सरकार में जवाबदेही की संस्कृति नहीं, सवाल करें तो डराने की रिवायत: राणा

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भी केंद्र व प्रदेश सरकार 'आल इज वैल' तो कहती आ रही है, लेकिन धरातल पर हालात किसी से छिपे नहीं हैं। बेहतर होता कि अपनी पीठ थपथपाने की बजाय समय रहते सरकार महामारी से निपटने के प्रबंध करती। जारी प्रेस विज्ञप्ति में विधायक राजेंद्र राणा ने कहा कि तीसरे चरण की वैक्सीनेशन में ही केंद्र ने पल्ला झाड़ चुकी है जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं, तो इस मामले में प्रदेश सरकार भी बैकफुट पर है। प्रदेश में ही 18 से 44 आयु वर्ग के 30 लाख से ऊपर के लोगों की वैक्सीनेशन पेंडिंग है। केंद्र ने तीसरे चरण की जिम्मेवारी प्रदेश सरकार पर थोपी है और प्रदेश सरकार के प्रयास कागजों तक सीमित है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार पहले ही तंगहाली में है, महामारी से निपटने की नीतियां पहले ही उलझी हुई हैं। प्रदेश की माली हालत खराब हो चुकी है। प्रदेश का लगभग हर वर्ग सरकार से हताश है। प्रदेश की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता मांगे न मानने से काले बिल्ले लगाकर काम रही है, जिनकी अन्य मांगें तो दूर, कोरोना वारियर्स भी सरकार घोषित नहीं कर पा रही है। बागबान कार्टन की कीमतों को लेकर उग्र हैं और निजी ऑपरेटर व उनके प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लाखों लोग सड़कों पर आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार पहले ही अपने दायित्वों को निभाने में पिछड़ी हुई है, उस पर इस महामारी से निपटने की कभी आशा भी नहीं की जा सकती। केंद्र सरकार में प्रदेश से केंद्रीय राज्य मंत्री व भाजपा संगठन में शीर्ष पर बैठे नेताओं को तो हिमाचल का मर्म समझना चाहिए था। उन्होंने कहा कि अभी भी देर नहीं हुई है और जनता के जज्बातों को समझते हुए सरकार इस महामारी से निपटने के बेहतर प्रबंध करते हुए हर वर्ग के बारे में सोचे।
चरमराया स्वास्थ्य ढांचा, सरकार फेल
राजेंद्र राणा ने कहा कि इस समय स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना चाहिए था, लेकिन सरकार का विजन ही कमजोर व आधारहीन बन गया है। हिमाचल के 3 प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में सीटी स्कैन और एमआरआई की सुविधा नहीं है। हमीरपुर में 8 महीनों से मशीन खराब पड़ी है, जबकि चंबा में मशीन की खरीद बजट के फेर में फंसी हुई है, जिसके लिए 10 करोड़ रुपए एन.जे.पी.सी. ने दिया हुआ है तथा 5 करोड़ रुपए और देने को तैयार है। केवल 5 करोड़ रुपए सरकार से चाहिए और आर्डर प्लेस हो जाएगा। बाकायदा इसके लिए 3 माह पहले टेंडर भी हो चुका है, फिर भी विडंबना यह है कि सरकार की लापरवाही जारी है और कोई भी फैसला में असमर्थ रही है। उन्होंने कहा कि टांडा मैडीकल कालेज में भी मशीन 7 महीनों से खराब है, लेकिन नई मशीन की खरीद पर सरकार अंतिम फैसला तक नहीं ले पा रही है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि पिछले सप्ताह होने वाली बैठक में अंतिम फैसला लिया जाएगा मगर हुआ नहीं।
अस्थाई अस्पताल बनाने की बजाए होटलों का भला करती सरकार
राणा का कहना है कि सरकार ने तिरपाल से तैयार होने वाले 200 बिस्तर वाले अस्थायी मेक शिफ्ट अस्पताल जिला मंडी, कांगड़ा व सोलन में बनाए हैं, ताकि ज्यादा मरीज होने पर उन्हें उपचार के लिए यहां शिफ्ट किया जाए। यहां प्रति बिस्तर प्रतिदिन का किराया लगभग 1950 रुपए है। ऐसे समय में जब होटल जगत पूरी तरह तबाह हो चुका है, करोड़ों रूपए खर्च कर ऐसे अस्थाई अस्पताल बनाने की बजाए निजी होटलों को इस काम के लिए हायर करना चाहिए था, होटल उद्योग बर्बाद होने से उबरते और होटलों के जरिए आजीविका कमा रहे लाखों परिवारों का भी भला होता।