एक और हार..शायद अब भाजपा को खामियों का इल्म हो
शिमला नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए एक और बड़ा झटका है। ये झटका शायद भाजपा की नींद खोल दे। शायद अब भाजपा को ये इल्म हो जाए कि राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व होना ही काफी नहीं है, प्रदेश में मजबूत होने के लिए स्थानीय नेतृत्व भी सशक्त होना चाहिए। शायद अब भाजपा अपनी जड़े टटोले और ढूंढ निकाले उस दीमक को जो बाहर से विशाल दिखने वाले इस वृक्ष को अंदर ही अंदर खोखला करती जा रही है। हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के मानचित्र पर कोई छोटा राज्य नहीं हो सकता। ये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का गृह राज्य है और केंद्र सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर का भी। भाजपा के कई बड़े चेहरे इस प्रदेश से है, मगर इसके बावजूद एक तरफ जहाँ पूरे देश में भाजपा एक के बाद एक जीत का परचम लहरा रही है, वहीं हिमाचल में पार्टी को एक के बाद एक हार नसीब हो रही है। ज़ाहिर है अब भारतीय जनता पार्टी को चिंतन -मंथन से आगे निकल का एक्शन लेने की ज़रूरत है।
एक बड़े राजनीतिज्ञ कहते है कि अगर सरकार वृक्ष के तनों सी है तो कार्यकर्त्ता और संगठन उसी वृक्ष के जड़ों से। पिछले पांच सालों में हिमाचल में भाजपा सरकार तो हरी-हरी नज़र आई, मगर इसकी जड़ें कमज़ोर पड़ती गई। नतीजन प्रदेश में भाजपा के हाथ से सत्ता भी गई और अब तो तिलिस्म भी ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है। ऐसा नहीं है कि कोशिश नहीं की गई। बीच नगर निगम शिमला चुनाव में भाजपा आलाकमान ने प्रदेश संगठन की कमान डॉ राजीव बिंदल को दे दी मगर इसका कोई लाभ पार्टी को मिला हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। वहीँ कमान भले ही बिंदल के पास हो मगर हार की जिम्मेदारी उनकी है, ये भी पूरी तरह ठीक नहीं होगा। दरअसल अध्यक्ष बनते ही बिंदल ने स्पष्ट कर दिया था कि इस चुनाव में जीत हो या हार, उनके बहिखाते में नहीं होगी। बिंदल को लंबा तजुर्बा है और संभवत वे पहले ही स्थिति भांप गए हो। हुआ भी ऐसा ही, भाजपा दहाई के आंकड़े को भी नहीं छू पाई।
हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर भाजपा का मुख्य चेहरा है और उनकी रजा से ही 2020 के मध्य में सुरेश कश्यप को संगठन का सरदार बनाया गया था। भाजपा के सत्ता में रहते हुए सत्ता और संगठन में जबरदस्त तालमेल था, या यूं कहे एक किस्म से दोनों एक ही थे। माहिर मानते है कि जरूरत से बेहतर ये तालमेल ही भाजपा की कमजोरी बना। दरअसल सत्ता के सामने संगठन की अपनी कोई दमदार पहचान ही नहीं बची। नतीजा भाजपा ने प्रदेश की सत्ता गवांकर खामियाजा भुगता। सवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की भूमिका पर भी उठे, जिन्होंने पार्टी के भीतर बदलाव की दरकार को नजरअंदाज कर विधानसभा चुनाव में उतरने का निर्णय लिया। बाकी इतिहास है, भाजपा ने रिपीट करने का सुनहरा अवसर गवां दिया।
जयराम ठाकुर और सुरेश कश्यप की जोड़ी कभी कोई कमाल नहीं कर पाई। अप्रैल 2021 में पार्टी सिंबल पर हुए चार नगर निगम चुनाव में से पार्टी दो हारी। फिर 2021 के अंत में तीन विधानसभा उपचुनाव और मंडी संसदीय क्षेत्र का चुनाव भी भाजपा हारी। इसके बाद 2022 जाते जाते प्रदेश की सत्ता भी गवां दी। अब इस जोड़ी के नेतृत्व में लड़ा गया शिमला नगर निगम चुनाव भी भाजपा बुरी तरह हारी है। जाहिर है सुरेश कश्यप बतौर अध्यक्ष अपना कार्यकाल भुलाना चाहेंगे और इसी आस में होंगे कि शिमला संसदीय क्षेत्र से पार्टी उन्हें 2024 में एक मौका और दें। वहीं जयराम ठाकुर अब नए सिरे से आगे बढ़ने के प्रयास में होंगे। वैसे जयराम ठाकुर मंडी क्षेत्र में बेहद मजबूत है और विरोधी उनकी इसी मजबूती के जरिए 2024 में उन्हें दिल्ली भेजने के प्रयास में जुटे जरूर होंगे। आगे ऊंट किस करवट बैठता है, ये देखना रोचक होगा।