बागवानों की बुलंद आवाज थे स्व नरेंद्र बरागटा
कुछ नाम ऐसे होते है जो किसी तारुफ़ के मोहताज नहीं होते l इनके काम, समाज में इनका योगदान और इनकी अलहदा शख्सियत न सिर्फ वर्तमान को प्रभावित करती है बल्कि आने वाले कल के लिए भी मिसाल होती है l ऐसी ही एक शख्सियत थे स्व नरेंद्र बरागटा, जो जीते जी भी लोकप्रिय रहे और देवलोक गमन के पश्चात भी लोगों के दिलों में जिन्दा हैl विशेषकर जब भी प्रदेश के बागवानों और उनके विकास की बात होती है तो स्व नरेंद्र बरागटा का ज़िक्र ज़रूर होता है l वो नरेंद्र बरागटा ही थे जो पहली बार हिमाचल के बागवानों लिए एंटी हेलगन लाए थे। वो नरेंद्र बरागटा ही थे जिन्होंने बागवानी महत्व की ठियोग-हाटकोटी सड़क के निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी l वो नरेंद्र बरागटा ही थे जो बागवानों के हित के लिए अपनी ही सरकार से लड़ जाया करते थ। स्व बरागटा के लिए ताउम्र बागवान पहले रहे और राजनीति बाद में।
स्वयं एक बागवान हाेने के नाते नरेंद्र बरागटा ने हमेशा से ही किसान एवं बागवानाें के दर्द काे समझा और विधानसभा में भी बागवानों की आवाज़ उठाने में काेई कमी नहीं छाेड़ी। प्रदेश के किसी भी क्षेत्र में किसान हाे या बागवान सभी की समस्याओं का हल करवाने के लिए उन्हाेंने हमेशा से ही दलगत राजनीति से उठकर काम किया। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि बरागटा प्रदेश के बागवानों की सबसे बुलंद आवाज थे l सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व. बरागटा प्रदेश के बागवानों के हर मसले को दमदार तरीके से उठाया करते थे। प्रदेश विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बागवानों की आवाज बुलंद करने में उन्होंने काेई कमी नहीं छाेड़ी। पूर्व जयराम सरकार में वे मुख्य सचेतक थे और विधानसभा के हर सत्र में वे बागवानाें के हितों की बात करते दिखते थे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियों की ओर से भ्रष्टाचार का मसला, इन सभी एजेंडों पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठाेक-बजा कर बागवानाें का पक्ष रखा।
देश की विभिन्न मंडियाें में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का मुद्दा भी स्व. बरागटा उठाते रहे।
1998 की धूमल सरकार में बागवानी मंत्री रहते हुए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष भी ये मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। इसके बाद अगली धूमल सरकार में भी वे बागवानी मंत्री थे और यूपीए सरकार के सामने ये विषय रखा। जब भी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते बागवानों की फसल नष्ट होती, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा, वह थे नरेंद्र बरागटा। हर बार बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा प्रदेश सरकार से मांग करते कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। एक बार अपनी ही सरकार को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि केवल आंकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पहले हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आंकलन ही करती रह गई थी।
प्रदेश में करीब चार हजार करोड़ रुपये का सेब बागवानी का कारोबार हर साल कम होता देखकर नरेंद्र बरागटा इस समस्या से निदान दिलाने के लिए बहुत चिंतित रहा करते थे। धूमल सरकार में वह एंटी हेलनेट पर सब्सिडी बढ़ाने के हिमायती रहे। दरअसल उन्होंने विदेशों से प्रदेश में एक ऐसी तकनीक लाकर सबको चौंका दिया, जिससे ओले रोके जाने के दावे किए जाने लगे। इसे एंटी हेलगन कहा जाता है। बरागटा प्रदेश के बागवानों के लिए एंटी हेल गन लेकर आए थे l विदेशी तकनीक से उन्होंने प्रदेश के सेब बागवानों की ओलावृष्टि की समस्या का निदान करने का प्रयास किया था जिसका लाभ आज भी बागवान उठा रहे है। जुब्बल-कोटखाई में एंटी हेलगन की स्थापना भी की गई। इससे ध्वनि तरंगें आसमान में छोड़ी जाती हैं। ओलावृष्टि का पूर्वाभास होने से पहले ही ये बंदूूकें चलाई जातीं तो इनसे विस्फोट जैसे आवाज होती। इससे ओले बनने से पहले ही नष्ट हो हो जाते थे। इस तकनीक के बारे में बरागटा बहुत चर्चित रहे।
बागवानी महत्व की ठियोग-हाटकोटी सड़क के निर्माण के लिए भी बरागटा ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। चीन की कंपनी को काम मिलने के बाद नरेंद्र बरागटा 'छैला चौक टू चाइना' कहकर यह जताने की कोशिश करते थे कि इस सड़क के निर्माण के लिए यूनिवर्सल टेंडर लगवाने की उनकी मुहिम कामयाब रही। बागवानी महत्व की ठियोग-हाटकोटी सड़क का पहले बुरा हाल था। प्रदेश की सत्तर फीसदी से अधिक सेब की फसल का परिवहन इसी सड़क से होता है। पर इसमें सेब सीजन के दौरान घंटों जाम लगा रहता था। नरेंद्र बरागटा एचपीआरआईडीसी के तहत इस सड़क को स्टेट प्रोजेक्ट में शामिल करवाने, इसके यूनिवर्सल टेंडर करवाने जैसे मुद्दों पर खासे संघर्षरत रहे। बाद में एक चीनी कंपनी लोंग जियान ने इस सड़क का काम लिया तो इसकी भी वह कड़ी निगरानी करते रहे। बार-बार गुणवत्ता का मामला उठाते रहे। बाद में यह कंपनी काम छोड़कर गई तो सीएनसी कंपनी को इसका काम दिया गया। नरेंद्र बरागटा इसका भी लगातार फालोअप करते रहे।
सेब के लिए नई विदेशी किस्में लाई , टिश्यू कल्चर लैब स्थापित की
नरेंद्र बरागटा ने हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों के लिए नई विदेशी किस्में भी धूमल सरकार में मंत्री रहते मंगवाई थी। इन क्षेत्रों में बागवानी विस्तार करने का भी उन्होंने एक विशेष अभियान चलाया। इसके अलावा राज्य में टिश्यू कल्चर सेब उत्पादन की प्रयोगशालाएं भी उन्होंने स्थापित करवाईं।
लगातार उठाते रहे आयात शुल्क का मामला
सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने और हिमाचल के बागवानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य दिलाने के लिए भी नरेंद्र बरागटा हमेशा संघर्षरत रहे। विदेशी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़वाने का मामला वह केंद्रीय मंत्रियों से भी लगातार उठाते रहे।
पिता के नक्शेकदम पर आगे बढ़ रहे चेतन
स्व नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद उनकी राजनैतिक विरासत को उनके ज्येष्ठ पुत्र चेतन आगे बढ़ा रहे है।
यूँ तो चेतन पहले से ही राजनीति में सक्रीय थे लेकिन पिता के निधन के बाद वे उसी ज़िम्मेदारी से क्षेत्र के बागवानों की आवाज बने है, जैसा स्व बरागटा किया करते थे। चेतन के लिए भी बावन और लोग पहले है और राजनैतिक दल बाद में। उन्हें भी लोगों को वैसा ही प्यार हो समर्थन प्राप्त है जैसा स्व नरेंद्र बरागटा को था।