कांगड़ा प्लान : सीएम की नपी-तुली चाल, दूर तक पड़ेगी मार !

- क्या 2027 में घर में ही होगी सीटों की अदला बदली ?
- क्या दूसरी राजधानी धर्मशाला में शिफ्ट हो सकते है कई महकमे ?
- क्या खत्म होने जा रहा है मंत्रिपद का इन्तजार ?
अलबत्ता एक और कैबिनेट सीट के लिए कांगड़ा का इन्तजार जारी हो, लेकिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपने 'कांगड़ा प्लान' के साथ एक नियोजित तरह से मिशन कांगड़ा में जुटे दिख रहे है। सियासी बिसात पर हर चाल नपी-तुली है और इसकी मार दूर तक दिख सकती है। सरकार का शीतकालीन प्रवास हो, बैजनाथ में पूर्ण राज्यत्व दिवस का आयोजन या कांगड़ा को टूरिज्म कैपिटल बनाने की प्रतिबद्धता को दोहराना, इन तमाम कदमों में माहिर भविष्य की सियासी कदमताल भी देख रहे है। हालांकि ये पहली बार नहीं हो रहा, ये सिलसिला पुराना है। हुकुमरानों द्वारा कांगड़ा के मान-मनौव्वल और अधिमान का पूरा ख्याल रखने की प्रतिबद्धता भी पुरानी है। कारण है इस जिले का सियासी वजन। काफी हद तक कांगड़ा की 15 विधानसभा सीटें शिमला की कुर्सी का फैसला करती है। 1985 से चुनाव दर चुनाव ऐसा होता आ रहा है।
कांगड़ा के साथ मसला ये है कि शांता कुमार के बाद जिला कांगड़ा को सीएम पद नहीं मिला। वहीँ वर्तमान कैबिनेट में सिर्फ दो बर्थ कांगड़ा को मिली है, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के दस विधायक है। ये उम्मीद से कम से कम एक कम है। जमीनी स्तर पर कांगड़ा की ये टीस दिखती भी है। दरअसल कांगड़ा के लोग हिमाचल के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले राजनैतिक तौर पर ज्यादा मुखर है। सीएम पद न मिलने का मलाल हो या कम मंत्री पद दिए जाने की टीस, जमीन पर इसकी झलक दिखती है। तो क्या सीएम सुक्खू के तथाकथित 'कांगड़ा प्लान' में इसकी काट है, ये बड़ा सवाल है।
दरअसल सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू अपने 'कांगड़ा प्लान' के साथ एक भावनात्मक रिश्ता जोड़ने की मुहीम में दिख रहे है। ये प्लान हवा हवाई नहीं बल्कि एक ठोस रणनीति दिखता है। मसलन कांगड़ा के देहरा हलके में पहले मुख्यमंत्री ऐलान करते है कि 'देहरा अब मेरा', और फिर उसी देहरा उपचुनाव में अपनी पत्नी को मैदान में उतार देते है। नतीजन, अब कांगड़ा से सीएम का सीधा सियासी सम्बन्ध बन गया। देहरा में सीएम कार्यालय भी खोल दिया गया। कांगड़ा को अपने परिवार का चुनाव क्षेत्र बना लेने को माहिर एक लाजवाब सियासी चाल की तरह देखते है और इस सम्भावना से भी इंकार नहीं करते कि 2027 में परिवार में ही सीटों की अदला बदली भी मुमकिन है।
वहीँ, सूत्रों की माने तो प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला को लेकर भी सुक्खू सरकार विशेष एक्शन प्लान तैयार कर रही है। अब तक दूसरी राजधानी की उपयोगिता शीतकालीन सत्र तक सिमट कर रहती दिखी है, लेकिन शीतकालीन प्रवास से सीएम ने संकेत दिए है कि सरकार का ईरादा इससे अधिक है। बताया जा रहा है कि शिमला से कई महत्वपूर्ण महकमे धर्मशाला स्थान्तरित किये जाने की योजना पर सरकार आगे बढ़ सकती है। इससे जहाँ शिमला से भार कम होगा, वहीँ धर्मशाला में प्रशासनिक गतिविधियां बढ़ेगी। हालांकि प्रतिकूल वित्तीय हालात इसमें बड़ा रोड़ा है।
मंत्रिमंडल की बात करें तो वर्तमान में कांगड़ा से दो मंत्री है, चौधरी चंद्र कुमार जो ओबीसी वर्ग से आते है और यादविंद्र गोमा जो एससी समुदाय से आते है। ऐसे में ये लगभग तय माना जा रहा है कि जल्द सवर्ण समाज से ताल्लुख रखने वाले किसी विधायक की ताजपोशी होगी। यानी मंत्रिपद का इंतजार खत्म होगा। इसके अलावा संगठन में कांगड़ा से एक कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति के फॉर्मूले को भी पार्टी दोहरा सकती है।
क्या कांगड़ा से अध्यक्ष बनाएगी भाजपा ?
बात विपक्ष में बैठी भाजपा की करें तो जल्द पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलना है और कांगड़ा वालों को उम्मीद है कि अर्से बाद भाजपा आलाकमान कांगड़ा पर करम फरमाएगा। हालाँकि आम जनता को इससे खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर अध्यक्ष पद आया तो भविष्य में सीएम पद की उम्मीद भी जगेगी। वहीँ, पार्टी विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए भी ये बूस्टर डोज़ का काम कर सकता है। अब ऐसा हो पाता है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होगा।