एक पायलट के प्रधानमंत्री बनने की कहानी

राजीव गाँधी (20 अगस्त 1944 - 21 मई 1991)
भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के जीवन की कहानी किसी हिंदी नाटकीय फिल्म से कम नहीं रही। वैसे तो सत्य यह भी है कि राजनैतिक दुनिया किसी नाटक से कम नहीं। राजनीति में आने से पहले राजीव गाँधी इंडियन एयरलाइन्स में बतौर पायलट तैनात थे। राजीव की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। पर पारिवारिक हालत और परिस्तिथि ऐसे बने कि राजीव कि न सिर्फ राजनीति में एंट्री हुई बल्कि वे देश के प्रधानमंत्री भी बन गए।
दरअसल , इंदिरा गाँधी की राजनैतिक विरासत उनके छोटे पुत्र संजय गाँधी संभाल रहे थे। इंदिरा के बाद वे ही नंबर दो थे और ये तय था कि वे ही इंदिरा की राजनैतिक विरासत को संभालेंगे। पर पहले एक हादसे में संजय गाँधी का निधन हुआ और फिर 1984 में इंदिरा की हत्या कर दी गई। इंदिरा की हत्या के बाद सभी निगाहें राजीव गाँधी पर टिक गई। आखिरकार, हालात के चलते वे रातो-रात विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बन गए। विरासत में मिला कार्यकाल पूरा कर एक साल बाद फिर से चुनाव लड़ कर राजीव प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बने।
राजीव का राजनैतिक कार्यकाल ....
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री, राजीव पढ़े लिखे और सुलझे विचारों के थे, व जिस 21वीं सदी में हम रहते हैं, इसका सपना राजीव ने ही संजोया था। जानते है बतौर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा लिए गए उन तीन बड़े फैसलों के बारे में जिन्होंने हिंदुस्तान को एक नई दिशा दी।
- राजीव भारत में कंप्यूटर क्रान्ति लेकर आये जिसके चलते, भारत में विकास की गति बढ़ी व लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी आसान हुई। हालाँकि शुरूआती दौर में विपक्ष ने उनके इस निर्णय का जमकर विरोध किया, पर आगे चलकर पूरा हिंदुस्तान उन्ही के बताये रास्ते पर चला। आज की सरकारें भी डिजिटल इंडिया का नारा देती है जिसका आगाज़ बतौर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने किया था। अगर राजीव नहीं होते तो भी कंप्यूटर क्रान्ति आती लेकिन शायद कुछ देर से।
- देश में मतदान करनी की वेध आयु 21 वर्ष हुआ करती थी जिसे राजीव गाँधी ने घटाकर 18 वर्ष किया।
- वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था भी राजीव गाँधी की सोच का ही नतीजा है। राजीव चाहते थे कि लोकतंत्र कि मजबूती के लिए सबसे निचले स्तर यानी पंचायत स्तर पर भी चुनाव हो। आगे चलकर पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उनकी सोच को अमलीजामा पहनाया गया।
दो बार प्रधानमंत्री रहे राजीव गाँधी 1989 में कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद सत्ता से बाहर हुए। साल था 1991 का और दिन था 21 मई, राजीव गाँधी चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली में पहुंचे थे। मगर मंच पर पहुंचने से पहले ही उन्हें एक सुसाइड बॉम्बर ने मार दिया। खबरों के मुताबिक राजीव गांधी के पास एक महिला उन्हें फूलों का हार पहनाने के लिए आती है और महिला जैसे ही राजीव गांधी के पांव छूने के लिए नीचे झुकती है, तभी वो अपनी कमर पर बांधे हुए विस्फोट से धमाका कर देती है। एक जानकारी के मुताबिक वहां मौजूद सिक्योरिटी वालों ने उस महिला को रोकने की कोशिश की थी लेकिन खुद राजीव गांधी इस महिला को उनके पास आने की इजाज़त दी थी।
जांच में पता चला कि राजीव गांधी के कत्ल के पीछे लिट्टे ( LTTE ) का हाथ था, जो तमिल मिलीटेंट ग्रुप था। यह संगठन इतना ताकतवर था कि श्रीलंकाई सरकार इसके सामने बेबस थी। कहते है श्रीलंका से एक शांति समझौता करने से पहले राजीव गांधी ने भी LTTE के प्रमुख से बात की थी। इसी बीच राजीव गांधी को LTTE के खिलाफ कुछ एक्शन लेने पड़े, जिसकी वजह से LTTE ने इस घटना को अंजाम दिया।
भारतीय राजनीति की सबसे खूबसूरत लव स्टोरी के नायक थे राजीव
राजीव गाँधी की प्रेम कहानी एक खूबसूरत कल्पना की तरह शुरू हुई और एक दुखद मोड़ पर इसका अंत हुआ। राजीव जब इंग्लैंड में थे तो इटली की रहने वाली युवती, सोनिया मैनो को पहली नज़र में दिल दे बैठे। सोनिया, राजीव के ही कॉलेज में पढ़ती थी व राजीव ने उन्हें पहली बार कॉलेज की कैंटीन में देखा था। दोनों की जल्द ही दोस्ती हुई और दोस्ती एक खूबसूरत सपने की तरह प्यार में बदल गई। दोनो एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुन चुके थे व जल्द ही अपने परिवारों को भी इसके बारे में बता दिया। कहते है कि मां इंदिरा चाहती थी कि राजीव की शादी बॉलीवुड के शोमैन राज कपूर की बेटी से हो। पर राजीव तो अपना दिल सोनिया को दे बैठे थे। राजीव के कहने पर इंदिरा, सोनिया से मिली व दोनों के फैसले का खुले मन से स्वागत किया। दोनों की शादी 1968 में हुई।
राजीव से हुई इस पहली मुलाक़ात के बारे में सोनिया ने उनकी मृत्यु के बाद लिखे एक पत्र में कहा था " मैं भूल जाना चाहती हूँ उनका आखिरी चेहरा, और रेस्टोरेंट में हुई वो पहली मुलाक़ात, वो मुस्कान याद रखना चाहती हूँ।"