शिमला: कोटखाई में औषधीय पौधों की खेती को जाइका वानिकी परियोजना का प्रोत्साहन

सेब उत्पादन के लिए प्रसिद्ध कोटखाई क्षेत्र अब औषधीय पौधों की खेती के नए अवसर देख रहा है। जाइका वानिकी परियोजना ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए वन मंडल ठियोग के अंतर्गत वन परिक्षेत्र कोटखाई की ग्राम वन विकास समिति जाशला में औषधीय पौधों की खेती की अपार संभावनाओं पर जोर दिया है। हाल ही में जाशला में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में, जड़ी बूटी प्रकोष्ठ के मैनेजर मार्केटिंग राजेश चौहान ने ग्रामीणों को कडु और चिरायता जैसे मूल्यवान औषधीय पौधों की खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उपस्थित लोगों को बताया कि इस क्षेत्र की जलवायु इन पौधों की खेती के लिए अत्यंत अनुकूल है। परियोजना की ओर से ग्रामीणों को न केवल निशुल्क पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे, बल्कि उन्हें खेती से संबंधित सभी आवश्यक तकनीकी प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। राजेश चौहान ने वर्तमान बाजार परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि औषधीय पौधों को बाजार में आकर्षक मूल्य मिल रहा है, जिससे स्थानीय लोग अपनी आय को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकते हैं। इस अवसर पर वन मंडल ठियोग के विषय वस्तु विशेषज्ञ अभय महाजन और क्षेत्रीय तकनीकी इकाई समन्वयक लोकेंद्र झांगटा भी उपस्थित थे। ग्राम वन विकास समिति जाशला के प्रधान प्रदीप लेटका, जयदेवी नंदन स्वयं सहायता समूह की प्रधान प्रेम लता और जय मां चालकाली स्वयं सहायता समूह की प्रधान उषा ने जाइका वानिकी परियोजना की इस महत्वपूर्ण पहल की सराहना की और क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती की भरपूर संभावनाओं को देखते हुए जन सहभागिता के माध्यम से इसे सफल बनाने का संकल्प लिया। यह उल्लेखनीय है कि परियोजना ने पिछले वर्ष किन्नौर, आनी और कुल्लू में भी जन सहभागिता के माध्यम से कडु के पांच लाख पौधे रोपित किए थे। परियोजना ने यह भी स्पष्ट किया कि इन औषधीय पौधों की खेती पूरी तरह से रसायन मुक्त होगी, जिससे जल स्रोतों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। वर्तमान बाजार में कडु की कीमत दो से पांच हजार रुपये प्रति किलोग्राम और चिरायता की कीमत तीन से पांच सौ रुपये प्रति किलोग्राम तक है, जो किसानों के लिए एक आकर्षक आय का स्रोत बन सकता है।