रिपीट कर गए गहलोत... तो दिल्ली में भी 'मोदी बनाम गहलोत' !
**कांग्रेस रच गई इतिहास तो गहलोत को जाएगा क्रेडिट
रियासतों के प्रदेश राजस्थान पर इस वक्त तमाम सियासी निगाहें टिकी है। विधानसभा चुनाव तो पांच राज्यों में है लेकिन जो महासंग्राम राजस्थान में छिड़ा, वैसा कहीं और नहीं दिखा। यूँ तो हर जगह भाजपा ने पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा है लेकिन जितनी जनसभाएं और रैलियां उन्होंने राजस्थान में की, उतनी कहीं और नहीं। संभवतः किसी भी प्रधानमंत्री ने किसी राज्य के चुनाव में इससे पहले इतनी ताकत न झोंकी हो। इसका कारण भी था, राजस्थान में ये तीस साल बाद पहला ऐसा चुनाव है जहाँ कोई माहिर दावे के साथ सत्ता पक्ष की वापसी की सम्भावना को ख़ारिज नहीं कर रहा।
गहलोत सरकार की ओपीएस बहाली और अब इस पर कानून बनाने की गारंटी ने उस कर्मचारी वोट पर सस्पेंस बना कर रखा है जो पांच साल बाद शर्तिया तौर पर परिवर्तन के लिए मतदान करता था। परिवार की महिला मुखिया को दस हज़ार देने की गारंटी हो या गहलोत सरकार की अन्य योजनाएं, मौटे तौर पर कांग्रेस माहौल बनाने में कामयाब दिखी है। वहीँ वसुंधरा राजे इस बार भाजपा की सीएम फेस नहीं है, इसके चलते अंतिम एक सप्ताह तक भाजपा का प्रचार वो तेजी पकड़ ही नहीं पाया जैसा होता रहा है। ये ही कारण है आखिरी एक सप्ताह में पीएम मोदी ने राजस्थान में पूरी ताकत झोंकी जिसके बाद भाजपा का प्रचार रंग में आया। सत्ता परिवर्तन का सियासी रिवाज बरकरार रहे ये मुमकिन दिख रहा है, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो इसका असर राष्ट्रीय सियासत पर भी तय मानिए। इस सम्भावना को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि 'मोदी बनाम गहलोत' की लड़ाई राजस्थान की सीमा तोड़ राष्ट्रीय पटल पर भी दिख सकती है।
अशोक गहलोत ने राजस्थान की सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद एक तरह से ठुकरा दिया था। अब भी सत्ता वापसी हुई तो गहलोत की मंशा ऐसी ही लगती है। पर यदि रिपीट हो पाया तो गहलोत मौजूदा समय में वो इकलौते नेता बन जायेंगे जो भाजपा पर भारी पड़ते रहे है। राजस्थान में हुए सियासी ड्रामा में गहलोत अपनी सरकार बचाकर पहले ही काबिलियत दर्शा चुके है। इससे पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहते हुए 2017 में उन्होंने पीएम मोदी के घर गुजरात में अपनी छाप छोड़ी थी। अब गहलोत रिपीट कर इतिहास रच गए तो संभवतः मौजूदा दौर में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता कहलायेंगे। बेशक राहुल, प्रियंका और खड़गे ने जनसभाएं की हो, लेकिन जीत का चटक लाल साफा उन्हीं के सर सजेगा।
पेचीदा गठबंधन में गहलोत कारगर !
कांग्रेस अकेले दम पर 2024 में भाजपा से लोहा ले सकती है, इसकी सम्भावना ज्यादा नहीं दिखती। चाहे राष्ट्रीय गठबंधन हो या क्षेत्रीय दलों से गठबंधन, लेकिन उपयुक्त गठबंधन से ही विपक्ष की नैया पार हो सकती है। गठबंधन में कई चेहरे पीएम पद की आस में होंगे और ऐसे में संभव है कांग्रेस खुलकर राहुल गाँधी को आगे न रखे। गठबंधन की स्थिति पेचीदा होने पर गहलोत कारगर चेहरा हो सकते हैं। यदि राजस्थान में गहलोत का जादू चल जाता है तो राष्ट्रीय राजनीति में भी उनका कद निसंदेह तौर पर बढ़ेगा।