता एवं देश को हो रहे नुकसान पर चिंतन करने की आवश्यकता है। देश की सभी नागरिकों को जातिविहीन समाज के पक्ष मे अपनी समति देनी चाहिए, तभी धर्म के साथ-साथ आने वाली पीड़ियों की सुरक्षा की कल्पना की जा सकती है।