सही मायनों में सत्ता का सेमीफाइनल है उपचुनाव
भरपूर जोश और बेजोड़ प्रयास, सियासी वार -पलटवार की भरमार, कहीं बगावत तो कहीं अंतर्कलह, कोई चुप है तो कोई मुखर, कहीं दिल मिल रहे है तो कहीं हाथ मिलाने की सियासी रस्म निभाई जा रही है, इससे पहले ऐसा तो चुनाव में होता आया है, पर पहली बार उपचुनाव में हो रहा है। हिमाचल ने ऐसा उपचुनाव पहले नहीं देखा। कभी ऐसा मौका भी नहीं आया जब तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट का उपचुनाव एकसाथ हो, वो भी विधानसभा उपचुनाव से सिर्फ एक साल पहले। यानी दोनों राजनैतिक दलों को कुल 20 विधानसभा क्षेत्रों में इम्तिहान देना है, कई मंत्रियों को इम्तिहान देना है। ये खुद मुख्यमंत्री का इम्तिहान है और ये इम्तिहान है विपक्ष में बैठे कई नेताओं का जिनकी नज़रें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी है। ये ही कारण है कि ये उपचुनाव सही मायनों में हिमाचल प्रदेश में सत्ता का सेमीफाइनल है। बिगुल बज चुका है, 30 अक्टूबर को मतदान है और 2 नवंबर को नतीजे घोषित होंगे। ये नतीजे कांग्रेस-भाजपा दोनों राजनीतिक दलों में बहुत कुछ तय करेंगे, ये नतीजे चेहरे तय कर सकते है, ये नतीजे किसी के लिए 2022 की राह आसान करेंगे तो किसी की डगर कठिन। यही कारण है इस बार उपचुनाव में हर जीत में कई की जीत छिपी होगी तो हर हार में कई उम्मीदों की हार होगी।
तो विरोधी भी बोलेंगे जयराम की जय
निसंदेह इस वक्त प्रदेश के किसी नेता पर सबसे ज्यादा बेहतर करने का दबाव है तो वे है मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर। उपचुनाव के नतीजे यदि ठीक ठाक नहीं रहे तो उसके खिलाफ मौका ढूंढ रहे उनके अपने भी आवाज उठा सकते है। पर इस बार भी यदि भाजपा को जीत मिलती है तो विरोधियों को भी जयराम की जय बोलनी होगी। जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद पहले भाजपा ने लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया, फिर धर्मशाला और पच्छाद के उपचुनाव में। पंचायती राज और शहरी निकाय चुनाव में भी भाजपा का डंका बजा। नगर निगम चुनाव में जरूर कुछ रंग में भंग डाला पर पार्टी पर जयराम ठाकुर का कण्ट्रोल बरकरार है। सवाल जो भी उठे पर चार साल में ऐसा मौका कभी नहीं आया जब खुलकर जयराम ठाकुर के खिलाफ कोई आवाज बुलंद हो पाई हो। पर इस उपचुनाव में यदि नतीजे प्रतिकूल रहे तो शायद दबे रहे विरोध के स्वर मुखर हो।
तो कुलदीप के पांव होंगे मजबूत
वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश कांग्रेस का चेहरा कौन है ये तो फिलवक्त शायद कांग्रेस भी नहीं जानती हो। तमाम बड़े नेताओं के बड़े अरमान और इन सियासी अरमानों के बीच हिचकोले खाता संगठन। पर इस स्थिति में भी एक चेहरा जैसे -तैसे अपनी जगह बचा कर आगे बढ़ता रहा है, वो है कुलदीप सिंह राठौर। इन्हीं कुलदीप राठौर में न तो विरोधियों को कोई एक्स फैक्टर दिखता था और न ही संगठन में हावी रहने की काबिलियत। पर कमजोर कांग्रेस संगठन और दिग्गजों की खींचतान के बीच भी कुलदीप संतुलन बनाकर चलते रहे है। अगर हार का श्रेय उन्हें मिलता है तो नगर निगम में मिली ठीक ठाक जीत का भी। उपचुनाव में भी यदि कांग्रेस अच्छा करती है तो कुलदीप के पाँव निसंदेह मजबूत होंगे और अगर पार्टी को मुँह की खानी पड़ी तो संगठन में बदलाव की आवाज बुलंद होगी।
तो कायम रहेगा होलीलॉज का रसूख
होलीलॉज लम्बे वक्त से प्रदेश की सियासत का केंद्र रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद ये बड़ा सवाल था कि क्या होलीलॉज का पहले सा सियासी रसूख कायम रह पायेगा ? पर जिस तरह से प्रदेशभर में वीरभद्र सिंह के लिए सहानुभूति दिखी और जिस परिपक्वकता के साथ अब तक विक्रमादित्य सिंह आगे बढ़ते दिखे है उसके चलते अब तक विरोधी आवाजें खामोश रही है। पर अब मंडी चुनाव वीरभद्र परिवार का बड़ा इम्तिहान लेगा, यहां प्रदर्शन फीका रहा तो सवाल भी उठेंगे। पर यहां प्रतिभा सिंह का परचम लहराया तो होलीलॉज का रसूख अच्छे -अच्छे मानेंगे। इसी तरह फतेहपुर के पूर्व विधायक सुजान सिंह पठानिया भी वीरभद्र कैंप के सिपहसलहार थे, ऐसे में भवानी पठानिया के प्रदर्शन पर भी नज़र रहेगी। वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे और अर्की सीट पर पार्टी ने संजय अवस्थी पर दाव खेला है जबकि वीरभद्र परिवार के नजदीकी राजेंद्र ठाकुर को टिकट से महरूम रखा गया है। अब राजेंद्र ठाकुर खुलकर संजय अवस्थी के विरोध में दिख रहे ही और उनके अनुसार इसका कारण ये है कि अवस्थी में 2017 में वीरभद्र सिंह के विरोध में काम किया था। अर्की टिकट के मसले पर विक्रमादित्य सिंह अब तक चुप है, पर आगे उनका क्या रुख रहेगा यह देखना रोचक होगा।
अजब - गजब चुनाव
'मंडी का सीएम' कहना मंडी में भारी न पड़ जाएं
कांग्रेस जयराम ठाकुर को मंडी का सीएम कहकर उन पर निरंतर निशाना साधती रही है। प्रदेश के बाकी हिस्सों में शायद कांग्रेस को इससे कोई लाभ हो सके लेकिन मंडी में कांग्रेस का ये नारा उलटा न पड़ जाए। एक किस्म से कांग्रेस खुद सीएम जयराम ठाकुर द्वारा मंडी में कराए गए विकास को प्रमाण पत्र देती रही है। अब उपचुनाव प्रचार में भी कांग्रेस अपने शब्दों पर टिकी रहती है या नहीं, ये देखना रोचक होगा।इधर -उधर, किधर की अजब सियासत
इस गजब उपचुनाव में कई नेताओं की अजब चिंता है। चिंता दरअसल ये है कि विरोधी जीत भी गए तो कोई बात नहीं पर कहीं अपने जीत गए तो 2022 में बड़ी मुश्किल होगी। ये ही राजनीति है, जो इधर है वो उधर का है और जो उधर दिख रहा है वो ही इधर का है। कुछ ऐसे भी है जो इधर है या उधर पता नहीं, किधर है ये तो राम ही जाने।गरजने वाले क्या अब बरसेंगे
कई कर्मचारी नेता और संगठन सत्ता से रुष्ट दिखते रहे है, उपचुनाव में देख लेने की बात कहते रहे है। अब उपचुनाव भी आ गए, पर क्या लम्बे समय से गरजते आ रहे ये कर्मचारी संगठन बरसेंगे या फिर अब 2022 का राग बरसाती गाया जायेगा। नज़रें विपक्ष पर रहने वाली है, क्या कर्मचारी वोट साधने को कुछ विपक्ष कुछ जुगत लगाएगा।महानुभाव खामोश रहे तो ज्यादा कृपा बरसेगी
लगातार अपने अजब बयानों से अपनों की परेशानी बढ़ाते आ रहे नेताओं पर भी उपचुनाव में नज़र रहने वाली है। दरअसल चुनाव में असल तड़का तो तभी लगेगा जब ये बयानवीर अपने रंग में आएंगे। उधर राजनीतिक दल इसी प्रयास में है कि ऐसे महानुभाव खामोश रहे तो ज्यादा कृपा बरसेगी।नए-नए कांग्रेसी कन्हैया अब क्या और कितना बोलेंगे
कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में एक नाम ने खूब हल्ला मचाया हुआ है, ये नाम है कन्हैया कुमार का। नए-नए कांग्रेसी हुए कन्हैया हिमाचल आकर क्या बोलेंगे और कितना बोलेंगे इसमें सबकी दिलचस्पी है। कन्हैया के हर वार पर भाजपा का क्या पलटवार होगा, इसमें सबकी ज्यादा दिलचस्पी है। कन्हैया कांग्रेस की नैया पार लगते है या भाजपा को हावी होने का मौका देते है, ये देखना रोचक होगा।