कुल्लू :- चंद्रभागा संगम में हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म के अनुसार की गई पूजा

29 जून के दिन चन्द्रभागा संगम में विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल का अस्थि विसर्जन हुआ था। उसके साथ ही बहुत सारा साहित्य भी शोधार्थियों ने छाप कर आम समाज में वितरित किया था ताकि वैदिक काल से पूजनीय इस नदी के प्रति श्रद्धा बढ़े और आने वाले समय में हरिद्वार की भाँति यहां घाट बने। यह स्थान भारत के आठ महाश्मशानों में एक है और हज़ारों सालों से यहाँ लोग अस्थि विसर्जन करते आ रहे हैं। इस नदी का पानी गंगा जी के पानी के भाँति कभी ख़राब नहीं होता है और स्थानीय लोग पूजन के लिए पानी भर कर के ले जाते रहे हैं। इस नदी का उल्लेख ऋग्वेद , शिवपुराण , स्कंद पुराण और भागवत जैसे सनातन ग्रंथों के साथ सूतपिटक, खुदकनिकाय और विमान बत्तु जैसे बौद्ध ग्रंथों में भी है जिस कारण इसे हिन्दू और बौद्ध दोनो धर्मों के लोग पूजते हैं। आज संगम पूजन कर के संगम पर्व की परम्परा को संगम पर्व आयोजन समिति और विश्व हिंदू परिषद ने मनाया। संगम पूजन में चंद्रभागा संगम पर्व के सयोजक डॉ चन्द्र मोहन परशीरा मौजूद रहें। डॉ परशीरा ने कहा कि जिस भाँति बड़ी बड़ी मशीनों से संगम के प्राकृतिक सौन्दर्य को समाप्त किया जा रहा है उसे देख कर दुःख हुआ। नदी के दूसरी और की ज़मीन कई सालों से पानी के बहाव में कट कर समाप्त हो रही है, यहाँ तक कि गौशाल गांव का शमशान घाट कुछ वर्ष पहले भूमि कटाव से गिर कर बह चुका है और सनातन धर्म सभा का भवन गिरने वाला है लेकिन दीवार नदी के दूसरी और लग रही है जो बड़ी हैरानी की बात है। सुरंग के बाद घाटी में पर्यटन तो बढ़ा है लेकिन इस अत्यंत रमणीय और धार्मिक स्थान पर कोई नहीं उतरता। सरकार इसे पर्यटन मानचित्र में लाने में असफल हो चुकी है ।